वर्तमान परिदृश्य में अरविंदो फार्मा की स्थिति बेहद मजबूत दिख रही है।
देश की बड़ी फार्मा कंपनियों में से एक अरविंदो फार्मा, जो हैदराबाद में स्थित है, अब अमेरिका और यूरोप के विभिन्न देशों में पांव पसारने की जुगत में है।
करीब तीन साल पहले अरविंदो फार्मा ने सेमी-सिंथेटिक पेंसिलिन क्षेत्र में अपने कुल कारोबार का 80 फीसदी के आसपास अंशदान दिया था। दिनों-दिन विकास की सीढ़ियां चढ़ते हुए यह फार्मा कंपनी अब सेफालोसफोरिन (एंटीबॉयोटिक), एंटी-रेट्रोवायरल (एंटी-एड्स) और विभिन्न बीमारियों की रोकथाम के लिए तरह-तरह की टैबलेट्स और कैप्सूल्स का निर्माण कर रही है।
अब अरविंदो फार्मा की योजना एक मजबूत आधार तैयार कर राजस्व को बढ़ाने की है। इसी के मद्देनजर यह फार्मा कंपनी विदेशी बाजार में सेंध लगाने की तैयारी में जुट गई है।
सबसे आगे
अरविंदो फार्मा का नाम देश की अन्य बड़ी फार्मा कंपनियों में लिया जाता है। शायद इसका एक कारण यह भी है कि इस कंपनी के प्रोडक्ट पोर्टफोलियो में 250 प्रोडक्ट आते हैं। ये 250 प्रोडक्ट कंपनी की छह विभिन्न चिकित्सा संबंधी श्रेणियों में शामिल हैं। ये छह श्रेणियां हैं- एंटीबॉयोटिक, एंटी-रेट्रोवायरल, कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम, सेंट्रल नर्वस सिस्टम, गैस्ट्रोइंटेरोलॉजिकलक्स और एंटी-एलर्जिक।
फिलहाल कंपनी अपने मार्जिन को बेहतर करने के लिए प्रयासरत है। मार्जिन में सुधार लाने के लिए कंपनी सूत्रीकरण की ओर ध्यान दे रही है। इसके अलावा यह फार्मा कंपनी एंटी-इंफेक्टिव और लाइफस्टाल से संबंधित बीमारियों (कार्डियोवैस्कुलर, नर्वस सिस्टम, डाइबिटिज) से निजात दिलाने के लिए भी दृढ़संकल्प है।
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अगर कंपनी अपनी योजना को मूर्त रूप देने में सफल हो जाती है तो वित्तीय वर्ष 2010 तक कंपनी का टर्नओवर बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच जाएगी। इसका मतबल यह हुआ कि कंपनी के मौजूद टर्नओवर (40 फीसदी) में 15 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।
निर्यात बाजार
गौरतलब है कि साल 2006 में अरविंदो फार्मा ने 125 नई दवाओं के लिए आवेदन किया था। वे सभी आवेदन यूएस एफडीए जेनरिक ड्रग अप्रूवल के तहत किए गए थे। लेकिन कंपनी के 125 आवेदनों में से सिर्फ 45 आवेदनों को ही मंजूरी मिल पाई। अरविंदो फार्मा ने अमेरिकी बाजार में 30 उत्पादों को लॉन्च किया था।
कंपनी का यह भी मानना है कि वित्तीय वर्ष 2009 और 2010 तक अन्य फार्मा कंपनियों के मुकाबले काफी आगे निकल चुकी होगी। हालांकि अमेरिकी बाजार में अपने उत्पादों को लॉन्च करने को लेकर कंपनी थोड़ी सहमी हुई है और कीमतों को लेकर सतर्कता बरत रही है। सिर्फ अमेरिका में ही बल्कि कंपनी की योजना यूरोप के अनेक देशों में भी सेंध लगाने की है। अरविंदो फार्मा ने यूरोप में करीब 55 प्रोडक्ट के लिए गुहार लगाई थी।
निर्यात राजस्व बढ़ाना
देश की बड़ी फार्मा कंपनियों में से एक अरविंदो फार्मा की योजना विभिन्न फार्मा कंपनियों का अधिग्रहण करने की भी है। कंपनी अन्य फार्मा कंपनियों का अधिग्रहण इसलिए भी करना चाहती है ताकि यूरोपीय बाजार में उसकी मार्केटिंग संबंधी बुनियादी ढ़ाचों में सुधार लाया जा सके। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए अरविंदो फार्मा ने इटली की एक कंपनी टीएडी इटली का अधिग्रहण किया था।
टीएडी इटली के बास्केट में करीब 70 उत्पाद आते हैं। अब कंपनी की योजना वैश्विक बाजार में अपने आप को और अधिक से अधिक विस्तार करने की है। इसके अलावा अरविंदो फार्मा की अमेरिका स्थित सिफाजोन फार्मा नामक कंपनी से संयुक्त उपक्रम भी है। ये दोनों कंपनियां एफडीए द्वारा मंजूरी की गई सिफालोसफोरिन नामक दवा का संचालन करती हैं।
अरविंदो फार्मा यह उम्मीद कर रही है कि नई उत्पादों को लॉन्च करने और बाजार संबंधी बुनियादी जरूरतों में विस्तार करने से कंपनी के निर्यात शेयरों में बढ़ोतरी हो सकती है। फिलहाल निर्यात शेयरों में अरविंदो फार्मा का अंशदान 60 फीसदी है। अगर योजना के मुताबिक सब कुछ ठीक चलता रहा तो वित्तीय वर्ष 2009 तक कंपनी के निर्यात किए जाने वाले शेयर 70 फीसदी तक पहुंच जाएगा।
विस्तार
अरविंदो फार्मा अपने मार्जिन और राजस्व में बढ़ोतरी करने के लिए तरह-तरह की योजनाओं पर विचार कर रही है। फिलहाल कंपनी की योजना उनके बास्केट में 125 में से बाकी बचे उत्पादों के मंजूरी के लिए अथक प्रयास करना है।
भविष्य में अपने विस्तार को ध्यान में रखते हुए कंपनी ने हैदराबाद में चिकित्सा संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने की योजना बनाई है। इसके लिए कंपनी करीब 180 करोड़ रुपये निवेश करेगी। हैदराबाद में इस योजना को दो चरणों में पूरा किया जाएगा।