देश भर में ऑपरेशन से बच्चे पैदा होने के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। हाल ही में आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं के अध्ययन में खुलासा हुआ कि सीजेरियन सेक्शन (सी-सेक्शन) यानी बड़े ऑपरेशन से डिलिवरी में खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
बीएमसी प्रेग्नैंसी ऐंड चाइल्ड बर्थ जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि गर्भावस्था के दौरान आने वाली दिक्कतें तो कम हुई हैं, परंतु 2016 से 2021 के बीच पांच वर्ष की अवधि में बड़े ऑपरेशन से बच्चे पैदा होने की दर 17.2 प्रतिशत से बढ़कर 21.5 प्रतिशत पहुंच गई।
मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं के सहयोग से किए गए अध्ययन में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 से 2019-21 के बीच के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
रोचक तथ्य यह है कि सी-सेक्शन में यह वृद्धि उस स्थिति के बावजूद हुई है जब महिलाओं में गर्भावस्था संबंधी परेशानियां कम सामने आईं। इससे पता चलता है कि चिकित्सा कारणों से बच्चा पैदा करने के लिए बड़े ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ रही, बल्कि इसके लिए गैर-चिकित्सीय कारक अधिक जिम्मेदार हैं।
चिकित्सीय कारणों से कभी-कभी बच्चे की सुरक्षित डिलिवरी के लिए बड़े ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है, लेकिन गैर जरूरी कारकों के चलते ऑपरेशन से डिलिवरी के कारण बच्चे और मां दोनों की जिंदगी के लिए खतरा रहता है। अध्ययन में यह बात भी उभर कर सामने आई कि निजी अस्पतालों में होने वाली कुल डिलिवरी में लगभग आधी
सी-सेक्शन यानी बड़े ऑपरेशन से अंजाम दी जाती हैं। शोध में निजी और सरकारी अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलिवरी की दर में बड़ा अंतर देखने को मिला है। सरकारी अस्पतालों के मुकाबले निजी स्वास्थ्य केंद्रों में चार गुना डिलिवरी सी-सेक्शन से हुईं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में तो निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलिवरी की संख्या दस गुना अधिक पाई गई, जबकि तमिलनाडु में यह आंकड़ा तीन गुना पाया गया।शोध में यह भी पता चला कि अधिक मोटी और अधिक उम्र (35-49 वर्ष) की महिलाओं में सीजेरियन से डिलिवरी की दर दोगुना पाई गई।
इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में अधिक शिक्षित महिलाओं में भी सीजेरियन से बच्चे पैदा होने की दर अधिक पाई गई। इसके अतिरिक्त सरकारी अस्पतालों में कर्मचारियों और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण भी महिलाएं डिलिवरी के लिए निजी अस्पतालों का रुख करती हैं। इस कारण वहां सीजेरियन डिलिवरी की दर अधिक दर्ज हो रही है।
प्रो. वीआर मुरलीधरन जोर देकर कहते हैं, ‘सी-सेक्शन के लिए यह मायने रखता है कि डिलिवरी कहां की गई- सरकारी अस्पताल में या निजी में। इससे यह भी संकेत मिलता है कि ऑपरेशन के लिए चिकित्सीय जरूरत प्राथमिक कारक नहीं था।’ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) 10 से 15 प्रतिशत के बीच सी सेक्शन की सलाह देता है। आईआईटी मद्रास के शोध से पता चलता है कि भारत में सीजेरियन से डिलिवरी की दर बढ़ रही है। इसके पीछे के कारणों की जांच होनी चाहिए।
शोध कताओं ने इस यह भी सिफारिश की है कि नीति निर्धारकों को क्षेत्रीय भिन्नता और चिकित्सीय जरूरत को देखते हुए सी-सेक्शन से संबंधित दिशानिर्देश लागू करने चाहिए। उन्होंने तमिलनाडु के निम्न आय वर्ग की महिलाओं की निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन से डिलिवरी की बढ़ती दर पर गंभीरता से ध्यान दिए जाने की जरूरत पर बल दिया।