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मिलान फैशन शो विवाद के बाद Prada टीम पहुंची कोल्हापुर, कोल्हापुरी चप्पल विवाद पर कारीगरों से की बातचीत

कोल्हापुर दौरे से पहले, प्राडा की टीम ने 11 जुलाई को महाराष्ट्र चेंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) के अधिकारियों से ऑनलाइन बैठक की थी।

Last Updated- July 17, 2025 | 7:18 AM IST
kolhapuri chappal
Representative Image

इटैलियन लग्जरी ब्रांड-प्राडा और कोल्हापुरी चप्पल का विवाद सुलझता नजर आ रहा है। प्राडा की इटली से चार अधिकारियों की टीम ने कोल्हापुरी चप्पल बनाने की कला को समझने, कारीगरों की नाराजगी का सबब जानने और मुद्दे पर बात करने के लिए मंगलवार और बुधवार को महाराष्ट्र के कोल्हापुर का दौरा किया।

टीम में मेन्स टेक्निकल ऐंड प्रोडक्शन डिपार्टमेंट (फुटवियर डिवीजन) के निदेशक पाओलो टिवेरोन, पैटर्न मेकिंग मैनेजर (फुटवियर डिवीजन) डेनियल कोंटू, बाहरी सलाहकार एंड्रिया पोलास्त्रेली और रॉबर्टो पोलास्त्रेली शामिल रहे। इस यात्रा से पहले प्राडा की टीम ने 11 जुलाई को महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर के अधिकारियों के साथ ऑनलाइन बैठक की थी।

टीम ने कोल्हापुर और उसके आसपास के चार क्लस्टरों- सुभाष नगर, जवाहर नगर, कंदलगाँव और कागल गांव का दौरा किया, जहां कोल्हापुरी चप्पलें बनाई जाती हैं। यहां कोल्हापुरी चप्पलें बनाने वाली महिला कारीगरों का समूह कार्य कर रहा है।  प्राडा की टीम का यह दौरा इसके स्प्रिंग समर 26 कलेक्शन के विवाद के बाद हुआ है, जिसमें पिछले महीने मिलान फैशन वीक के दौरान मॉडलों को कोल्हापुरी चप्पलों के समान फुटवियर में चलते हुए देखा गया था। कोल्हापुरी चप्पल से काफी मिलती-जुलती फुटवियर की कीमत लगभग 100,000 रुपये है। इससे फैशन हाउस को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, क्योंकि उसने फुटवियर बनाने की प्रेरणा के लिए भारत को श्रेय नहीं दिया था।

एमएसीसीआईए के अध्यक्ष ललित गांधी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘प्राडा की टीम पिछले दो दिनों से भारत में है और कोल्हापुरी चप्पलें बनाने की हमारी उत्पादन सुविधाओं का मूल्यांकन करने के लिए यहां आई है। प्राडा जिस मानक पर अपने फुटवियर बनाती है, वह हमारे से बहुत अलग है। वे वापस जाएंगे और फिर उसी पर अपनी रिपोर्ट लेकर आएंगे।’

गांधी ने यह भी कहा कि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो प्राडा की बिजनेस टीम इस प्रस्ताव को आगे कैसे बढ़ाया जाए, यह तय करने के लिए अगस्त में मुंबई का दोबारा दौरा करेगी।

उन्होंने कहा कि एमएसीसीआईए ने प्राडा की टीम को महाराष्ट्र से चार और उत्पादों को अपने उत्पादों की सूची में जोड़ने की सिफारिश की है, जिसमें इस क्षेत्र का पर्याय गहने भी शामिल हैं।

बीते जून में एमएसीसीआईए ने प्राडा को उसके फैशन शो में कोल्हापुरी चप्पल के उपयोग के बारे में लिखा था और पत्र के जवाब में प्राडा ने कहा, ‘हम स्वीकार करते हैं कि हाल ही में प्राडा मेन्स 2026 फैशन शो में प्रदर्शित सैंडलें पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित फुटवियर से प्रेरित हैं, जिसकी सदियों पुरानी विरासत है। हम ऐसी भारतीय शिल्प कौशल के सांस्कृतिक महत्त्व को गहराई से पहचानते हैं।’

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पत्र में यह भी कहा गया है, ‘हम डिजाइन प्रथाओं, सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और स्थानीय भारतीय कारीगर समुदायों के साथ एक सार्थक आदान-प्रदान के लिए बातचीत का रास्ता खोलने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जैसा कि हमने अतीत में अन्य मामलों में किया है ताकि उनकी शिल्प कौशल को उचित मान्यता सुनिश्चित की जा सके।’

गांधी ने कहा प्राडा टीम अब अपने कॉर्पोरेट कार्यालय को रिपोर्ट सौंपेगी और उसके आधार पर प्राडा के वरिष्ठ अधिकारी अगले चरण में कोल्हापुर का दौरा कर सकते हैं। प्राडा की टीम ने बुधवार को भी कोल्हापुर में जानकारी जुटाने के साथ जिलाधिकारी से भी मुलाकात की । प्राडा के प्रतिनिधि, चेंबर और स्थानीय कारीगारों के बीच हुई बातचीत में एक बात में सहमित थी कि हमें विवाद नहीं करना और आगे मिलकर काम करना है। हालांकि साझेदारी किस तरह की होगी यह अभी स्पष्ट नहीं किया गया। गांधी ने कहा कि विशेषज्ञ दल का दौरा अपने आप में सकारात्मक संकेत है। प्राडा द्वारा कोल्हापुर तक एक तकनीकी टीम भेजना उनकी ओर से गंभीर रुचि दर्शाता है। यह शायद पहली बार है जब प्राडा का कोई प्रतिनिधिमंडल महाराष्ट्र आया है।

उन्होंने बताया कि प्राडा ने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित होकर एक उत्पाद बनाया है। जब हमने रनवे पर इस डिजाइन को देखा, तो हमने आपत्ति जताई और उनसे इसकी उत्पत्ति बताने को कहा। उन्होंने हमें ईमेल के जरिए जवाब दिया और स्वीकार किया कि उनकी थीम कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित थी। दौरा करने वाली टीम कोल्हापुर के खुदरा बाजार भी गई और दुकानदारों से बातचीत की। इस बीच अदालत ने खारिज की जनहित याचिका बंबई उच्च न्यायालय ने प्राडा के खिलाफ कोल्हापुरी चप्पलों के अनधिकृत इस्तेमाल के लिए दायर जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी।

मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने के  पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले छह वकीलों के अधिकार क्षेत्र और वैधानिक अधिकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे पीड़ित व्यक्ति या कोल्हापुरी चप्पल के पंजीकृत प्रोपराइटर या स्वामी नहीं हैं। अदालत ने कहा कि आप इस कोल्हापुरी चप्पल के मालिक नहीं हैं। आपका अधिकार क्षेत्र क्या है और जनहित क्या है? कोई भी पीड़ित व्यक्ति मुकदमा दायर कर सकता है। इसमें जनहित क्या है? याचिका में कहा गया था कि कोल्हापुरी चप्पल को वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम के तहत भौगोलिक संकेत (जीआई) के रूप में संरक्षित किया गया है। इसके बाद पीठ ने कहा कि जीआई टैग के पंजीकृत स्वामी अदालत में आकर अपनी कार्रवाई के बारे में बता सकते हैं।

First Published - July 17, 2025 | 7:18 AM IST

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