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निफ्टी-50 की आय घटकर साढ़े छह साल के निचले स्तर पर

Last Updated- December 15, 2022 | 3:23 AM IST

भले ही आय में सुधार की उम्मीद में इक्विटी बाजार मार्च 2020 के निचले स्तर से भरपाई कर चुके हैं, लेकिन कोविड-19 महामारी भारतीय उद्योग जगत के मुनाफे पर लगातार दबाव बनाए हुए है। 50 कंपनियों के संयुक्त शुद्घ पर नजर रखने वाले निफ्टी-50 सूचकांक की प्रति शेयर आय (ईपीएस) अब घटकर 360 रुपये प्रति सूचकांक यूनिट के साढ़े छह साल के निचले स्तर पर रह गई है।
यह दिसंबर 2013 के बाद से इस सूचकांक के लिए आय का सबसे निचला स्तर है। फेडरल रिजर्व द्वारा मौद्रिक नीति में बदलाव के बाद 2013 की दूसरी छमाही में कॉरपोरेट आय में मामूली कमी आई थी। सूचकांक के लिए कैलेंडर वर्ष 2013 में ईपीएस 337 रुपये थी, जो 350 रुपये के उसके ऊंचे स्तर से करीब पांच प्रतिशत कम थी। हालांकि यह गिरावट 2014 में कॉरपोरेट आय में भारी बदलाव के बाद आई थी और तब उस साल के अंत में ऊर्जा तथा जिंस कीमतें में कमी दर्ज की गई थी।
इस साल सूचकांक में शामिल 24 कंपनियों (जो अपने जून तिमाही के आंकड़े घोषित कर चुकी हैं) का संयुक्त शुद्घ लाभ सालाना आधार पर 37 प्रतिशत तक घटा है जबकि उनके राजस्व (अन्य आय शामिल) में सालाना आधार पर 21 प्रतिशत तक की कमजोरी आई है। मार्च 2020 की तिमाही के दौरान इन कंपनियों का संयुक्त शुद्घ लाभ 44 प्रतिशत तक घटा था, जबकि उनके राजस्व में 4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
ईपीएस सूचकांक के ऐतिहासिक प्रदर्शन से संकेत मिलता है कि कॉरपोरेट आय में मौजूदा कमजोरी अप्रत्याशित है और यह 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के मुकाबले ज्यादा गंभीर है।
पहली तिमाही के कॉरपोरेट नतीजों के बाद, सूचकांक की ईपीएस जनवरी 2020 के ऊंचे स्तरों से 21 प्रतिशत नीचे है। सूचकांक आय इस साल जनवरी के अंत में 452 रुपये पर पहुंच गई थी।
तुलनात्मक तौर पर, 10 महीने की अवधि के दौरान जुलाई 2008 के शुरू में सूचकांक आय करीब 12 प्रतिशत तक घट गई थी। निफ्टी ईपीएस जुलाई 2008 के अंत में दर्ज 238 रुपये के स्तर से घटकर अप्रैल 2009 में 210 रुपये रह गई। आखिरकार, सूचकांक कंपनियों को आय के अपने संकट पूर्व स्तरों पर लौटने में दो साल का समय लगा, और जून 2010 तक निफ्टी की ईपीएस पिछले स्तरों पर पहुंचने में सफल नहीं रही थी। हालांकि कई विश्लेषकों को इस समय कॉरपोरेट आय में तेज सुधार की उम्मीद है। इक्विनोमिक्स रिसर्च ऐंड एडवायजरी सर्विसेज के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम का कहना है, ‘2008 का वैश्विक वित्तीय संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्यवस्थागत समस्याओं की वजह से पैदा हुआ था और संकट के बाद सुधार की रफ्तार धीरे धीरे लंबी होती गई। इसके विपरीत, महामारी एक अप्रत्याशित झटका है और व्यापक रूप से इसका टीका उपलब्ध होने पर आर्थिक गतिविधि जल्द से जल्द सामान्य हो जाएगी।’
चोकालिंगम का मानना है कि कॉरपोरेट आय अगले 6 से 12 महीनों में जनवरी के ऊंचे स्तरों पर फिर से पहुंच जाएगी।
हालांकि अन्य विश्लेषक ज्यादा सतर्क हैं। सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटी में शोध प्रमुख धनंजय सिन्हा कहते हैं, ‘आय में सुधार आएगा, जैसा कि पिछले सभी संकट के मामले में देखा गया। लेकिन इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है कि आय कब तक महामारी से पहले जैसे स्तर पर लौट पाएगी।’

First Published - August 17, 2020 | 12:23 AM IST

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