बाजरे के लिए अनुसंधान सहयोग को मजबूत करने के मकसद से भारत की जी-20 में मोटे अनाज से जुड़ी पहल- ‘ महर्षि’ को चीन की तरफ से बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। चीन को जी-20 घोषणापत्र में इस नाम को शामिल किए जाने पर एतराज है।
अप्रैल में जी-20 कृषि क्षेत्र के प्रमुख वैज्ञानिकों की बैठक (एमएसीएस) के बाद जारी परिणाम दस्तावेज में संस्कृत में संक्षिप्त नाम महर्षि (मिलेट्स ऐंड अदर एनशिएंट ग्रेन्स इंटरनैशनल रिसर्च इनिशिएटिव) को शामिल किया गया था, लेकिन जून में जी-20 कृषि मंत्रियों की बैठक के बाद जारी अध्यक्ष के संदेश में इसे शामिल नहीं किया गया था। जी-20 के एक भारतीय प्रतिनिधि ने कहा, ‘चीन ने बाजरे से जुड़ी शोध पहल के संस्कृत लघु नाम पर आपत्ति जताई है। हालांकि उसे प्रस्ताव से कोई समस्या नहीं है। हमें संयुक्त घोषणा पत्र से इस पहल के संक्षिप्त नाम को बाहर करना पड़ सकता है।’
एमएसीएस ने कहा था कि महर्षि नाम की पहल के तहत, मोटे अनाज और अन्य कम उपयोग वाले अनाज सहित जलवायु के अनुकूल पौष्टिक अनाज से जुड़े अनुसंधान में सहयोग की सुविधा देगा। इसमें कहा गया, ‘यह संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा शुरू किए गए अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 कार्यक्रम के तहत किए जाने वाले प्रयासों का पूरक होगा।’
हालांकि, इस संक्षिप्त नाम का उल्लेख किए बिना, जी-20 कृषि मंत्रियों के संदेश दस्तावेज में कहा गया है, ‘हम जी-20 के ठोस पहल के लिए भारत की सराहना करते हैं जिसमें सुरक्षा और पोषण से जुड़े डेक्कन उच्च-स्तरीय सिद्धांत 2023 और वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पोषण बढ़ाने के उद्देश्य से मोटे अनाज और अन्य प्राचीन अनाजों पर अनुसंधान के लिए 12वीं जी-20 एमएसीएस अंतरराष्ट्रीय पहल शामिल है।’
इससे पहले, चीन ने जी-20 मंत्रिस्तरीय बैठक के निष्कर्ष से जुड़े दस्तावेजों में संस्कृत वाक्यांश ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के उपयोग पर आपत्ति जताई थी और यह तर्क दिया कि संस्कृत को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 11 अगस्त को एक प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट किया कि जी-20 बैठकों की कामकाजी भाषा अंग्रेजी बनी हुई है। उन्होंने कहा, ‘जैसा कि आप जानते हैं, जी-20 अध्यक्षता का विषय अंग्रेजी में ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ है। यह हमारी सभ्यता के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के हमारे सभ्यतागत लोकाचार पर आधारित है, जिसे व्यापक समर्थन मिला है और यह भारत द्वारा जी-20 एजेंडा में लाई गई कई पहलों में शामिल है और यह जी-20 लोगो में भी परिलक्षित होता है, जिसमें संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी में भी शब्द हैं।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोटे अनाजों को बढ़ावा देने पर जोर देते हैं और इन्हें प्यार से ‘श्री अन्ना’ कहते हैं। भारत की अध्यक्षता के दौरान जी-20 से संबंधित कार्यक्रमों में मोटे अनाजों आधारित मेन्यू को शामिल किया गया। इसके अतिरिक्त, जी-20 नेताओं के पति/पत्नी को इस सप्ताह के अंत में पश्चिम दिल्ली के पूसा रोड स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के परिसर का दौरा करने का मौका मिलेगा जहां उन्हें देश भर के मशहूर खानसामे द्वारा तैयार बाजरा के व्यंजनों का आनंद लेने का मौका होगा।
बाजरा अनुसंधान पहल के लिए सचिवालय, हैदराबाद में मौजूद भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान में बनाने का प्रस्ताव है, जिसमें अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय के लिए अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान, वन सीजीआईएआर, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और अनुसंधान संस्थानों से तकनीकी सहायता मिलेगी। एमएसीएस के निष्कर्ष दस्तावेज में कहा गया है, ‘संगठित प्रयास न होने के कारण कई अनाजों के होने वाले असर के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल है। इस समस्या को हल करने के लिए, एक ढांचा जरूर तैयार किया जाना चाहिए जिसे इस पहल के तहत अनाज पर लागू किया जा सके।’
इस पहल में सार्वजनिक और निजी संगठनों के साथ सहयोग करने की भी बात है जो इन अनाजों से जुड़े अनुसंधान को आगे बढ़ाने के प्रयास कर रहे हैं। इसका उद्देश्य फसलों पर काम करने वाले शोधकर्ताओं और संस्थानों को जोड़ने के लिए तंत्र स्थापित करना है ताकि अनुसंधान के निष्कर्षों का प्रसार किया जा सके और अनुसंधान में अंतर और इसकी जरूरतों की पहचान की जा सके।
शोधकर्ताओं को जोड़ने, डेटा का आदान-प्रदान करने और संचार उत्पादों और विषयगत संदेशों को साझा करने के लिए एक वेब मंच स्थापित करने का भी प्रस्ताव है ताकि सहज-सुलभ तरीके से अनुसंधान और सूचना साझा करने की प्रक्रिया प्रोत्साहित की जा सके।