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पैटर्न को समझना कई मर्जों की दवा

Last Updated- December 08, 2022 | 4:47 AM IST

पिछले दिनों मैं मुंबई में था और एक बार फिर से शहर की आपाधापी में फंसा हुआ था।


मुझे अपनी कुछ मुलाकातें रद्द करनी पड़ीं और उन्हें फोन पर ही निपटाना पड़ा। उस वक्त मुझे बेहद ताजुब हुआ, जब एक कॉल करते समय सामने वाले ने फोन उठाते ही मेरी आवाज पहचान ली और मुझे नाम से पुकारा, जबकि मैंने उसे ‘हैलो’ ही कहा था।

इस वाकये से मुझे लगा कि आदमी का दिमाग कुछ ऐसी बातों के सिलसिले या पैटर्न को आसानी से समझ लेता है, जो उसके साथ कई बार घट चुकी हैं और वे चीजें उसे जरूरत पड़ने पर फौरन याद आ जाती हैं। चाहे वह किसी की आवाज हो, कोई चेहरा, शतरंज का बोर्ड, कोई नक्शा या बाजार का ऊपर नीचे जाना (पैटर्न), दिमाग सब कुछ पढ़ लेता है।

किसी भी पेशे से जुड़े कामयाब लोगों की जिंदगियों पर नजर डालें तो पता चलता है कि उनमें दो खास बातें हैं। एक तो वे बहुत पढ़ते हैं और दूसरे उनमें पैटर्न को पहचानने की बेहतर क्षमता होती है। हालांकि हम अब भी मनुष्य के इस हुनर को ठीक तरह से समझ नहीं पाए हैं।

पैटर्न को नहीं समझ पाने की वजह से ही राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल में स्वास्थ्य एवं मानव सेवा सचिव रहीं मार्गरेट हेकलर 1984 में एड्स की दवा खोज पाने से चूक गई थीं। हालांकि वर्ष 2008 के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि जल्द ही इस बीमारी का कोई इलाज ढूंढ लिया जाएगा।

अध्ययन यह भी बताता है कि एड्स की दवा ढूंढ पाने में भी पैटर्न को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। व्यावहारिक वित्त आम लोगों के मनोवैज्ञानिक नजरिये और रूढ़िवादी मूल्यों के बीच बहस को बल देता है। अगर ज्यामिति के फ्रैक्टल डिजायन को आधार बनाया जाए, तो मूल्यांकन के सिद्धांत को चुनौती मिलती है क्योंकि फ्रैक्टल के मुताबिक एक ही डिजायन खुद को दोहराती रहती है यानी एक निश्चित समयांतराल के बाद हम बुनियादी मूल्यांकन पर पहुंचते रहेंगे।

इसीलिए इसमें कोई तााुब की बात नहीं है कि रूढ़िवादी पिछले काफी समय से अब तक उन चीजों पर बहस करते आए हैं जो पैटर्न के आधार पर चलती हैं। पर जब सिर पर संकट आता है तभी हमें याद आता है और हम यह सोचने बैठते हैं कि आखिर हमारे स्थानीय या बुनियादी कारण कितने मजबूत हैं।

पैटर्न की समझ

हम जहां भी देखें वहां हमें पैटर्न नजर आता है और हरेक सजीव चीज पैटर्न पर ही चलती है। मंदी भी एक पैटर्न है। दलाल स्ट्रीट पर शेयर बाजार की इमारत के नीचे सांड़ की मूर्ति लगाना हर्ष को दिखलाने का पैटर्न है। डर और लालच का चक्र भी एक तरह का पैटर्न ही है।

बार बार संकट से सामना होना भी एक ट्रेंड या पैटर्न है। हममें से ज्यादातर लोग संकट के समय में चिंतित होते हैं और निराशा के चरम पर पहुंचकर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, यह भी दरअसल एक पैटर्न है। यह भी जगजाहिर है कि हम भावनाओं को तब ही समझ पाते हैं जब वे पूरे उफान पर होती हैं।

उसके पहले उनकी अहमियत हमें समझ में ही नहीं आती है। ऋण वितरण में बढाेतरी होना भी एक तरह का पैटर्न ही है। मुंबई में हर स्थानीय रेल नेटवर्क और हर स्टेशन पर ऋण संबंधी विज्ञापन भी इसी का उदाहरण है। खपत एक वैश्विक पैटर्न है।

भर्ती करना और फिर छंटनी कर देना भी एक पैटर्न है। हमारे सामने हर तरह के पैटर्न हैं, सामाजिक पैटर्न, आर्थिक पैटर्न, प्राकृतिक पैटर्न, मनोवैज्ञानिक पैटर्न और बाजार से जुड़े पैटर्न। एक जीव वैज्ञानिक, रसायनशास्त्री या भौतिक विज्ञानी से पूछें और वे आपको बताएंगे कि किस तरह उनके कार्यक्षेत्र में पैटर्न उभरते रहते हैं।

अगर थोड़ी गहराई में देखें, तो आपको पता चलेगा कि शेयर बाजार में उतार चढ़ाव नियमित समयांतराल वाला पैटर्न है। पैटर्न को याद रखने का ही एक हिस्सा आवाज को याद रखना, हाथों से लिफाफे पर लिखे गये पोस्टल कोड को याद रखना और चेहरों को याद रखना है।

जब वैज्ञानिक महकमें में भी पैटर्न को याद रखना इतना लोकप्रिय है तो हम बदलाव से इतना कतराते क्यों हैं? हम वर्तमान स्थिति को चुनौती देने का दम क्यों नहीं दिखाते?

कारोबार पर असर

हमारे पास पैटर्न को पहचानने के सॉफ्टवेयर हैं, उसके बावजूद हम बाजार के पैटर्न को समझने में कई दफा विफल रहे हैं। पैटर्न की समझ नहीं होने की वजह से ही बुनियादी वित्त के सामने ढांचागत वित्त नाकाम रहता है और ऐसे वक्त में पारंपरिक बैंक शानदार प्रदर्शन कर जाते हैं।

कारोबारी चक्र रहित वित्तीय मॉडल उस वित्तीय मॉडल से बेहतर काम करता है जिसमें आर्थिक चक्र शामिल हो। 30 सालों के किसी आर्थिक पैटर्न को खुद एक चक्र के तौर पर समझा जा सकता है। शेयर बाजारों की सफलता के लिए जरूरी है कि भावनाओं, वृहद् अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवहार से जुड़े पैटर्न की ट्रेनिंग दी जाए।

च्रक से संबंधित पैटर्न को अगर समझ लें तो यह बताना आसान हो जाएगा कि बाजार क्यों लुढ़कते हैं और उनका गिरना कब बंद होगा? यह भी समझा जा सकेगा कि भारत में खपत के मामले में जो तेजी आई है, उसका रुख आगे किस तरह का रहेगा? या फिर 2012 तक हम कहां और किस स्थिति में होंगे?

बाजार की प्रतिक्रिया

कुल मिलाकर कहें तो बाजार के पैटर्न से कई बातें जुड़ी हुई हैं जैसे अर्थशास्त्र, सामाजिक अर्थशास्त्र और इतिहास और भी काफी कुछ। आर्थिक चक्र में गिरावट की बात तो कही जाती है पर यह अभी नहीं 2010-11 के बारे में है। और चूंकि बाजार पहले 60 फीसदी से अधिक गिर चुका है इस वजह से फिलहाल इसे सुधरने में थोड़ा समय तो लगेगा ही।

First Published - November 23, 2008 | 10:28 PM IST

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