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बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची विवाद पर सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को करेगा सुनवाई , विपक्ष की याचिका पर होगी बहस

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए दस जुलाई की तारीख तय की है।

Last Updated- July 07, 2025 | 11:26 PM IST
Supreme Court
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

उच्चतम न्यायालय बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची के ‘आंशिक कार्य दिवस’ पीठ ने सोमवार को कई याचियों की ओर से कपिल सिब्बल की अगुआई में वरिष्ठ वकीलों की दलीलों को सुना और इसके बाद वह याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई करने के लिए राजी हुआ।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सांसद मनोज झा की ओर से पेश हुए सिब्बल ने पीठ से इन याचिकाओं पर निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करने का अनुरोध करते हुए कहा कि यह समयसीमा (नवंबर में प्रस्तावित चुनावों के मद्देनजर) के भीतर किया जाने वाला असंभव कार्य है। एक अन्य याची की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्य में लगभग आठ करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से लगभग चार करोड़ मतदाताओं को इस प्रक्रिया के तहत अपने दस्तावेज जमा करने होंगे। सिंघवी ने कहा, ‘समयसीमा इतनी सख्त है कि अगर आपने 25 जुलाई तक दस्तावेज जमा नहीं किए, तो आपको बाहर कर दिया जाएगा।’

एक अन्य याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि चुनाव आयोग के अधिकारी इस प्रक्रिया के लिए आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र स्वीकार नहीं कर रहे हैं। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि इस मामले को गुरुवार को सूचीबद्ध किया जाएगा और कहा कि फिलहाल जो समय-सीमा तय की गई है, उसकी कोई वैधानिकता नहीं है क्योंकि अभी तक चुनावों की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। पीठ ने याचियों से कहा कि वे भारत निर्वाचन आयोग के वकील को अपनी याचिकाओं की पूर्व सूचना दें।

राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा समेत कई अन्य यताओं ने उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दायर की हैं जिसमें बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का निर्देश देने वाले निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती दी गई है। राजद सांसद झा ने अपनी याचिका में कहा कि निर्वाचन आयोग का 24 जून का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), अनुच्छेद 325 (जाति, धर्म और लिंग के आधार पर किसी को भी मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जा सकता) और अनुच्छेद 326 (18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका प्रत्येक भारतीय नागरिक मतदाता के रूप में पंजीकृत होने के योग्य है) का उल्लंघन करता है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।   

First Published - July 7, 2025 | 10:42 PM IST (बिजनेस स्टैंडर्ड के स्टाफ ने इस रिपोर्ट की हेडलाइन और फोटो ही बदली है, बाकी खबर एक साझा समाचार स्रोत से बिना किसी बदलाव के प्रकाशित हुई है।)

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