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डॉ मनमोहन सिंह ने शेयर बाजार को बनाया किंग, Sensex ने 180% और Nifty ने 172% की छलांग लगाई

वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने शेयर बाजार के ताने-बाने को मजबूत बनाया और निजी क्षेत्र के म्युचुअल फंड शुरू करने व एफपीआई को भारतीय शेयर बाजार में निवेश की अनुमति दी

Last Updated- December 29, 2024 | 4:28 PM IST
Dr. Manmohan Singh made the stock market the king, Sensex jumped 180% and Nifty jumped 172% डॉ मनमोहन सिंह ने शेयर बाजार को बनाया किंग, Sensex ने 180% और Nifty ने 172% की छलांग लगाई

वर्ष 2004 से 2009 के दौरान मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में शेयर बाजार का प्रदर्शन बेहतरीन रहा। किसी भी अन्य प्रधानमंत्री के कार्यकाल के मुकाबले बाजार का यह दूसरा सबसे दमदार प्रदर्शन था। इस अवधि में सेंसेक्स 180 फीसदी तक उछल गया वहीं निफ्टी ने भी 172 फीसदी की छलांग लगाई।पी वी नरसिंह राव जब प्रधानमंत्री थे तो उस समय दोनों सूचकांकों में बस थोड़ी अधिक तेजी दिखी थी, जब सेंसेक्स 181 फीसदी और निफ्टी 171.4 फीसदी तक बढ़त दर्ज करने में कामयाब रहे थे।

राव के नेतृत्व में मनमोहन सिंह तब वित्त मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे और भारत में आर्थिक नीतियों में एक बड़े बदलाव को अंजाम दे रहे थे। आर्थिक नीतियों में बदलाव से भारत बेहाल राजकोषीय स्थिति और भुगतान संकट से उबर पाया था। भारतीय शेयर बाजार को मजबूती देने के उपाय भी उसी अवधि में किए गए थे।

सिंह जब वित्त मंत्री थे तब बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को संवैधानिक अधिकार दिए गए थे। पूंजी निर्गम नियंत्रक (कंट्रोलर ऑफ कैपिटल इश्यूज) का कार्यालय भंग कर दिया गया। शेयरों के सार्वजनिक निर्गमों पर निर्णय लेने का अधिकार वित्त मंत्रालय से सेबी को हस्तांतरित कर दिए गए।

निजी क्षेत्र को म्युचुअल फंड शुरू करने अनुमित मिल गई और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को भी भारतीय शेयरों पर दांव खेलने की आजादी दे दी गई। सितंबर 2024 तक एनएसई पर कारोबार करने वाली सभी कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण में म्युचुअल फंडों का हिस्सा बढ़कर 9.5 फीसदी और एफपीआई का 17.5 फीसदी हो गया। अक्टूबर 2024 तक 5.1 करोड़ भारतीय निवेशक म्युचुअल फंडों में निवेश कर चुके थे। भारतीय बाजारों में एफपीआई के दस्तक के बाद शेयरों पर औपचारिक शोध की शुरुआत हुई।

पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेस कंपनी फर्स्ट ग्लोबल की अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक देविना मेहरा कहती हैं, ‘एफपीआई के आने के बाद भारतीय बाजार में लेनदेन अधिक पेशेवर ढंग से होने ल​गे। एफपीआई के आने से पहले शेयरों पर शोध नहीं हुआ करते थे। तब किसी भी कंपनी में निवेशक संबंध विभाग भी नहीं हुआ करता था।‘

मेहरा ने कहा कि आर्थिक सुधारों के बाद कामकाजी लोगों की आय अच्छी-खासी बढ़ गई। उन्होंने कहा, ‘लोगों के वेतन पर आर्थिक सुधारों के स्पष्ट असर दिखने लगे थे। मेरी पीढ़ी के लोगों को बहतु लाभ हुए।‘ उन्होंने कहा, ‘1980 के दशक की समाप्ति से लेकर 2000 के दशक तक कई उद्योगों में वेतन संरचना काफी बदल गई। आर्थिक सुधारों के दौरान सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) एवं इससे चलने वाली सेवाओं का काफी विकास हुआ। इससे अर्थव्यवस्था सुधरने लगी और प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित होने लगे। इसके साथ ही देश के भुगतान संतुलन में भी सुधार दिखने लगा।’

अल्फानीति फिनटेक के निदेशक एवं मुख्य निवेश रणनीतिकार यू आर भट ने कहा कि भारतीय बाजार में शेयरों पर शोध अब अधिक होने लगे हैं और निवेशक उन शेयरों का आसानी से पता लगा पा रहे हैं जिनके भविष्य में चढ़ने की अच्छी संभावनाएं होती हैं। भट ने कहा, ‘पहले बाजार की कमान इसे चलाने वालों (ऑपरेटर) के हाथों में हुआ करती थी। मगर एफपीआई के आने के बाद स्थिति तेजी से बदल गई। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप प्रॉपर ब्रोकिंग सेवाओं की शुरुआत हुई।‘

भट ने कहा कि इससे भारतीय बाजार को लेकर निवेशकों का भरोसा बढ़ गया। उन्होंने कहा, ‘इससे पहले शेयर बाजार को बढ़ावा देने का कोई पुख्ता उपाय नहीं था सिवाय 1970 के दशक के जब विदेशी मुद्रा नियमन अधिनियम (फेरा) के प्रावधानों के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत में सूचीबद्ध कराना जरूरी हो गया था।‘वर्ष 1995 में डिपॉजिटरी अध्यादेश आने के बाद एनएसडीएल का गठन हुआ जिसके बाद शेयरों के डिमैटेरियलाइजेशन यानी उन्हें डिजिटल रूप में रखने की शुरुआत हो गई।

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भट ने कहा, ‘डिमैटेरियलाइजेशन (शेयरों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखना) की शुरुआत के बाद बाजार में फर्जी शेयरों की मौजूदगी खत्म हो गई।‘ उन्होंने कहा कि ढुलाई एवं आवागमन (लॉजिस्टिक) से जुड़ी समस्या के कारण खरीदारी के बाद भी कई महीनों तक शेयर निवेशकों तक नहीं पहुंच पाते थे। भट ने कहा, ‘शेयर पहुंच भी जाते थे तो कभी हस्ताक्षर में तो कभी दूसरी त्रुटियां होती थीं।‘ डिमैटेरियलाइजेशन के बाद यह सुनिश्चित हो गया कि शेयर खरीद लिए गए तो फिर आगे किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी और आपको शेयर मिलेंगे ही।

एनएसई ने वर्ष 1994 में काम शुरू किया जिसके बाद शेयर ब्रोकिंग उद्योग भी पेशेवर तरीके से काम करने लगा।

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मेहरा कहती हैं, ‘बीएसई पर एक तरह से ब्रोकरों का ही बोलबाला था। तब शेयर ब्रोकर बनने के लिए किसी तरह की शर्त भी पूरी नहीं करनी होती थी। स्टॉक एक्सचेंजों में कॉरपोरेट मेंबरशिप नाम की कोई चीज नहीं हुआ करती थी और केवल प्रॉपराइटरशिप (मालिकाना नियंत्रण) और पार्टनरशिप (साझेदारी) की ही अनुमति थी। एनएसई की स्थापना के बाद ही ब्रोकरेज कारोबार में कॉरपोरेट मेंबरशिप की शुरुआत हुई।‘

बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के दौरान आर्थिक वृद्धि ने रफ्तार पकड़ी। इस दौरान पहले चार वर्षों में देश की सालाना आर्थिक वृद्धि दर 7.9  फीसदी तक पहुंच गई थी। हालांकि, 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के बाद यह कम होकर 6.9 फीसदी रह गई थी।

First Published - December 27, 2024 | 11:16 PM IST

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