हालांकि इस समय शेयरों के भाव आकर्षक लग रहे हैं, लेकिन निवेशकों को पहले अच्छी-खासी छानबीन करनी चाहिए अमेरिका के सबप्राइम संकट से भारत में भी भय बरकरार है।
विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के 13 अरब डॉलर से अधिक की पूंजी निकाल लेने से भारत के शेयर बाजार औंधे मुंह गिर पड़े हैं। काफी लंबे समय बाद निवेशक शेयरों की खरीद और इन्हें रोके रखने की रणनीति पर विचार कर सकते हैं।
मंद बाजारों के निचले स्तर पर खरीदारी के व्यापक संकेत मिल रहे हैं। पहला खरीदारी सिगनल यानी संकेत यह है कि आय का रिटर्न, बिना जोखिम वाली योजनाओं के रिटर्न की तुलना में काफी अधिक है।
निफ्टी 2007-08 के 11.4 के प्राइस-अर्निंग (पीई) रेशियो पर कारोबार कर रहा है। यह लगभग 8.8 फीसदी की आय प्राप्ति के बराबर है। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो 364 दिन के ट्रेजरी बिल की पिछली बार नीलामी 7.4 प्रतिशत की कट-ऑफ यील्ड पर की गई।
दूसरा, यदि आप आम सहमति वाले संशोधित आय अनुमानों पर भरोसा करते हैं तो प्राइस-अर्निंग ग्रोथ (पीईजी) उपयुक्त है। ज्यादातर कंपनियों का मानना है कि वे पूरे साल के लिए आमदनी प्रति शेयर (ईपीएस) में लगभग 10-15 फीसदी का इजाफा करने में सफल रहेंगी। इसलिए औसतन पीई ग्रोथ 1 या इससे नीचे है। यह मंदी आय अनुमानों में और गिरावट ला सकती है।
खरीदारी का तीसरा संकेत है प्राइस-बुक वैल्यू रेशियो और लाभांश प्राप्ति। ये फिलहाल उस स्तर पर हैं जब इन्हें सामान्य तौर पर बाजार के बॉटम के नजदीक देखा जाता है। निफ्टी का प्राइस बुक वैल्यू (पीबीवी) रेशियो लगभग 2.3 और लाभांश प्राप्ति 2 फीसदी से ऊपर हैं।
जहां दीर्घावधि में निष्क्रिय सूचकांक यानी पैसिव इंडेक्स में निवेश लाभदायक होना चाहिए, वहीं स्मार्ट मनी सबसे जोखिम वाले क्षेत्रों का जोखिम कम करने का प्रयास करेगा। इनमें, खासकर कुछ खास क्षेत्रों में, दर्द काफी बचा हो सकता है। भारत और अमेरिका दोनों देशों में जब तक नई सरकार शपथ नहीं ले लेती, तब तक असली निवेशकों का भरोसा नहीं लौटेगा।
तब तक कीमतों में और गिरावट आ सकती है। मान लिया जाए कि आम चुनावों के बाद किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो सांसदों की खरीद-फरोख्त होने की स्थिति में उस दौरान इनमें और कमी आ सकती है।
शेयरों में जोखिम का जो एक स्पष्ट क्षेत्र है वह है शेयरों में एफआईआई का निवेश। उनके इन शेयर बाजारों से हाथ खींचने का काम जनवरी तक लगभग पूरा हो जाएगा। एक और जोखिम वाला क्षेत्र बैंक है। घरेलू नन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) के लिए प्रावधान बढ़ेंगे और वैश्विक निवेश में मार्क टू मार्केट (एमटीएम) नुकसान में इजाफा होने की संभावना है।
तीसरा, ऐसा ही क्षेत्र रियल एस्टेट है। जमीन की कीमतें अगले 12 महीनों में गिर सकती हैं और इसका भय रियल एस्टेट कंपनियों के शेयरों पर पहले ही दिखने लगा है। ये सब ज्ञात जोखिम हैं और बाजार काफी हद तक इन जोखिमों से पहले से ही परिचित है। गिरावट की संभावना बनी हुई है। लेकिन यह संभावना नहीं दिखाई देती कि इसमें व्यवस्थित रूप से गिरावट आएगी।
लेकिन यदि कोई बड़ा रियल एस्टेट डेवलपर दिवालिया हो जाता है तो इसका असर किसी बड़े बैंक या हाउसिंग फाइनेंस कंपनी पर पड़ सकता है जिसने डेवलपर की परियोजनाओं के लिए पैसा दे रखा है। इन उपर्युक्त श्रेणियों में पड़ने वाले शेयरों को छोड़ कर क्या आप निफ्टी के शेयरों की खरीद कर सकते हैं? रियल एस्टेट और बैंकिंग फाइनेंस बिजनेस के शेयरों को आप टाल सकते हैं।
आपको शेयरों में एफआईआई होल्डिंग्स के स्तर पर विचार करना होगा। यदि आप लंबे समय तक इंतजार करने के इच्छुक हैं तो आप दिसंबर, 2008 के शेयरों के पैटर्न पर एक कट-ऑफ तय कर सकते हैं। एक और चिंता है जिस पर अभी तक पूरी तरह से विचार नहीं किया गया है।
एफसीसीबी बाजार से जुड़ी कंपनियों का कर्ज बोझ और एफसीसीबी बाजार से ली गई विदेशी मुद्रा का जोखिम अगले दो वित्त वर्षों के दौरान बढ़ सकता है। यह एफसीसीबी को भुनाए जाने या इनके कन्वर्जन के समय इनकी शेयर कीमतों पर निर्भर करेगा। यदि उस वक्त कन्वर्जन की संभावना नहीं बनती है तो कई कंपनियों की बैलेंस शीट भी गड़गड़ा जाएगी।
कई शेयर अत्यधिक जोखिम वाली श्रेणी में आ रहे हैं। इससे यह चिंता बढ़ जाती है कि बाजार में मंदी का दौर बना रहेगा, भले ही इस समय शेयरों के भाव आकर्षक लग रहे हैं। वैसे आपको कम से कम 2009-10 तक इंतजार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।