भारतीय रिजर्व बैंक के बॉन्ड फॉरवर्ड के मानदंड 2 मई से लागू होने जा रहे हैं। इनसे 10-15 साल के राज्य बॉन्डों की मांग में जबरदस्त उछाल की उम्मीद है। बाजार के भागीदारों के अनुसार लंबी अवधि के बॉन्ड की तुलना में इस खंड में यील्ड का अंतर ज्यादा है। केंद्रीय बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों के बॉन्ड वायदा के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। इसके तहत वित्तीय अनुबंध करने वाले दो पक्ष सरकारी बॉन्ड को आगे की तारीख पर निर्धारित मूल्य पर खरीद या बेच सकते हैं। इससे दीर्घावधि निवेशकों सहित बाजार के भागीदार नकदी प्रवाह और ब्याज दर जोखिम का प्रबंधन कर सकेंगे।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने फरवरी की मौद्रिक नीति में इसकी शुरुआत की थी। यह पहल बाजार प्रतिभागियों के लिए उपलब्ध ब्याज दर डेरिवेटिव योजनाओं का विस्तार करने के लिए की गई है जिससे कि वे ब्याज दर जोखिम का प्रबंधन कर सकें।
इस कदम का उद्देश्य बीमा कोष जैसे दीर्घावधि निवेशकों का विभिन्न चक्रों के दौरान ब्याज दर जोखिम में मदद करना है। इससे सरकारी प्रतिभूतियों से जुड़े डेरिवेटिव का उचित मूल्य मिल सकेगा। निजी बैंक के एक ट्रेजरी ने बताया, ‘फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट से जुड़े एसडीएल (राज्यों के विकास ऋणों) की मांग बढ़ेगी।’ उन्होंने बताया, ‘मुझे 30 से 40 वर्ष और अधिक अवधि की बॉन्ड की तुलना में 10 से 15 साल के बॉन्डों की अधिक मांग नजर आती है।’
10 वर्षीय राज्य बॉन्ड और 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड के बेंचमार्क के बीच यील्ड का अंतर 29 आधार अंक है। फॉरवर्ड रेट समझौतों (एफआरए) में प्रतिभूतियों की कोई भौतिक डिलिवरी नहीं होती है। एफआरए के विपरीत बीमा कंपनियां हेजिंग के उद्देश्य के लिए बॉन्ड फॉरवर्ड का इस्तेमाल करती हैं और बॉन्डों की सीधे डिलिवरी ले सकती हैं। इससे पहले बेंचमार्क दरों को रद्द करके निपटान किया जाता था।
कोटक लाइफ इंश्योरेंस के कार्यकारी उपाध्यक्ष चर्चिल भट्ट ने बताया, ‘बीमा कंपनियों के लिए बॉन्ड फॉरवर्ड हेज का पसंदीदा तरीका होगा क्योंकि हम अंतिम निवेशकों की तरह बॉन्ड फॉरवर्ड के साथ संपत्ति की डिलीवरी प्राप्त करते हैं।’
उन्होंने बताया, ‘बॉन्ड एफआरए से हमारी जरूरत पूरी हो गई थी। हालांकि अनुबंध नकद में निपटाए गए थे। लिहाजा हमें बाजार से अंतर्निहित परिसंपत्ति खरीदनी पड़ी थीं। हम निवेशकों के रूप में हेज के साधन पसंद करेंगे जो हमें परिसंपत्तियां खरीदने में भी मदद करे।’ विशेषज्ञों ने बताया कि वायदा अनुबंधों पर नियामकीय घोषणा से मूल्य निर्धारण में सुधार होगा और बाजार भागीदार का विस्तार होगा।