सोना परिसंपत्ति वर्ग में अपनी चमक से पिछले एक वर्ष से सभी को चकाचौंध कर चुका है। खासतौर पर पिछले 6 महीनों में, जिस समय इक्विटी बाजारों में मंदी का दौर था, उस समय भी सोना आसमान की बुलंदियां छू रहा था।
अगर विश्वास न हो तो एक बार इन आंकड़ों पर भी नजर डाल लीजिए। जनवरी से ही इक्विटी बाजार में अमेरिकी मंदी के डर से हल-चल मची हुई थी, गोल्ड-एक्सचेंज टे्रडेड फंड (ईटीएफ) जनवरी और मार्च के बीच भी 20 से 30 प्रतिशत रिटर्न दे रहा था।
मई में मिला रिटर्न (6.5 प्रतिशत) कुछ कम जरूर था, लेकिन तब भी वह अन्य इक्विटी फंडों से बेहतर था। पिछले एक साल में कीमतों के मामले में सोने की कीमतें 8,745 रुपये प्रति ग्राम से 12,235 रुपये के आंकड़े को छू गई, 12 महीनों में (1 जून, 2007 से 6 जून, 2008) में 3,490 रुपये की बढ़ोतरी हुई।
हां, यह सही है कि सोना इस समय निवेश का एक जरिया है, जिसकेबारे में किसी को भी निवेश के लिहाज से सोचना चाहिए, लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि क्या निवेश करने का यह सही समय है? इस बात में विशेषज्ञ दो मतों में बंट गए हैं। जहां एक और कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एक महीने बाद कम कीमतों पर निवेश करने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरे मानते हैं कि पिछले सप्ताह अमेरिका और यूरोप में इस मामले में हुए विकास के आगे भी बने रहने की उम्मीद है।
शेयरखान के जिंस शोधकर्ता प्रमुख, शैलेन्द्र कुमार का कहना है, यूरोपीयन सेंट्रल बैंक के निश्चय, बिना ब्याज दर बढ़ाए महंगाई से दो-दो हाथ किए जाएंगे, के चलते सोना अब ऊपर की चाल ही चलेगा। इसके कारण कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। पिछले हफ्ते अमेरिका और यूरोप में विकास के संकेत मिलने से कच्चे तेल की कीमतें लगभग 320 रुपये प्रति बैरल से बढ़कर लगभग 5,557 रुपये प्रति बैरल हो गईं।
रेलिगेयर सिक्योरिटीज के जिंस प्रमुख जयंत मांगलिक का मानना है कि सोने की कीमतें एक महीने के अंदर 7 से 8 प्रतिशत नीचे गिर जाएंगी। उनके अनुसार अमेरिका में स्थिति बिगड़ रही है, (6 जून को अमेरिका में नौकरी से जुड़े आंकड़ों से पता चलता है कि वहां बेरोजगारी दर 5.5 प्रतिशत से बढ़ गई है) निवेशकों को उम्मीद है कि यहां से चीजें सुधरना शुरू होंगी।
इसलिए अगर आप सोने में निवेश करना चाहते हैं, तो निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए। सोने, डॉलर और कच्चे तेल की कीमतें एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। चलिए देखते हैं कि यह कैसे काम करती हैं। सोना हमेशा महंगाई के मुकाबले बेहतर सुरक्षा देता है। और जैसा कि हम जानते हैं महंगाई के बढ़ने के पीछे कच्चे तेल की अहम भूमिका है। निवेशक की नजर से आप जब भी सोने में खरीद-फरोख्त करने के बारे में सोचें तो कच्चे तेल में हो रही हरकत पर जरूर ध्यान दें।
इसके बाद डॉलर की चाल भी भारतीय निवेशक के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि डॉलर-रुपये की विनिमय दर उनकी ओर से चुकाई जाने वाली सोने की कीमत तय करती है। जैसे कि एक निवेशक 42 रुपये=1 डॉलर की विनिमयर दर से 10 ग्राम सोने के लिए 13,986 रुपये या 333 डॉलर देता है। अब अगर सोने की कीमतें स्थिर रहती है, लेकिन रुपये की कीमत 39 रुपये प्रति डॉलर हो जाती है, तब सोने की कीमत गिर कर 12,987 रुपये रह जाएगी।
बेशक, सोने की कीमतें गिरने या बढ़ने से कीमतों में अंतर आएगा। डॉलर या रुपये दोनों को ध्यान में रखते हुए निवेशक मुनाफा या नुकसान कमाता है। कई विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में चल रही लगातार गिरावट भी एक कारण हो सकता है, ताकि भारतीय निवेशक कुछ समय के लिए निवेश करने से रुक जाएं।
एमसीएक्स के प्रमुख अर्थशास्त्री, वी षणमुगम का कहना है, ‘डॉलर-रुपये की विनिमय दर अभी भारतीय निवेशकों के लिहाज से बढ़िया नहीं है। जबकि सोना लंबे समय के मद्देनजर एक बढ़िया सौदा है, किसी को भी एक महीने के लिए रुक कर यह देखना चाहिए कि डॉलर और तेल की कीमतें किस दिशा में बढ़ती हैं।’
साधारण मूल नियम के अनुसार कहा जा सकता है कि डॉलर और सोने में प्रतिकूल संबंध हैं, क्योंकि निवेशक सोने में तभी निवेश करता है जब डॉलर की कीमत गिरती है और इसके विपरीत तभी बेचता है, जब डॉलर की कीमत चढ़ती है। फिलहाल, सोने की कीमतें ऊंची चढ़ रही है, क्योंकि अमेरिकी मंदी के कारण कच्चे तेल की कीमतों में उबाल आ रहा है और डॉलर की कीमतें कमजोर हो रही हैं। लेकिन अमेरिकी संघ की ओर से सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज फर्म से जुड़े एक जिंस विश्लेषक का कहना है, ‘अमेरिकी संघ ने हाल ही में कहा है वे अब ब्याज दरों में कटौती नहीं करेंगे। इससे विश्वभर में निवेशकों में विश्वास बढ़ा है, जो अब मानते हैं कि अमेरिका में ब्याज दरें स्थिर हो जाएंगी।’ और अगर ऐसा होता है, सोने पर निवेश करने वाले निवेशक दूसरी धातुओं के बारे में भी विचार करेंगे।
बेशक यह काफी महत्वपूर्ण है कि आप सोने में निवेश करने के लिए सही रास्ता चुनें। आभूषणों, सिक्के और बर्तनों के रूप में सोना खरीदने के भी अपने कुछ नुकसान हैं, क्योंकि इस पर लघु अवधि पूंजी लाभ कर (आपकी आय के अनुसार) लगेगा, अगर आप इसे तीन साल के भीतर बेच दें। तीन साल के बाद, इस पर दीर्घावधि पूंजी लाभ कर लगेगा, लेकिन इन्डेक्सेशन लाभों के बाद।
डीएसपी मेरिल लिंच और टाटा एआईजी की ओर से सोने के म्युचुअल फंड भी हैं, जो सोने की खदान कंपनियों में निवेश करते हैं। इसके अलावा गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड भी हैं। अंतिम दो डेट फंडों की तरह माने जाते हैं और उसी अनुसार कर भी लगता है। अगर आप खरीद के एक साल से कम समय में इसे बेच दें तब इस पर लघु अवधि पूंजी लाभ (आपकी आय के अनुसार) लगता है। एक साल के बाद बेचने पर इस पर इंडेक्सेशन के बाद दीर्घावधि पूंजी लाभ कर लगेगा।