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  वित्त-बीमा  …गर कर्ज की पकड़ में आप भी गए हों जकड़
वित्त-बीमा

…गर कर्ज की पकड़ में आप भी गए हों जकड़

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 2, 2008 10:37 PM IST
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क्रेडिट कार्ड और कर्ज के जमाने में ग्राहक एक कर्ज चुकाने के लिए दूसरा कर्र्ज ले लेते हैं और फिर कर्ज के फेर में ऐसे फंसते हैं कि उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझता।


ऐसे में डिफॉल्टरों की संख्या में भी खूब इजाफा होता है, लेकिन ऐसी स्थितियां बनने से पहले आप बैंक को अपनी सही-सही वित्तीय स्थिति बता सकते हैं और मोल-भाव कर अपने कर्ज की ब्याज दरें कम भी करा सकते हैं। पर इसके लिए जरूरत है, एक अदद कदम की

हाल ही में जब एक 30 वर्षीय महिला बैंक ऑफ इंडिया के कर्ज सलाहकार केंद्र – अभय- में अपने दो दोस्तों के साथ पहुंची तो सलाहकार वी एन कुलकर्णी उनकी हालत जानकार काफी हैरत में पड़ गए। वह रुमाल से अपने आंसुओं को छुपाने की कोशिश कर रही थीं, जबकि उनकी हालत से साफ पता चलता था कि वह काफी उदास हैं।

उनके दोस्तों ने कुलकर्णी को बताया, ‘उन पर 40 लाख रुपये का कर्ज है और हम इस मामले में विकल्प जानना चाहते हैं।’ उनकी ओर से दी गई विस्तृत जानकारी काफी भयावह थी। निकिता कस्तूरी (बदला हुआ नाम) एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती हैं और उन पर 7 निजी कर्ज, 1 ऑटो कर्ज, 6 क्रेडिट कार्ड का बोझ है। साथ ही उनके मासिक वेतन में से इन सब चीजों पर 30 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं।

ऋणदाताओं ने पाया कि वह पिछले कुछ महीनों से अपना कर्ज नहीं चुका पा रही हैं। नतीजा : उन्हें रोज घर या दफ्तर दोनों जगह कई फोन आने लगे। उन्हें डर लग रहा था कि अगर कंपनी का निर्देशक उनकी वित्तीय स्थिति के बारे में जान गया तो उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।

कुलकर्णी का कहना है, ‘ज्यादातर मामलों में किसी भी लेनदार के पास कम से कम 4 क्रेडिट कार्ड और दो निजी कर्ज तो हैं ही। और किसी एक कर्ज का भुगतान करने के लिए लोग किसी ओर से दूसरा कर्ज ले लेते हैं, इसलिए यह समस्या बढ़ती जाती है और एक दिन आप कर्ज के शिंकजे में फंस जाते हैं।’

कस्तूरी का मामला कोई अलग नहीं है। इस तरह के कई मामले न रुकने वाली कर्ज लेने की आदत और कर्ज पर खरीदारी की वजह से आजकल तेजी से बढ़ रहे हैं। इसमें कोई हैरत नहीं है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी इस बात को लेकर चिंता में है। बैंक ने अपनी सालाना मध्यावधि पॉलिसी समीक्षा में शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी कर्ज सलाहकार की सुविधा के लिए प्रायोगिक परियोजना शुरू करने के बारे में कहा है।

कर्ज के जंजाल में फंसे लोगों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:

अपने पति-पत्नी माता पिता को जानकारी दें : सबसे बड़ी गलती यह होती है कि व्यक्ति अपने परिवार को अंधेरे में रखता है। और फिर वह कहीं का नहीं रहता, जब रिकवरी एजेंट उसके घर फोन करते हैं या अपना पैसा वापस लेने के लिए घर तक पहुंच जाते हैं। ऐसे में परिवार वालों को काफी हैरत होती है।

कर्ज सलाहकारों का कहना है अक्सर 10 में से 7 मामलों में ऐसा ही होता है। यहां तक कि कस्तूरी के मामले में भी उन्होंने अपने कर्ज की बात का जिक्र किसी से नहीं किया, उन्हें डर था कि अगर उनके परिवार को उनकी ऐसी वित्तीय स्थिति का पता चल जाएगा तो उसके भयानक परिणाम होंगे।

फाइनैंशियल प्लानर सुरेश सदगोपन के अनुसार अपने पति या पत्नी को सही बात बताने से काफी मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए जब एक पत्नी कर्ज के बारे में जानकारी रखती होगी, तो वह अपने कुछ खर्च कम कर सकती है, ताकि आपकी ईएमआई के भुगतान में मदद मिल सके।

पुनर्भुगतान के लिए योजना बनाएं : आप अपने मासिक खर्च की एक सूची बनाएं और अगर हो सके तो कर्ज के पुनर्भुगतान के लिए कुछ खर्चों को कम करें। और ऐसा तब तक करते रहें, जब तक कि आपको पूरा कर्ज चुकता न हो जाए।

अधिक लागत वाले कर्जों को कम लागत वाले कर्जों से बदल लें : ज्यादातर मामलों में कर्ज के शिकंजे में फंसने का सबसे बड़ा कारण अधिक ब्याज दर का चुकान है, जिसके बारे में ग्राहक अधिक विचार नहीं करते। बैंक क्रेडिट कार्ड पर 40 से 50 प्रतिशत तक और निजी कर्ज पर 20 प्रतिशत तक ब्याज लेते हैं।

अधिक ब्याज दरों से अपना पीछा छुड़ाने के लिए सस्ते कर्ज की तलाश करें। इसमें राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी), जीवन बीमा, किसान विकास पत्र (केवीपी), शेयर, म्युचुअल फंड, सोना और सावधि जमाखातों पर कर्ज पर विचार कर सकते हैं। कोई भी लेन दार अपनी प्रतिभूतियों पर भी कम ब्याज दरों पर कर्ज ले सकता है।

विशेषज्ञों की सलाह है कि एनएससी और केवीपी कर्ज लेने के लिए पहले विकल्पों में से होने चाहिए, क्योंकि ये दोनों ही अधिक तरल हैं। जिस समय इनकी अवधि पूरी होगी, तब आप अपने कर्ज का पूरा भुगतान कर सकेंगे। यहां तक कि 14 प्रतिशत ब्याज पर भी प्रतिभूतियों पर कर्ज लिया जा सकता है।

एकमुश्त अदायगी : अगर बैंक डिफॉल्टरों को एक बार में बकाया राशि के भुगतान की अनुमति देता है तो व्यक्ति को एकमुश्त अदायगी (ओटीएस) पर विचार करना चाहिए। इसके लिए प्रक्रिया कुछ इस तरह रहेगी। बैंक के पास जाइए, विभिन्न वित्तीय संस्थानों से लिए गए अपने सभी कर्जों और बकाये की सूची बनाएं, लेकिन बगैर उन संस्थानों का जिक्र किए हुए। ओटीएस के लिए अपनी दिलचस्पी जाहिर करें। इससे बैंक पर ऐसा प्रभाव पड़ेगा, जैसे कि आप भुगतान करने के इच्छुक हैं।

अपने किसी भी कर्ज को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति बनने से बचाएं। बैंक निपटारे के लिए तैयार होते हैं, लेकिन तभी जब लेनदार मूलधन के भुगतान में दिलचस्पी रखता हो। यह निपटान किस्तों पर भी कराया जा सकता है।

कर्जों की पुनर्संरचना : अगर ओटीसी का विकल्प मौजूद नहीं है और आपकी कमाई बकायों के मासिक भुगतान के साथ मेल नहीं खा पा रही है तो बैंक को आपके कर्ज की पुनर्संरचना के लिए कहें। एक पत्र लिखें, जिसमें आपकी मौजूदा वित्तीय स्थिति का पूरा विवरण हो। इस पत्र में उस रकम का भी जिक्र करें, जो आपके भुगतान की अदायगी के लिए आपको चाहिए।

पत्र में अपने शुध्द वेतन का सही-सही ब्योरा दें और बैंक को पुनर्संरचना के लिए कहें। बैंक कर्ज की पुनर्संरचना कर सकते हैं, जिसमें लेनदार की वित्तीय स्थिति के सुधरने के साथ ही अधिक ईएमआई ली जाती है।

अगर नौकरी खोने या आकस्मिक मेडिकल खर्च की वजह से डिफॉल्ट की समस्या हुई हो तो बैंक जुर्माने को भी हटा सकते हैं और डिफॉल्ट राशि पर ब्याज लगाएंगे। दिशा फाइनैंशियल काउंसलिंग के सलाहकार मदन मोहन का कहना है, ‘जब कोई क्रेडिट कार्ड कंपनियों के साथ बकाया के निपटान के लिए बातचीत करता है तब कार्ड जारीकर्ता कंपनी ओवर-लिमिट और अन्य वित्तीय चार्ज को हटा लेती हैं।’ साथ ही क्रेडिट कार्ड के बकाये को कर्ज में तब्दील कराएं। ग्राहक बकाया राशि को ईएमआई के रूप में चुका सकते हैं। इससे ब्याज लगभग आधा रह जाएगा (22 से 24 प्रतिशत)।

दिवालिया घोषित करें : बदतर स्थिति में अगर व्यक्ति अपना पूरा पैसा किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण गंवा चुका है और उसके पास न तो कोई परिसंपत्ति है और न ही आय का कोई अन्य स्रोत तो एकमात्र उपाय यह है कि उसे खुद को दिवालिया घोषित करने के लिए याचिका दायर करनी चाहिए। लेनदार को बैंक के पास जाना चाहिए और खुद को दिवालिया घोषित करना चाहिए।

अदालत उसकी सभी परिसंपत्तियों, जिनमें घर तक शामिल है, को अपने कब्जे में कर लेगी और उनसे ऋणदाता का बकाया चुकाएगी। लेकिन यह काफी जटिल प्रक्रिया है, जहां अदालत व्यक्ति की पूरी वित्तीय स्थिति का बारीकी से जायजा लेती है। इस पूरी प्रक्रिया में 3 साल तक का समय लग सकता है।

क्या करें ऐसे वक्त में

अपने करीबी रिश्तेदारों के साथ वित्तीय मामलों की चर्चा करें
बैंकों के साथ ब्याज दर को कम कराने या जुर्माना हटाने के लिए मोल-भाव करें
पुनर्भुगतान के लिए कम ब्याज दर पर कर्र्ज मुहैया कराने वालों की मदद लें

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