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नई सोच का टाइम

Last Updated- December 07, 2022 | 12:03 AM IST

जरा सोचें भारत में सैकड़ों स्टील निर्माता हैं,हजारों स्टील फैब्रिकेटर हैं,जबकि हमारे दैनिक जीवन में लाखों किस्म के स्टील उत्पाद हैं। जबकि कुछ दशकों पहले तक कहा जा रहा था कि प्लास्टिक स्टील की जगह ले लेगा।



अंतर समझें

जिन दिनों स्टील और कच्चे तेल  की कीमतें काफी कम थीं, उन दिनों ऐसी कोई वजह नहीं थी कि इस तरह का कोई बदलाव सोचा जाए। लेकिन पिछले कुछ सालों में जबसे इन दोनों की कीमतें चढ़ी हैं,तस्वीर कुछ और ही बन रही है।

लेकिन इन अयस्कों की कीमतें बढ़ने के साथ ही अब प्रगतिशील यानी कुछ नया करने वाले फैब्रिकेटर्स ने अपने उत्पाद को एक नए मीडिया मे ढालने का फैसला किया और इससे न केवल उनकी बचत बढ़ी बल्कि इसमें उन्हे सुविधा भी ज्यादा दिखी। इस क्रम में मुंबई स्थित कंपनी टाइम टेक्नोप्लास्ट खासा बेहतर काम कर रही है।

कंपनी को पॉलिमर का परिशोधक या फिर उत्पादों का निर्माता कहें तो यह कहीं से भी गलत नही होगा। इस बाबत कंपनी का प्रबंधन बड़े विश्वास के साथ कहता है कि वह उन सारे जगहों पर धातु की जगह पालिमर को स्थान दिलवाएगी जहां-जहां धातु का ज्यादा इस्तेमाल होता है। इस काम को अंजाम देने के लिए कंपनी ने पूरा बिजनेस मॉडल तैयार किया है।

सबसे पहले कंपनी उन क्षेत्रों को चिन्हित कर रही है,जहां धातु का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। दूसरा उन उत्पादों को भी चुना जा रहा है,जहां धातु के बजाय पालिमर को आसानी काम में लाया जा सकता है। तीसरा उन उत्पादों की सूची को और कम किया जा रहा है,जहां पालिमर के इस्तेमाल से कमाई पर असर के साथ-साथ कार्यगत समझौते भी करने पड़ें।

चौथी बात कि पालिमरों की क्रियात्मक एंट्री करने की कोशिश की जा रही है। पांचवी बात की मिशन के रूप में बाजार के उन उत्पादों के लिए काम किया जा रहा है,जहां अभी तक किसी की एंट्री नही हुई है। छठी चीज कि उन ब्रांडों की क्रमागत वृद्धि करना जो जातिगत रूप से उसी श्रेणी की हो।

सातवीं चीज बाजार में हिस्सेदारी को लेकर हो रहा है,जिसके तहत हर प्रतिस्पर्द्धी कंपनी अपने प्रस्तावित कारोबार योजनाओं को काफी गुप्त रख रहे हैं,और उन योजनाओं के लिए तैयार दस्तावेजों को काफी एहतियात बरतते हुए पेश किया जा रहा है।

आठवीं बात कि ऐसी तैयारी बनाए रखना ताकि जब-जब पालिमरों के दाम में इजाफा हो,कंपनी इससे संबंधित उत्पादों के स्टिकर कीमतों में भी बदलाव ला सके। लिहाजा,नवीं चीज इससे ही संबंधित है कि एक अनुमानित स्टिकर कीमतों के साथ उत्पादों की लांचिंग की जाए।

कंपनी की बातों से सहमत हुआ जा सकता है कि स्टील ड्रमों के बजाए उच्च कोटि के प्लास्टिक इस्तेमाल करने की जरूरत है। गौरतलब है कि मझोले और बड़े स्तर के सामानों की पैकेजिंग के लिए स्टील का इस्तेमाल 100 फीसदी किया जाता था। लेकिन आज देश में 40 फीसदी पैकेजिंग पालिमर बेसड् हैं,और इस कारोबार में टाइम टेक्नोप्लास्ट की हिस्सेदारी 76 फीसदी है।

जिसे दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह कंपनी अपने तीनों प्रतिस्पर्द्धी कंपनी के संयुक्त रूप से हासिल हिस्सेदारी से तीन गुनी ज्यादा है। इसी का तकाजा है कि यह इस प्रकार बिना धारी वाले उच्च दवाब को भी झेल सकने वाले मझोले और बड़े कंटेनर्स बनाती है। इन कंटेनरों में खतरनाक रसायन रखे जाते हैं।

इसके अलावा इन कंटेनरों की धारण क्षमता भी कहीं ज्यादा होती है,इनमें 250 कि.ग्रा. से ज्यादा तक रसायन और वस्तुएं आ सकती हैं,और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इसे अगर 18 मीटर की ऊंचाई से  लगातार पांच बार भी फेंका जाए,तो भी इस पर खरोंच तक नही आ सकती। पिछले दस सालों के दौरान कंपनी ने मौजूदा 320 ऑडर्रों में महज 10 ग्राहकों के आडर्र ही खोये हैं।

इसके अलावा कंपनी सिर्फ अपने इस कारोबार से प्राप्त आय का  इस्तेमाल अन्य दूसरे कारोबार में करती है। कंपनी के कुल कारोबार का 60 फीसदी इस कारोबार से प्राप्त होता है। अब कंपनी ने इस कारोबार से प्राप्त होने वाले आय से अन्य किस्मों के कारोबार मसलन लाइफस्टाइल,ऑटो कंपोनेन्ट्स,हेल्थकेयर समेत इंफ्रास्ट्रक्चर प्राडक्ट्स के पांच प्रभाग पांच सालों के दौरान तैयार करने की सोची है।

कंपनी के लाइफस्टाइल उत्पादों की बात करें तो यह बगीचों वाले फर्निचर,एस्ट्रोटर्फ बनाती है,जबकि ऑटोमोटिव कंपोनेन्ट्स की बात करें तो यह रेडिएटर टैंक,प्लास्टिक फ्यूल टैंक और एंटी-स्प्रे रेन फ्लैप्स बनाती है। ये फ्लैप्स गाड़ियों के चक्कों,एयर डक्ट्स और वीआरएलए बैट्रीयों के पास लगे होते हैं।

जहां तक हैल्थकेयर प्राडक्ट की बात है तो कंपनी स्व-चालित डिस्पोजेबल,सीरिंज,खून जांच करने वाले यंत्र और चैंबर मॉस्क बनाती है। इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉडक्ट्स में कंपनी बचाव और चेतावनी देने वाले नेट,बाड़,चिड़ियों से बचाने वाले जाल और अपरदन से बचाने वाले जाल का निर्माण करती है। कंपनी के मोमेंटम मैनेजमेंट का का परिणाम रहा कि कंपनी ने बहरीन स्थित हाथ से निकल रहे यूनिट को फिर से पाने में सफलता हासिल की।

इसके अलावा तेनवाला स्थित मझोले और बड़े पैकेजिंग यूनिटों का अधिग्रहण तो किया ही,इस यूनिट की उत्पादन क्षमता भी दुगुनी कर दी। इसके अलावा हैदराबाद स्थित बैट्री यूनिट का अधिग्रहण किया जिसने महज सालभर के भीतर कारोबार काफी ज्यादा कर दिया। इसका तकाजा रहा कि कंपनी ने शारजाह और पौलेंड स्थित ग्रीनफील्ड यूनिटों को शुरू करने में सफलता हासिल की है।

लेकिन कुछ मसलों पर किसी को भी इन विवरणों से ऊपर उठने की दरकार है,और यह भी पूछना चाहिए कि इस तेज गति से फैलती कंपनी को चला कौन रहा है? इस सवाल के जवाब की तलाश में मैने कुछ फुर्सत के क्षणों(आमतौर पर शनिवार को)में मंथन करने की कोशिश तो की ही,साथ ही अनिल जैन की जीवनी भी सुनी,कि किस प्रकार उन्होनें महज कुछ आईआईटी इंजीनियरों और कुछ लाख रूपयों की मदद से इस कंपनी को खड़ा किया।

किस प्रकार उन्होनें जगहों का दौरा किया कि पालिमर से संबंधित कारोबार से मुनाफे  की ऊगाही हो सकती है या नहीं। इतने पर भी उन्हें कुछ ही उदाहरण मिल सके जो उन्हें प्रेरित कर सकते कि इसमें कोई जोखिम नही हैं। खासी रोचक बात कि उन्होने किस प्रकार कंपनी का अनोखा नाम रखने का जोखिम लिया।

इसके अलावा बहरीन स्थित हाथ से निकल रहे यूनिटों के मालिक को प्रभावित कर लेना भी एक जबरदस्त उपलब्धि थी,क्योंकि वह यूनिट उन्होनें वास्तविक कीमत से चौथाई दाम पर खरीदा। उनका हफ्ते में 90.2 घंटे से भी ज्यादा काम करना भी वाकई काबिलेतारीफ है।

किस प्रकार उन्होनें अपनी बनियाबुद्धि का इस्तेमाल कर अपने मझोले और बड़े पैकेजिंग प्लांट्स ही खोले,उनकी प्रगतिशील सोच की भी तारीफ करनी होगी,कि उनका ये बिल्कुल नया आइडिया चल ही पड़ेगा। लोग एक बार इसके इस्तेमाल के बाद इसका फिर से इस्तेमाल करेंगें,इसको लेकर भी उन्होने कभी चिंता नही की।

उनकी वो गहरी बात सबके दिलों पर गहरा असर छोड़ सकती है कि हमपर इस चीज का कोई असर नही पड़ता कि  हमारे प्रतिस्पर्द्धी हमसे आगे हैं,क्योंकि जब तक हम उनसे पीछे हैं,वह हमसे आगे रहेंगे।

उनका भरोसा काबिलेगौर है कि अगले तीन सालों के दौरान उन्होनें कंपनी की वृद्धि में 50 फीसदी का इजाफा तय किया है। इसके अलावा इन तीन सालों के दौरान कंपनी का संगत आरओसी भी 23 फीसदी रख पाने का भरोसा सच में प्रेरणास्पद है,क्योंकि बैंक ब्याजदरों के प्रभावी होने के बावजूद भी कं पनी को उम्मीद है कि उसकी कमाई में 1,000 बेसिसप्वांइट का इजाफा होगा।

और यह उनके भाग्य नही बल्कि मेहनत का नतीजा है कि कंपनी का प्रदर्शन खासा बेहतर है। इस बात को मैं कैसे भुला सकता हूं कि कभी चंद रूपयों के साथ मॉजर की तकनीक खरीदने गया ये इंसान अब इस स्तर का है कि वह पूरे मॉजर को ही खरीद सकता है।

हालांकि आज के समय में शेयरों की कीमत खासी ज्यादा है,तो इसके बावजूद इस पर बात होना लाजिमी है कि आखिरकार इस महंगाई के बाद भी किस प्रकार एक अदद तकनीक ने पोलिमर कीमतों में कमी का रूख ला दिया जबकि स्टील की कीमतों में इजाफा बदस्तूर जारी है। इस बारे में सच्चाई यह है कि नए जेनरेशन के पालिमर प्लांट बनाने में गैस रूट का सहारा लिया जा रहा है,जबकि पारंपरिक तरीका यह था कि पालिमर निर्माण में नैफ्था लिंक का इस्तेमाल होता था।

लिहाजा, नई तकनीक के चलते मौजूदा दौर में तो पालिमर पहले के मुकाबले सस्ती हुई हैं, आगे भी इसकी कीमतों में गिरावट का रूख दर्ज किया जा सकेगा। लिहाजा,पालिमर वाले स्थिति में दो चीजें एक साथ हो रही हैं,एक तरफ  स्टील की जगह इसका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है,वहीं दूसरी ओर इनकी कीमतों में गिरावट हो रही है,जो कारोबारियों के लिए ज्यादा मुनाफे वाला सौदा साबित हो सकता है।

(मुदार भारत की सबसे बड़े वार्षिक रिपोर्ट जारी करने वाले एजेंसी से जुड़े हुए हैं। टाइम टेक्नोप्लास्ट में इनकी कोई हिस्सेदारी नही है।)

First Published - May 19, 2008 | 2:19 AM IST

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