दक्षिण दिल्ली के चहल-पहल भरे शहरी इलाके में, कभी चमचमाता रहा एक शॉपिंग हब अब वीरान पड़ा है, जो अपने सुनहरे दिनों का सिर्फ एक ख़ामोश साया बनकर रह गया है। 35 एकड़ में फैला हुआ अंसल प्लाजा, जो इस इलाके के सबसे पुराने मॉलों में से एक है, आज खालीपन से गूंजता है।
1999 में एंड्रूज गंज (Andrews Ganj) में खुले इस मॉल में सालों तक हर दिन और वीकेंड पर भी लोगों की भीड़ उमड़ती थी। इसके तीन मंजिला शॉपर्स स्टॉप में तो जगह ढूंढना भी मुश्किल हो जाता था। वहीं, मैकडॉनल्ड्स के आउटलेट में भी बैठने के लिए कुर्सी मिलना किस्मत का ही खेल था। आइसक्रीम कोन या क्रिस्पी कॉर्न कप लिए हुए युवा कपल्स, दोस्तों के ग्रुप और बच्चों वाले परिवार अक्सर इसके एम्फीथिएटर की सीढ़ियों पर बैठे दिख जाते थे।
अंसल प्लाजा की गिरावट उपेक्षा की एक खराब तस्वीर पेश करती है और यह देश भर के कई शॉपिंग सेंटर्स की समस्या की ओर भी इशारा करती है। दिल्ली नेशनल कैपिटल रीजन (NCR) में कई अन्य शॉपिंग सेंटर्स भी अंसल प्लाजा जैसी ही स्थिति का सामना कर रहे हैं, इन्हें “भूत मॉल” कहा जाता है – इन मॉलों में 40% से ज़्यादा दुकानें खाली पड़ी हैं।
नोएडा में बने इटली की खूबसूरती को दर्शाता ग्रैंड वेनिस मॉल इसका एक और बड़ा उदाहरण है। इसकी गोंडोला राइड्स (नाव की सवारी), बॉलिंग एले (गेंदबाजी का मैदान), और स्नो-थीम वाले पार्क अब लोगों को उतना आकर्षित नहीं करते हैं। इसी तरह, ग्रेटर कैलाश में स्थित JMD कोहिनूर मॉल भी बदलते ग्राहकों की पसंद के बीच अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
रियल एस्टेट कंसल्टेंसी फर्म, नाइट फ्रैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भूत मॉल की संख्या में 2022 की तुलना में 59% की वृद्धि हुई है। टियर 1 शहरों में ऐसे शॉपिंग सेंटर्स की सबसे बड़ी हिस्सेदारी दिल्ली NCR में है, जहां 5.3 मिलियन वर्ग फुट (msf) जगह खाली पड़ी है, जो 2022 के 3.4 msf से 58% ज्यादा है।
इन मॉलों के पतन के कई कारण हैं, जिनमें अत्यधिक निर्माण, बदलते ग्राहक व्यवहार, खराब मैनेजमेंट, स्ट्रेटा स्वामित्व (एक इमारत में अलग-अलग मालिकों का स्वामित्व) और पुराना डिज़ाइन या थीम शामिल हैं।
विवेक राठी, नाइट फ्रैंक इंडिया के राष्ट्रीय निदेशक-शोध का कहना है कि, “आज के रिटेल लैंडस्केप में इन चुनौतियों का सामना करने के लिए रणनीतिक योजना, इनोवेशन और एडेप्टेशन की जरूरत है।”
मॉल मैनेजमेंट में खामी!
ऐसा लगता है कि मॉल प्रशासन के खराब मैनेजमेंट की वजह से आने वाले लोगों की संख्या बहुत कम हो गई है। इससे दुकानों की बिक्री पर असर पड़ रहा है और दुकानदारों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ रही हैं।
अंसल प्लाजा के एक सुनसान से कोने में बने रेस्टोरेंट के मैनेजर ने बताया कि वहां आने वालों की संख्या में बहुत कमी आई है। उन्होंने कहा कि, “हमारे पास ज्यादातर ऑर्डर आसपास के इलाकों से Zomato के जरिए आते हैं। नए ग्राहक लाने के लिए मॉल कोई पहल नहीं कर रहा है.” उनका अनुमान है कि अंसल प्लाजा में रोजाना औसतन सिर्फ 300 लोग ही आते हैं।
साल 2000 से अंसल प्लाजा में शॉल बेचने वाली दुकान शॉ ब्रदर्स के एक प्रवक्ता ने बताया कि उनकी बिक्री में 80 प्रतिशत की गिरावट आई है। उनका कहना है कि, “यहां खरीदार ही नहीं आते। जो लोग मॉल आते भी हैं, तो ज्यादातर स्पा और क्लब जाने के लिए आते हैं। पूरे मॉल में सिर्फ एक ही शौचालय काम करता है। किराया मिलता रहे, तो रखरखाव की किसी भी शिकायत को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।”
कुछ समय पहले फ्रेंच स्पोर्ट्स का सामान बेचने वाली दुकान डेकाथलॉन ने अंसल प्लाजा में थोड़े समय के लिए ग्राहक संख्या बढ़ाई थी, लेकिन कुछ महीने पहले ही वो दुकान बंद हो गई।
कई मालिक, एक बड़ी समस्या!
इन मॉलों की लगातार जद्दोजहद की एक बड़ी वजह कई मालिकों के बीच सहमति न बन पाना है। ज्यादातर इन बड़ी इमारतों को कई अलग-अलग लोगों को बेच दिया जाता है। ऐसे में मॉल को बेचना हो या फिर उसे चलाने के लिए जरूरी खर्च पर सहमति जतानी हो, सभी मालिकों को एक राय पर लाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
रथि का कहना है कि ऐसे मामलों में “Sunk cost fallacy” भी अहम भूमिका निभाता है, जिसकी वजह से समस्याग्रस्त संपत्तियों को लंबे समय तक चलाया जाता है। (“Sunk cost fallacy” का मतलब है कि निवेशक किसी प्रोजेक्ट को छोड़ने में हिचकिचाते हैं, क्योंकि उन्होंने उसमें पहले ही बहुत ज्यादा पैसा लगा दिया होता है।)
कुछ मॉल तो तरक्की कर रहे हैं!
कुछ मॉल संघर्ष कर रहे हैं, वहीं कुछ दूसरों को काफी सफलता मिल रही है। शॉपिंग सेंटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, साकेत के सिलेक्ट सिटी वॉक में 100 प्रतिशत दुकानें भरी हुई हैं और वहां हफ्ते के दिनों में औसतन 12,000 से 14,000 लोग आते हैं, जबकि वीकेंड पर यह संख्या 22,000 से 25,000 हो जाती है।
द्वारका के वेगास मॉल में 98 प्रतिशत दुकानें भरी हुई हैं और वहां 184 से ज्यादा भारतीय और विदेशी ब्रांड्स की दुकानें हैं। वहां हफ्ते के दिनों में करीब 26,000 लोग आते हैं, जबकि वीकेंड पर यह संख्या 50,000 हो जाती है। वसंत कुंज स्थित DLF प्रोमेनेड में 97 प्रतिशत दुकानें भरी हुई हैं और वहां हफ्ते के दिनों में औसतन 25,000 लोग आते हैं, जबकि वीकेंड पर यह संख्या 39,000 हो जाती है।
वहीं वैशाली के अंसल प्लाजा में आने वाले लोगों की संख्या में बहुत ज्यादा अंतर दिखता है। हफ्ते के दिनों में वहां सिर्फ 300 से 450 लोग आते हैं, जबकि वीकेंड पर यह संख्या करीब 500 हो जाती है। इससे यह पता चलता है कि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक अब लग्जरी ब्रांड्स और खास अनुभव देने वाली दुकानों की तलाश कर रहे हैं।
यहां विशल मेगा मार्ट के डिपार्टमेंट मैनेजर लकी सक्सेना का कहना है कि, “जो भी लोग यहां आते हैं, वो सिर्फ विशाल की वजह से आते हैं। मीराज़ सिनेमा खुलने से भी थोड़ी मदद मिली है।”
CBRE के चेयरमैन और चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर-इंडिया, साउथ-ईस्ट एशिया, मिडिल ईस्ट & अफ्रीका, अंशुमन मगज़ीन के मुताबिक ग्राहक और दुकानदार दोनों अब सिर्फ शॉपिंग से ज्यादा की तलाश कर रहे हैं। वो एंटरटेनमेंट, फूड और अच्छी रिटेल ब्रांड्स से जुड़ा हुआ अनुभव चाहते हैं।
वहीं अंसल प्लाजा, वैशाली में सफारी के एक सेल्समैन ने बताया कि भले ही इस मॉल को फैक्ट्री आउटलेट माना जाता है, जहां काफी डिस्काउंट मिलता है, फिर भी यहां खरीदारों की संख्या ज्यादा नहीं है।
दुकान शिफ्ट न करने की भी मजबूरी!
यह पूछने पर कि वे इस तरह के कम चलने वाले मॉल में दुकान क्यों चलाते हैं, एक दुकानदार ने कहा कि, “दुकानों में दुकानदारों ने काफी निवेश किया होता है, इसलिए किसी दूसरी जगह जाना मुश्किल होता है।” उन्होंने आगे कहा कि बड़े ब्रांड अपने घाटे की भरपाई दूसरी दुकानों और ऑनलाइन बिक्री से कर लेते हैं, लेकिन छोटी दुकानें या अस्थायी दुकानें ऐसा नहीं कर पातीं।
आने वाले लोगों की कम संख्या के बावजूद दुकानदारों की शिकायत है कि किराए की दरें बहुत ज्यादा हैं। ग्रेटर कैलाश के JMD कोहिनूर मॉल में आईएएमए ज्वेल्स की ज्वेलरी डिज़ाइनर स्वाति तिवारी का कहना है कि वहां के हाई-फाई इलाके की वजह से किराए की दरें ज्यादा बनी हुई हैं।
हटके तरीके!
अब ग्राहकों के पास खरीदारी और मनोरंजन के लिए ढेरों विकल्प मौजूद हैं, इसलिए मॉल उन्हें लुभाने के लिए अलग-अलग रणनीतियां अपना रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, नोएडा स्थित स्पेक्ट्रम मेट्रो हाई स्ट्रीट मॉल अपने ग्राहकों को पार्किंग की सुविधा देता है।
स्पेक्ट्रम@मेट्रो के वाइस प्रेसिडेंट-सेल्स और मार्केटिंग, अजेंद्र सिंह ने बताया, “हम लगातार इवेंट आयोजित कर रहे हैं, मार्केटिंग की बेहतरीन रणनीतियां अपना रहे हैं और मनोरंजन के विकल्प भी मुहैया करा रहे हैं।” इस मॉल में रोजाना 10,000 से 15,000 लोग आते हैं और वहां 60 प्रतिशत दुकानें भरी हुई हैं।
इस तरह के शॉपिंग सेंटर्स जानते हैं कि अगर ग्राहकों की पसंद बदलती है, तो तस्वीर बहुत तेजी से बदल सकती है। अंसल प्लाजा जैसे मॉल इस बात की लगातार याद दिलाते हैं।