भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) को 2022 में करीब पूरे साल तक महंगाई ने परेशान रखा, लेकिन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर संभवतः 2023 में आर्थिक वृद्धि के लिए चिंता का विषय नहीं रहेगी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर की ओर से उम्मीद की किरण आई है। नवंबर में खुदरा महंगाई रिजर्व बैंक के महंगाई के ऊपरी लक्ष्य के नीचे रही। साथ ही थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर का व्यवहार भी अनुकूल है। अब यह देखना है कि खुदरा महंगाई दर नवंबर के बाद भी 6 प्रतिशत के नीचे बनी रहती है या नहीं। अगर बाहरी झटके नहीं लगते तो थोक महंगाई दर भी इस तरह के संकेत दे रही है। नवंबर में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर 21 माह के निचले स्तर 5.85 प्रतिशत पर रही है।
महंगाई दर के संकेतक
पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने कहा, ‘डब्ल्यूपीआई प्रमुख संकेतक है। डब्ल्यूपीआई में उल्लेखनीय कमी आई है। इसे सीपीआई से भी बल मिल रहा है। ऐसा इस साल के शुरुआती वक्त में भी हुआ था, जब डब्ल्यूपीआई दो अंकों में लंबे समय से स्थिर थी और सीपीआई 6 प्रतिशत से ऊपर थी। अब डब्ल्यूपीआई तेजी से नीचे आई है और यह सीपीआई को भी नीचे लाएगी। इसलिए अब मैं महंगाई को लेकर चिंतित नहीं हूं।’ उन्होंने कहा कि इसमें एक व्यवधान यह है कि अगर जिंसों के दाम का झटका लगता है तो परिदृश्य बदल सकता है। कोविड-19 की वजह से पहले ही एक्टिव फार्मा इन्ग्रेडिएंट्स (एपीआई) के दाम बढ़ गए हैं, भारत में इनका आयात चीन से होता है।
डॉ बीआर अंबेडकर स्कूल आफ इकनॉमिक्स में कुलपति एनआर भानुमूर्ति ने कहा, ‘थोक महंगाई से प्रमुख महंगाई में बदलाव एक प्रक्रिया है। अगर आप देखें कि थोक महंगाई कम हो रही है तो यह इनपुट यानी कच्चे माल की कीमतों में गिरावट की वजह से होती है। इससे प्रमुख महंगाई पर असर होता है।’ बहरहाल इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि उत्पादकों पर पड़ी इनपुट लागत की बढ़ी कीमत ग्राहकों पर डालना लंबित रहने और सेवाओं की बढ़ी मांग बने रहने के कारण प्रमुख महंगाई दर वित्त वर्ष 23 के शेष महीनों में बढ़े स्तर पर बनी रहने की संभावना है, भले ही हाल के समय में वैश्विक जिंसों की कीमतों में कुछ कमी आई है। जनवरी से अक्टूबर तक लगातार 10 महीने सीपीआई महंगाई दर 6 प्रतिशत से ऊपर रही है। सरकार ने रिजर्व बैंक द्वारा इस सिलसिले में दिए गए स्पष्टीकरण वाले पत्र को सार्वजनिक नहीं किया है। संसद में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने 1934 के आरबीआई ऐक्ट का हवाला देते हुए कहा कि रिजर्व बैंक के पत्र को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
अनाज की चिंता
नवंबर महीने में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कमी आई है और खाद्य महंगाई दर 11 माह के निचले स्तर 4.67 प्रतिशत पर पहुंच गई है। लेकिन अनाज की कीमतों में इस महीने में बढ़ोतरी हुई है और इसकी महंगाई दर 12.96 प्रतिशत रही, जो अक्टूबर में 12.08 प्रतिशत थी। नवंबर महीने में गेहूं की खुदरा महंगाई दर 19.67 प्रतिशत रही, जो अक्टूबर में 17.64 प्रतिशत थी। साल की शुरुआत में यह 5.1 प्रतिशत थी, जो वित्त वर्ष की शुरुआत में 9.59 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसके बाद से नवंबर तक यह दोगुने से ज्यादा पर पहुंच गई है। नवंबर महीने में चावल की महंगाई दर 10.51 प्रतिशत रही, जो अक्टूबर में 10.21 प्रतिशत थी। जनवरी में इसकी महंगाई दर महज 2.8 प्रतिशत और अप्रैल में 3.96 प्रतिशत थी। गेहूं और मक्के की आपूर्ति की समस्या हुई है, जिसकी वजह से दूध के दाम भी बढ़े हैं। नवंबर में दूध की महंगाई दर 8.23 प्रतिशत रही है, जो 2022 में सबसे ज्यादा है। साथ ही गायों को हुए लंपी रोग से भी दूध की कीमत बढ़ी है।
मौद्रिक नीति समिति की कार्रवाई
ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई दर संभवतः अब आर्थिक वृद्धि के लिए चिंता का विषय नहीं रहेगी, लेकिन एमपीसी के भावी रुख पर चर्चा जारी है। क्या अब रिजर्व बैंक रुख पलटेगा और वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिए रीपो रेट में कटौती करेगा? सेन ने कहा, ‘अभी फिलहाल नहीं। इस समय खुदरा महंगाई दर 6.25 प्रतिशत रीपो रेट से थोड़ा ही कम है। रियल रीपो रेट धनात्मक है। मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि जब महंगाई दर 4.5 प्रतिशत से नीचे आ जाएगी, उस समय रीपो रेट में कटौती होनी चाहिए।
मैं कम से कम इसके लिए एक तिमाही वक्त दूंगा।’ भानुमूर्ति का कहना है कि महंगाई दर में उतार चढ़ाव नीतिगत दर में उतार चढ़ाव के रूप में नहीं दिखना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘संभवतः एक और नीतिगत बढ़ोतरी हो सकती है। उसके बाद आप लंबा ठहराव देख सकते हैं।’ वहीं नायर का कहना है कि रीपो रेट पर फरवरी 2023 में एमपीसी का फैसला आंकड़ों से संचालित होगा। उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही और वित्त वर्ष 24 की पहली तिमाही में खुदरा महंगाई कैसी रहती है, इस पर एमपीसी का रुख निर्भर होगा।’