उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद से लगभग 30 किलोमीटर दूर अमरोहा जिले के जोया ब्लॉक में दोनों ओर गन्ने के खेतों से घिरी धूल भरी सड़क गांव कालाखेड़ा तक जाती है। किसान हेमंत सिंह (65) बताते हैं कि यह सड़क बहुत टूटी हुई थी, जिसकी हाल ही में मरम्मत की गई है। वह बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में बिजली की स्थिति सुधरी है और गन्ने का भुगतान समय पर हो रहा है। 18वीं लोक सभा के लिए उत्तर प्रदेश से 80 सांसद चुने जाने हैं। इस प्रदेश में पहले चरण का मतदान19 अप्रैल को होगा। मुरादाबाद में पहले चरण में ही वोट डाले जाएंगे।
क्षेत्र में 15 से 20 किसानों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले दस वर्षों में हालात बहुत सुधरे हैं, लेकिन अभी बहुत काम होना बाकी है। हेमंत सिंह के साथ मिलकर पॉलिहाउस चलाने वाले उनके 32 वर्षीय बेटे ने कहा कि यदि खेती में वे कुछ नया प्रयोग करना चाहते हैं तो कोई उनकी मदद करने वाला नहीं है। किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिलता। वह बताते हैं कि एक पॉलिहाउस को चलाने के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है।
जब परियोजना पूरी हो जाती है, तो सरकार की ओर से धनराशि दे दी जाती है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। किसान जब इस सब्सिडी के लिए दावा करने जाता है तो उसे कुल धनराशि का 13 प्रतिशत अधिकारियों को देना पड़ता है। पिता-पुत्र दोनों राज्य में सुरक्षा की स्थितिके लिए योगी सरकार से काफी संतुष्ट नजर आए। दोनों ने कहा, ‘अब अपराध कम हो गए हैं, लूट की वारदात भी नहीं होतीं।’
वर्ष 2022-23 में उत्तर प्रदेश की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 15.3 प्रतिशत थी, जबकि वर्ष 2012-13 में यह हिस्सेदारी 18.4 प्रतिशत थी।
खेती के लिए रोटावेटर खरीदने वाले 30 वर्षीय प्रदीप चौधरी ने बताया कि सब्सिडी के लिए सभी कागजात जमा कराने के बावजूद दो साल तक उन्हें एक भी पैसा नहीं मिला। हल्की रोशनी वाले कमरे में बैठे प्रदीप और उनके पांच साथी किसानों ने कहा कि खाद और फसल में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की कीमतें कम होनी चाहिए।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011-12 से 2020-21 के बीच गन्ने की फसल में आने वाली लागत लगभग 74 प्रतिशत बढ़ गई है। इसमें उर्वरक और जैविक खाद का खर्च भी शामिल है। इस अवधि में उर्वरकों पर आने वाला खर्च 6,079.7 रुपये प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 10,587.7 रुपये हो गया है।
इससे पहले जनवरी में गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) बढ़ाकर अक्टूबर 2023 से सितंबर 2024 की अवधि के लिए 370 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था। किसानों के लिए फसल बरबाद कर रहे आवारा पशुओं का मसला भी बहुत गंभीर है। चौधरी कहते हैं कि या तो इन पशुओं को पकड़ कर गौशाला में रखा जाए अथवा दूध के दाम बढ़ाए जाएं ताकि किसान इन पशुओं को पालने के लिए प्रोत्साहित हों।
इलाके के सभी किसानों की मांग है कि उर्वरकों की कीमतें कम हों। वे चाहते हैं कि या तो फसल पर आने वाली लागत कम हो या फसल के दाम बढ़ाए जाएं और मिट्टी जांच यूनिट किसानों को अधिक से अधिक जागरूक करें। हालांकि मिट्टी जांच यूनिट यहां पास में ही स्थित है, लेकिन वह किसानों की कुछ भी मदद नहीं करती। उनका कहना है कि यदि वेयरहाउस सुविधाएं बढ़ें तो किसान फसल विविधीकरण अपनाने की दिशा में बढ़ेंगे।
केंद्र सरकार ने 2019 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना शुरू की थी, जिसके अंतर्गत प्रत्येक किसान को हर साल तीन किस्तों में 6000 रुपये दिए जाने का प्रावधान है। इस योजना का अनेक लोगों ने स्वागत किया, लेकिन बहुत से किसान आज तक इस योजना के लाभ से वंचित हैं। चौधरी कहते हैं, ‘योजना का लाभ उठाने के लिए जरूरी सभी कागजात जमा करने के बावजूद दो साल हो गए, लेकिन उन्हें पैसा नहीं मिला।’
चौधरी अकेले ऐसे किसान नहीं हैं, जो पीएम-किसान योजना का पैसा नहीं मिलने की शिकायत कर रहे हैं। मेरठ से 14 किलोमीटर दूर जनगेठी गांव के किसानों ने भी इसी प्रकार की शिकायत करते हुए योजना का लाभ नहीं मिलने की बात कही।
यहां के 26 वर्षीय किसान सोनू ने कहा कि दो साल से उन्हें भी पीएम-किसान योजना के तहत एक भी रुपया नहीं मिला है। तीस वर्षीय एक और किसान ने थोड़ा दुखी होते हुए कहा कि उनकी 6-7 किस्त आनी बाकी हैं।
यहां 45 वर्षीय किसान संजय कुमार कहते हैं, ‘वह प्रधानमंत्री मोदी के पक्के समर्थक हैं। वह न केवल हमारे लिए बल्कि देश के लिए अच्छा काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दुनियाभर में हमारा कद बढ़ा है।’ बिजली और कीटनाशकों की कीमतों में लगातार बढ़तोरी से वह भी चिंतित हैं। वह कहते हैं, ‘पशु पाना अब बहुत महंगा पड़ता है और दूध की भी अच्छी कीमत नहीं मिलती।’
उर्वरकों की बढ़ती कीमतों और पीएम-किसान योजना की धनराशि नहीं मिलने के साथ-साथ मुजफ्फरनगर के नूरनगर गांव में किसान टूटी सड़कों को लेकर भी परेशान हैं। यहां के किसान अमित कुमार ने कहा, ‘बीस साल से उनके गांव की सड़क नहीं बनी। बारिश में सड़क की कच्ची मिट्टी बहकर उनके खेत में आ जाती है और फसल को बरबाद कर देती है।’
राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय की 2021 में आई रिपोर्ट के अनुसार किसानों की आमदनी के मामले में उत्तर प्रदेश 29 राज्यों में नीचे से पांचवें नंबर पर है। जुलाई 2018 से जून 2019 के बीच यहां के एक किसान की औसत आमदनी 8,061 रही।
अशोक गुलाटी, श्वेता सैनी और रंजना राय द्वारा लिखी गई किताब ‘रिवाइटेलाइजिंग इंडियन एग्रीकल्चर ऐंड बूस्टिंग फार्मर इनकम’ के एक अध्याय में लिखा है, ‘भारत में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा (16 प्रतिशत) किसान हैं, लेकिन आमदनी के मामले में यह राज्यों में सबसे निचले स्तर पर आता है।’