वीनस रेमेडीज विभिन्न एंटी इंफेक्टिव और ओंकोलॉजी ड्रग बनाने वाली मशहूर कंपनी है, जिसकी पंचकुला (हरियाणा) और बद्दी (हिमाचल प्रदेश) में विनिर्माण इकाई है।
वित्तीय वर्ष 2005 और 2007 के बीच कंपनी की बिक्री 102 फीसदी सालाना चक्रवृध्दि दर से बढ़ी। वित्तीय वर्ष 2008 के दौरान कंपनी ने अच्छा-खासा प्रदर्शन किया और इसकी बिक्री 51 फीसदी बढ़कर 213.61 करोड़ रुपये हो गई।
वीनस रेमेडीज की योजना वित्तीय वर्ष 2009-10 तक कुल बिक्री को 500 करोड़ रुपये तक पहुंचाने की योजना है।
चहुंमुखी वृध्दि
मार्च में खत्म हुई तिमाही में वीनस की बिक्री पिछले साल के मुकाबले 77 फीसदी बढ़कर 62.6 करोड़ रुपये हो गई। बिक्री में इस उछाल के पीछे वजह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय सेगमेंट में धमाकेदार प्रदर्शन को माना जा रहा है।
घरेलू सेगमेंट की कुल बिक्री जहां 57 फीसदी बढ़ी, वहीं अंतरराष्ट्रीय सेगमेंट में 170 फीसदी तक बढ़ी। इस दौरान कंपनी का परिचालन मुनाफा करीब 180 बीपीएस बढ़कर 16.7 करोड़ रुपये हो गया। इसके पीछे वजह कच्चे माल की कीमतों में गिरावट और उन्नत उत्पाद को माना जा रहा है।
हालांकि घरेलू ब्रांड और पेटेंट उत्पाद की बिक्री से कुल घरेलू बिक्री में जबरदस्त उछाल आया है। बढ़ते निर्यात राजस्व के चलते ही यूक्रेन और लैटिन अमेरिकी देशों के सेमी-रेगुलेटेड बाजार में कंपनी अपना विस्तार कर पायी है। वित्तीय वर्ष 2007 में कुल राजस्व में निर्यात की हिस्सेदारी जहां 17 फीसदी थी, यह वित्तीय वर्ष 2008 में यह बढ़कर 26 फीसदी हो गई। निर्यात में यह बढ़ोतरी कंपनी की करीब 12 सेमी-रेगुलेटेड बाजार में मौजूदगी के चलते ही संभव हो पायी है।
निर्यात में उछाल
फिलहाल कंपनी अपने कुल निर्यात को दोगुना करने की योजना बना रही है। वित्तीय वर्ष 2008 में कंपनी का कुल निर्यात तकरीबन 56 करोड़ रुपये का रहा। उसकी अगले दो वित्तीय वर्षों में 200 करोड़ रुपये तक पहुंचाने की योजना है। इस लक्ष्य को पाने के लिये वीनस अपने बुनियादी ढांचा, उत्पाद बास्केट, नियामक संस्था और साथ ही कुछ बहु-राष्ट्रीय फर्मास्युटिकल से अनुबंध करने पर विचार कर रही है।
हिमाचल प्रदेश के बद्दी स्थित इकाई को सीरिया की ड्रग अथॉरिटी की मंजूरी मिली हुई है। फिलहाल इस इकाई से तैयार उत्पाद का न सिर्फ सीरिया में निर्यात हो रहा है, बल्कि यह आयात पर आधारित पश्चिम एशिया के तकरीबन 12 अरब डॉलर के फर्मास्युटिकल बाजार को भी रूट उपलब्ध करा रही है।
कंपनी की योजना है कि वह बद्दी इकाई का इस्तेमाल चुनिंदा यूरोपीय कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के लिये करे। इसके लिये कंपनी ने मार्च 2008 में एक यूरोपीय कंपनी के साथ अनुबंध भी किया था। इस करार के तहत पांच ओंकोलॉजी उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं और इससे वित्तीय वर्ष 2010 तक कंपनी को करीब 40 करोड़ रुपये अतिरिक्त आय का अनुमान है।
नये उत्पाद
हालांकि कंपनी के प्रमुख क्रिटिकल केयर ब्रांड्स रोनेम, म्यूकोमेल्ट, न्यूटॉल सरीखे कुछ चुनिंदा एंटी-इंफेक्टिव ब्रांड की सालाना बिक्री 35 फीसदी तक बढ़ी है। इससे कंपनी के राजस्व में भी इजाफा हुआ है। फिर भी वीनस कुछ नये उत्पाद की ओर रुख कर रही है ताकि कंपनी अपने राजस्व की वृध्दि दर को बरकरार रख सके। इसके लिये कंपनी नये उत्पाद तलाश रही है।
कंपनी ने सात दवाओं के पेटेंट के लिए आवेदन किया है, जबकि चार मॉलिक्यूल्स क्लिनिकल स्टेज में है। उसने इस साल मार्च में आखिरी बार जिस दवा के पेटेंट के लिए आवेदन किया था, वह एक एंटीबायोटिक है, जो बच्चों में होने वाले जीवाणु संक्रमण के इलाज में काम आती है। इसके अगले साल बाजार में आने की उम्मीद है।
वीनस रेमेडीज श्वसन और पाचन तंत्र से संबंधित वंशानुगत रोग सिस्टिक फाइब्रोसिस के उपचार के लिये इस माह एक दवाई लॉन्च करने जा रही है। इस दवा से घरेलू बाजार में 200 करोड़ रुपये के कारोबार का अनुमान है, जबकि विदेशी बाजार में यह 2.5 अरब डॉलर का कारोबार कर सकती है। वीनस इस उत्पाद को बाजार में उतारने के लिए एक घरेलू फर्मास्युटिकल कंपनी से अनुबंध कर रही है। उसकी रणनीति दो साल में इस दवा के बाजार में प्रमुख दावेदारी हासिल करने की है।
कंपनी की रणनीति क्रीटिकल केयर एंटीबायोटिक सेगमेंट के नोवेल ड्रग डिलिवरी सिस्टम पर ध्यान केन्द्रित करने की है, ताकि वह इस हाई वोल्यूम एंटीबायोटिक क्षेत्र पर अपनी पकड़ बना सके, जिसकी एंटी-इंफेक्टिव ड्रग के 40 अरब डॉलर के वैश्विक कारोबार में लगभग आधी हिस्सेदारी है। विभिन्न दवाओं के पेटेंट खत्म होने और जेनरिक प्रतिस्पर्धा के चलते इस क्षेत्र में बिक्री कम होती जा रही है, इसकी वजह यह है कि अब बाजार ब्रांडेड उत्पादों से जेनरिक में परिवर्तित होता जा रहा है।
निवेश
पिछले दो वित्तीय वर्ष से वीनस रेमेडीज की बिक्री 50 फीसदी से अधिक बढ़ चुकी है। वृध्दि की इस दर के बरकरार रहने पर 2010 तक इसका राजस्व 500 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। कंपनी अपनी बिक्री दर को बरकरार रखने के लिए मैन्यूफैक्चरिंग सुविधा, गठबंधनों और निर्माणाधीन नए उत्पादों पर निर्भर है।
उसका परिचालन लाभ वित्तीय वर्ष 2005 में 18 फीसदी था जो स्थाई दर से बढ़ता हुआ वित्तीय वर्ष 2008 में 26 फीसदी हो गया है। आगे भी इस लय के बरकरार रहने की उम्मीद है। 440 रुपये पर स्टॉक यह वित्तीय वर्ष 2010 की अनुमानित आय 96 रुपये से पांच गुना कम है। यह आने वाले दो सालों में 50 प्रतिशत रिटर्न दे सकता है।