केंद्र सरकार करीब 3,500 नई ई-बसें खरीदने के लिए निविदा जारी करने की तैयारी कर रही है। बिजनेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक ये बसें उन 9 शहरों में चलाई जाएंगी, जिनकी आबादी 40 लाख से ऊपर है।
भारी उद्योग मंत्रालय (एमएचआई) ने एक महीने पहले ई-बसों के लिए आर्थिक सहायता बढ़ाकर 4,307 करोड़ रुपये करने का फैसला किया था, जबकि बजट में इसके लिए 3,545 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। उसके बाद सरकार ने बसें खरीदने का फैसला किया है।
मई में एमएचआई ने 10,000 करोड़ रुपये की इलेक्ट्रिक वाहन (EV) प्रोत्साहन योजना फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड ऐंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम-2) में बड़ा बदलाव करते हुए तिपहिया, चार पहिया वाहनों और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए सब्सिडी में कटौती कर दी थी।
पिछले सप्ताह बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘इस महीने हमने राज्य/शहर ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (एसटीयू) से दो दौर में परामर्श किया है और उनसे कहा गया है कि ई-बसों की अपनी जरूरतों का ब्योरा प्रस्तुत करें।’ उन्होंने कहा कि जल्द ही निविदा जारी होगी और हम उम्मीद कर रहे हैं कि ये एसटीयू एक महीने के भीतर अपनी जरूरतों का ब्योरा दे देंगे।
ये नौ शहर शामिल
इस योजना में 9 शहरों मुंबई, दिल्ली, बेंगलूरु, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नई, कोलकाता, सूरत और पुणे को शामिल किया गया है।
बसों की नई खेप की खरीद विशाखित कोषों से होगी, जो पहले की निविदा की प्रतिस्पर्धी बोली की बचत और कुछ एसटीयू द्वारा ऑर्डर रद्द किए जाने से मिली राशि से एकत्र हुई है।
ई-बसों की श्रेणी में 762 करोड़ रुपये डायवर्ट किए जाने के अलावा सरकार ने पहले की निविदाओं की प्रतिस्पर्धी बोली से 536 करोड़ रुपये बचाए हैं। इसके अलावा सरकार के पास 348 बसों का विकल्प भी है, जिसके ऑर्डर एसटीयू ने रद्द कर दिए थे।
इस योजना के तहत ई-बसों के लिए 20,000 रुपये प्रति किलोवॉट घंटे सब्सिडी दी जाती है, जो वाहन के लागत का अधिकतम 40 प्रतिशत और अधिकतम 2 करोड़ रुपये एक्स-फैक्टरी मूल्य की शर्तों के तहत होगा। फेम-2 के दिशानिर्देशों के मुताबिक एक ई-बस की बैटरी का आकार लगभग 250 केडब्ल्यूएच होना चाहिए। इस सब्सिडी से विनिर्माताओं की ई-बस की लागत करीब 50 लाख रुपये घट जाती है, जिससे यह डीजल बसों से किफायती हो जाती हैं।
एक इलेक्ट्रिक बस की लागत 1.2 करोड़ रुपये से ज्यादा होती है, जो डीजल बसों से करीब 5 गुना ज्यादा है। बहरहाल प्रतिस्पर्धी बोली से कुल सब्सिडी अनुमानित रूप से 50 लाख रुपये से घटकर 41 लाख रुपये के करीब रह जाएगी। इस योजना पर काम कर रहे एक अधिकारी ने कहा, ‘पहले की प्रतिस्पर्धी बोली के अनुभव के आधार पर हम निविदा जारी करने पर विचार कर रहे हैं। कुल 1,298 करोड़ रुपये (762 करोड़ रुपये डायवर्टेड और 536 करोड़ रुपये बचत के) बजट से 3,165 बसों की मांग पूरी करने में मदद मिलेगी।
इसके अलावा 348 बसों के ऑर्डर रद्द हुए हैं, उन्हें भी निविदा में शामिल किया जाएगा।’अतिरिक्त फंडों के साथ मंत्रालय सीईएसएल से एक बड़ी बस निविदा लाने को कहेगा। एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘जल्द ही सीईएसएल के माध्यम से इन बसों के लिए नई निविदा जारी की जाएगी।’
नई निविदा के बाद इस योजना के तहत ई-बसों का लक्ष्य बढ़कर 10,375 हो जाएगा। सरकार ने 7,210 बसों को पहले ही मंजूरी दे दी है। योजना के तहत 2019 में जारी 7,090 बसों के अतिरिक्त ये बसें हैं। बहरहाल एमएचआई के आंकड़ों के मुताबिक अब तक सिर्फ 2,435 ई-बसें चलाई जा रही हैं।
नए ऑर्डर से सीईएलएल को नैशनल ई-बस कार्यक्रम (एनईबीपी) के तहत चरणबद्ध तरीके से 50,000 ई-बसें चलाने की योजना में मदद मिलेगी। इस कदम से भारत को 2030 तक 40 प्रतिशत ई-बस चलाने और 2070 तक नेट न्यूट्रलिटी का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।
31 मई 2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक देश में 3,59,432 बसें पंजीकृत हैं और अप्रैल 2015 में फेम योजना शुरू किए जाने के बाद से इनमें से सिर्फ 4,506 इलेक्ट्रिक बसें (1.25 प्रतिशत) हैं।