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बाजार को उबारने के लिए सख्त कदम जरूरी

Last Updated- December 08, 2022 | 1:41 AM IST

इसी साल 10 जनवरी को 21,206.77 अंकों के ऐतिहासिक स्तर तक पहुंचा सेंसेक्स तकरीबन 59 फीसद गिरकर 24 अक्टूबर को 8,701.07 अंक पर आ गया, जिसकी शायद ही किसी को आशंका थी।


बीएसई 100 सूचकांक में तो कई शेयरों की कीमत 60 फीसद तक गिर चुकी है। देश का बाजार पूंजीकरण 73 लाख करोड़ रुपये से घटकर महज 28 लाख करोड़ रुपये रह गया है।

गिरावट का इतिहास

बाजार में मौजूदा गिरावट अभूतपूर्व है। इससे पहले सबसे बड़ी गिरावट 1947 में आई थी, जब 28 फरवरी को लियाकत अली खान ने बजट पेश किया था। टाटा स्टील के शेयर उसी साल 27 मई को 32 फीसद गिरकर 1,765 रुपये तक आ गए थे। इसके बाद 6 जुलाई 1974 को इंदिरा गांधी के लाभांश प्रतिबंध अध्यादेश के समय भी सेंचुरी मिल्स के शेयर 29.3 फीसद गिरकर 424 रुपये पर रह गए थे।

ऐसे वक्त में कुछ ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए, जिनके बारे में आम दिनों में सोचा भी नहीं जाता है। अल्प और मध्यकालिक कदम उठाकर शेयरों में गिरावट पर अंकुश लगाया जाना चाहिए ।

खतरों का प्रबंधन

स्टॉक एक्सचेंजों में खतरे के प्रबंधन के तौर तरीके फौरन बदले जाने चाहिए। अटकलों पर बिकवाली से बचने के लिए शॉर्ट पर एक्सपोजर मार्जिन बढ़ाना चाहिए, ताकि लिवाली हो और बाजार ज्यादा गिरावट से बच जाए।

एफआईआई की बिक्री

मौजूदा संकट की सबसे बड़ी वजह विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली है, जिन्हें भारतीय बाजार की फिक्र नहीं है। 1 जनवरी से 10 अक्टूबर तक एफआईआई 43,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की पूंजी बाजार से निकाल चुके हैं। इसलिए भारतीय कंपनियों में विदेशी निवेश के लिए सीमा तय होनी चाहिए और यह 49 फीसद से ज्यादा न हो। भारतीय कंपनियों में  देशी खुदरा निवेशकों के निवेश को बढ़ावा मिलना चाहिए।

First Published - October 26, 2008 | 10:47 PM IST

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