उच्चतम न्यायालय ने देश के सबसे बड़े कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को फटकार लगाई है। एसबीआई पर अदालत ने यह सख्ती इसलिए दिखाई क्योंकि वह चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारियां जमा करने के लिए और अधिक समय चाह रहा था। न्यायालय ने बैंक को समय देने से साफ इनकार कर दिया और मंगलवार, 12 मार्च तक सभी जानकारियां भारत निर्वाचन आयोग को सौंपने का फरमान सुना दिया।
एसबीआई चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारियां देने के लिए 30 जून, 2024 तक का समय चाह रहा था। मगर शीर्ष न्यायालय ने उसकी यह याचिका खारिज कर दी। एसबीआई को 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 तक की अवधि के चुनावी बॉन्ड की जानकारियां सौंपने का निर्देश दिया गया था। माना जा रहा है कि निर्वाचन आयोग 15 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर इस संबंध में जानकारियां प्रकाशित कर देगा।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारियां देने के लिए एसबीआई को अतिरिक्त समय नहीं दिया जा सकता। इससे संबंधित उसकी याचिका रद्द की जाती है। एसबीआई को 12 मार्च, 2024 को कामकाज का समय समाप्त होने तक सारी जानकारियां देने का निर्देश दिया गया है। निर्वाचन आयोग को भी निर्देश दिया जाता है कि वह 15 मार्च, 2024 को शाम 5 बजे तक सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे।’
न्यायालय ने एसबीआई से सवाल किया कि चुनावी बॉन्ड से संबंधित 15 फरवरी के उसके आदेश का अनुपालन करने के लिए उसने क्या कदम उठाया है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘एसबीआई के शपथ पत्र में इस बात का कहीं उल्लेख नहीं है। हम एसबीआई से पारदर्शिता की उम्मीद रखते हैं।’
शीर्ष न्यायालय ने 15 फरवरी को जारी अपने एक आदेश में एसबीआई को चुनावी बॉन्ड जारी करने से तत्काल रोक दिया था। इसके अलावा न्यायालय ने ऐसे बॉन्ड खरीदने वाले लोगों एवं संस्थानों और प्राप्तकर्ताओं के नाम 6 मार्च तक निर्वाचन आयोग को सौंपने के लिए कहा था।
न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को 13 मार्च तक सारी जानकारियां प्रकाशित करने के लिए कहा था। मगर न्यायालय द्वारा निर्धारित समयसीमा समाप्त होने से कुछ दिन पहले ही एसबीआई ने इसके लिए 30 जून तक की मोहलत मांगी।
एसबीआई ने इस संबंध में दायर अपनी याचिका में तर्क दिया कि चुनावी बॉन्ड से जुड़ी तकनीकी बातों को समझना और दानकर्ता और दान की राशि का मिलान करना एक पेचीदा प्रक्रिया है।
न्यायालय ने बैंक को आगाह भी किया और कहा कि अगर उसने जान बूझकर नवीनतम आदेश का अनुपालन नहीं किया तो उसके खिलाफ न्यायालय का आदेश नहीं मानने पर कार्रवाई की जाएगी।