अंतरराष्ट्रीय पुनर्बीमा बाजार में मायूसी छाने के बाद अब सामान्य बीमा कंपनियां अब जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
उल्लेखनीय है कि जीआईसी एक मात्र सरकारी मान्यता प्राप्त पुनर्बीमा कंपनी है। कई गैर-जीवन बीमा कंपनियों ने पहले ही जीआईसी के साथ साझेदारी की है। हाल में मौजूदा बीमा कंपनियों पर मंदी की मार पड़ी तो कई बीमा कंपनियों ने अपने जोखिम को कम करने के लिए कुछ नई कंपनियों से साझेदारी की है।
स्विस रे और म्युनिख रे जैसी बडी पुनर्बीमा कंपनियों ने मंदी की शिकार हुई इन सामान्य बीमा कंपनियों की अंडरराइटिंग प्रक्रिया और पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रीमियम की दरों में बढ़ोतरी की जरूरत पर जोर दिया।
ये बीमा कंपनियों द्वारा दिए जा रहे ऑफर को लेकर काफी चिंतित दिखाई दे रहे थे। उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि स्विस रे ने कुछ बीमा कंपनियों को दी गई अपनी पुनर्बीमा सहायता को वापस ले लिया है जिसमें इफको टोक्यो भी शामिल है।
जहां तक अमेरिकी इंश्योरेंस ग्रुप (एआईजी) की बात है तो इसे जो परेशानी झेलनी पड़ी, उसका कोई बहुत बडा प्रभाव बीमा कारोबार पर नहीं पडा क्योंकि बीमा कंपनियां एआईजी से केवल फेकल्टेटिव रिइंश्योरेंस की ही मदद लेती हैं। फेकल्टेटिव रिइंश्योरेंस मुख्य तौर पर केस-टू-केस अधार पर किया जाता है।
कुछ अन्य कंपनियां जैसी लॉयड्स, एशिया कैपिटल रिइंश्योरेंस, आलियांज ऐंड हैनओवर रिइंश्योरेंस ने भी अपने साझेदारी को नवीनता प्रदान की है। मालूम हो कि जीआईसी ने ग्रुप हेल्थ और गु्रप पसर्नल दुघर्टना कवर में स्वास्थ्य बीमा में ऊंचे दावों के कारण अपने कमीशन दर को 20 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी तक कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि बीमा कंपनियों को अपने कारोबार का 10 फसदी हिस्सा राष्ट्रीय पुनर्बीमा कंपनी के साथ अनिवार्य तौर पर रखनी होती है। यूरोपीय बीमा बाजार ने जब अपनी संधियों का नवीकरण किया था तो जीआईसी को 1 जनवरी 2009 को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़त देखने को मिली थी।
आईसीआईसीआई लोम्बार्ड के पुनर्बीमा के प्रमुख राजीव कुमारस्वामी का कहना है कि जहां पर जीआईसी अग्रणी पुनर्बीमा कंपनी होती है वहां अन्य बीमा कंपनियों को जीआईसी के नियमों के अनुसार ही चलना पड़ता है। कमीशन दरों में गिरावट आने के बाद भी औद्योगिक कंपनियों के बीमा नवीकरण में 1 अप्रैल 2009 के बाद भी सख्ती नहीं आई है।