जब इक्विटी शेयर मार्केट बुरी तरह नीचे आया तो अधिकांश निवेशक बेहतर रिटर्न के लिए विभिन्न अनुपातों के आधार पर शेयरों को तोलने लगे।
ऐसा ही एक अनुपात है डिविडेंड यील्ड रेशियो। सामान्य तौर पर यह बेहद कारगर साबित होता है क्योंकि इसके जरिए निवेशकों को वह शेयर चुनने में मदद मिलती है जिससे वे लाभांश के रूप में अच्छी राशि के साथ कैपिटल एप्रिसिएशन अर्जित कर सकें।
कैसे करें डिविडेंड यील्ड का उपयोग: इसकी गणना कंपनी द्वारा प्रति शेयर पर दिए गए लाभांश और शेयर की मार्केट प्राइस के आधार पर होती है। यह अनुपात प्रतिशत में वह लाभांश राशि बताता है जो निवेशक को उस समय मिलने वाली है, जब उसने किसी निश्चित कीमत पर यह निवेश किया हो।
जब कभी बाजार में रैली आती है तो शेयरों के दाम बढ़ने से डिविडेंट यील्ड में खासी कमी आती है। 2003-04 में जब शेयर बाजार खूब ऊपर जा रहा था तब कई शेयरों में यह रेशियो एक फीसदी तक रह गया था।
इसके उलट जब बाजार गिरता है तो डिविडेंड यील्ड की वैल्यू उन निवेशकों के लिए बढ़ती है जो इसमें निवेश करना चाहते हैं। इसे हमेशा निवेश की एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यहां कुछ वजहें बताई गई हैं, जिसके चलते निवेश की यह रणनीति निवेशकों पर उलटी पड़ सकती है। ये हैं:-
लाभांश दर: डिविडेंट यील्ड की गणना कंपनी द्वारा पहले दिए गए लाभांश और शेयर के वर्तमान बाजार मूल्य के आधार पर की जाती है। यहां अगर कंपनी का शेयर 40 रुपये पर हो जिसकी फेस वैल्यू 10 रुपये हो तो लाभांश प्रति शेयर चार रुपये होगा। अगर शेयर प्राइस 80 रुपये हो तो डिविडेंड यील्ड 5 फीसदी रह जाएगी।
अगर किसी कंपनी का प्रदर्शन बुरी तरह प्रभावित होता है तो लाभांश की दर नीचे गिरेगी। उदाहरण के लिए अगर किसी कंपनी ने पिछले साल 50 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया और 40 फीसदी लाभांश घोषित किया। यहां प्रति शेयर 5 फीसदी लाभांश मिलेगा। अगर कंपनी का मुनाफा गिरकर 20 करोड़ रह जाए तो लाभांश की दर 20 फीसदी रह जाएगी।
इस मामले में भले ही शेयरों के दाम स्थिर बने रहें लेकिन उनकी डिविडेंड यील्ड आधी ही रह जाएगी। साथ ही इसका डिविडेंड यील्ड की गणना पर बुरा असर पड़ेगा चाहे अन्य फैक्टर जस के तस हों। ऐसी स्थिति में अन्य अनुपात जैसे प्रति शेयर आय, नेट वर्थ पर रिटर्न, अन्य रिटर्न रेशियो और प्राइस अर्निंग रेशियो भी कंपनी का मुनाफा कम होने के कारण बदल जाएंगे। इससे भी शेयरों की कीमतों पर असर पड़ेगा। कुछ मामलों में तो भले ही मुनाफे में कोई अप्रत्याशित गिरावट न हो, लाभांश दर कम हो सकती है।
शेयरों की कीमतों में गिरावट: डिविडेंड यील्ड रेशियो गणना की दूसरा पहलू यह है कि इसमें लाभांश के जरिए हुई कमाई को ही रिटर्न माना जाता है जबकि निवेशक के लिए रिटर्न के दायरे में कई क्षेत्र शामिल हैं। इनमें कैपिटल गेन और लॉस के जरिए मिला रिटर्न भी शामिल है।
जब कोई निवेशक किसी निश्चित कीमत पर किसी शेयर को खरीदता है तो वह लाभांश के रूप में एक निश्चित रिटर्न सुनिश्चित करने का प्रयास तो करता ही है यह रिटर्न कैपिटल गेन के अतिरिक्त होता है। इस स्थिति में शेयरों की कीमतों में हुई कमी की भरपाई डिविडेंड के जरिए हुई प्राप्तियों से कर ली जाती है।
यह कैसे होता है। समझिए 6 फीसदी डिविडेंड यील्ड पर एक शेयर 100 रुपये में खरीदता है। अगर इस शेयर की कीमत गिरकर 90 रुपये हो जाती है तो यह 10 फीसदी नुकसान सारे लाभ को बराबर कर देगा। किसी नए निवेशक के मामले में डिविडेंट यील्ड अधिक हो सकता है लेकिन पहले ही निवेश कर चुके निवेशक के लिए यह स्थिति बेहद दुखदायी साबित हो सकती है। (लेखक पंजीकृत वित्तीय योजनाकार हैं)