बड़ी मंदी के बाजार के बीच में भावी योजनाओं को बनाए रखना काफी मुश्किल होता है। खासतौर पर तब जब यह जानते हों कि कई कारणों से दर्द और भी बढ़ सकता है।
उदाहरण के लिए विदेशी संस्थागत निवशकों की पूंजी लागतार भारत से अपना मुंह मोड़ रही है। भारतीय कंपनियों पर कर्ज के मामले में भी दबाव स्वाभाविक तौर पर बढ़ेगा, क्योंकि कंपनियां विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्ड (एफसीसीबी) कर्जों को लेकर मोल-भाव करने को तैयार हैं। कंपनियों को उम्मीद है कि अब शायद एफसीसीबी कर्ज का भुगतान कभी न हो।
आने वाला साल अपने साथ राजनीतिक उठा-पटक को भी लाएगा, क्योंकि केंद्र और कई राज्यों में सरकारों में बदलाव होने का अंदेशा जो है। इसका अर्थ नीतियों में बदलाव और देरी भी हो सकता है।
ये कुछ अहम और ध्यान देने योग्य बातें हैं और इनके एक साथ एक ही समय में घटित होने के कारण माना जा रहा है कि शेयर कीमतें कम से कम अगले 6 से 12 महीनों के लिए अभी निचले स्तर पर ही बनी रहेंगी।
पिछली चक्रीय मंदी के दौर में जैसे 2002-03 और 1998-99 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) 5 प्रतिशत तक नीचे चला गया था। 1992-93 में तो जीडीपी शून्य की सीमा को छू गया था। अभी तक तो किसी ने भी इस तरह की निराशाजनक भविष्यवाणी नहीं की है, लेकिन मौजूदा वित्तीय संकट के आयाम इतने फैले हुए हैं कि इस तरह ही हर आशंका हकीकत में बदल सकती है।
इक्विटी के लंबे समय की बेहतर परिसंपत्तियों में बने रहने की उम्मीद है। ऐसी स्थिति में जहां हर परिसंपत्ति से मिलने वाला रिटर्न नकारात्मक हो सकता है। इक्विटी ज्यादातर हमेशा पहली परिसंपत्ति की श्रेणी में आती है, जिससे रिकवरी की जा सकती है। साथ ही ऐसी उम्मीद भी है कि इक्विटी सबसे ज्यादा दीर्घावधि रिटर्न देगी।
वैश्विक जिंस चक्र तेजी से नीचे गिर रहा है। रियल एस्टेट में भी कीमतों में कमी देखी जा रही है। गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों यानी डिफॉल्ट्स के बढ़ने की संभावना ने डेट परिसंपत्तियों की गुणवत्ता पर भी असर डाला है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की बाजार में नकदी बढ़ाने के लिए कमर तोड़ मेहनत के कारण व्यावसायिक ब्याज दरें कम हो रही हैं। लेकिन डेट फंड नकदी के संकट और डिफॉल्ट की स्थिति के कारण दांव पर हो सकते हैं।
शेयर कीमतों में आगे भी गिरावट का असल खतरा मंडरा रहा है। बावजूद इसके एक सतर्क निवेशक जिंस या डेट के मुकाबले शेयरों में निवेश कर अपने लिए सुरक्षा कवच बना सकता है। एक बढ़िया निवेशक अपने लिए संतुलित, बारीक निवेश के पैमाने बना सकता है, लेकिन सिर्फ ब्लू चिप ही इस तरह के मापदंडों पर खरे उतर सकते हैं।
बढ़िया निवेशक के लिए चयन के नियम मौजूदा परिस्थितियों में काफी सरल हैं। अधिक कर्ज लेकर निवेश से बचें। कम प्राइस-बुक वैल्यू (पीबीवी) अनुपातों पर विचार करें। अधिक लाभांश देने वाले और स्थिर लाभांश दे चुके शेयरों पर नजर दौड़ाएं।
ऐसे कारोबारों पर नजर रखें जिनकी कुल बिक्री और बड़े शेयर-लेन देन की मात्रा के मामले में नकदी अच्छी-खासी हो। इन मानकों पर खरी उतरने वाली कंपनियां आगे चल कर भी निवेशक की परीक्षा में फेल नहीं होंगी। जैसे ही समय बदलेगा और कीमत-आय का अंतर सुधरेगा, तब हो सकता है वे दोनों हाथों से मुनाफा बटोरें।
इन आधारभूत मानदंडों को सफलतापूर्वक पार करने वाली कंपनियों की तलाश के लिए तकनीकी जांच भी की की जा सकती है। 5,000 करोड़ रुपये की बाजार पूंजीकरण वाली 10 प्रतिशत से अधिक कंपनियां 1 से भी कम पीबीवी पर कारोबार कर रही हैं। इनमें से कई 5 प्रतिशत से अधिक लाभांश आय देती हैं। ऐसी कंपनियों को अलग कर दें जिनका डेट-इक्विटी अनुपात 0.7 प्रतिशत से अधिक हो।
इससे आपको विभिन्न कंपनियों की एक फेहरिस्त मिल जाएगी, जिसकी मदद से आप कारोबार की निरंतरता, प्रबंधन की गुणवत्ता, सकारात्मक नकद प्रवाह, चल रही परियोजनाएं और विस्तार, ईपीएस आदि विषयों पर सही फैसले ले पाएंगे।
इस चयन प्रक्रिया के आधार पर जिन कंपनियों की फेहरिस्त अब आपके हाथ में है, यह जरूरी नहीं कि वे बड़े बाजार के मुकाबले तेजी से रिकवर करे। लेकिन इसमें कम पीबीवी और अधिक लाभांश के कॉम्बो के कारण कम जोखिम है। अधिक लाभांश आमदनी से आपको एक सुरक्षा कवच मिल जाएगा और पीबीवी अनुपात आगे पूंजी में होने वाले नुकसान के जोखिम को भी सीमित कर देगा।
हालांकि, शेयरों के चयन से भी कहीं अधिक निवेशकों के लिए पैसा प्रबंधन की दिमागी कसरत है। खरीद से अधिक से अधिक रिटर्न कमा पाना और मंदी के दौर में खरीदने के साथ उन शेयरों में सबसे अधिक कीमत मिलने तक इंतजार करने की रणनीति काफी अहम है। बहुत ही कम निवेशकों में इतना अनुशासन और धैर्य होता है वे यह कारोबारी चक्र पूरा होने तक इसमें बने रहें।
मंदी के बाजार के दौरान दर्द काफी कम हो जाता है, क्योंकि पोर्टफोलियो रिटर्न सकारात्मक हो जाते हैं। जितने अधिक समय के लिए मंदड़ियों का बाजार बना रहता है, उतना ही खरीदना और फिर इंतजार करना मुश्किल हो जाता है। इस समय परिस्थितियां मार्च 2000 से मई 2003 के दौरान मंदड़ियों के बाजार से काफी मिलती-जुलती लग रही हैं। अच्छे रिटर्न उन्हें मिले थे, जिन्होंने वर्ष 2000 से 2003 के बीच में खरीदा था और 2007 के अंत या 2008 की शुरुआत में उन्हें बेचा।
सीधी सी बात यह है कि इस बार मंदड़ियों के बाजार में निवेश करने का मतलब है कि अब निवेशक को 2014-15 तक के लिए इस निवेश के साथ बने रहना चाहिए। हालांकि यह भी हो सकता है कि बाजार जब उछाल में हो तो वह अपने पिछले चक्र के समान ही उतना ही बड़ा हो।
जिन्होंने 2000-2003 में शेयर खरीदे और 2007 के अंत में बेचे उन्होंने 300 प्रतिशत तक कारिटर्न कमाया। मौजूदा चक्र के दौरान भी ठीक वैसा ही खरीदना और जितना मुनासिब हो उतने लंबे समय के लिए बने रहना हो सकता है कि और भी अधिक मुनाफा दे जाए।