वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश बजट में कर्मचारी भविष्य निधि कोष (ईपीएफ) में आयकर की बात कहकर सबको चौंका दिया था। उन्होंने ईपीएफ में साल में 2.5 लाख रुपये से अधिक योगदान होने पर अर्जित ब्याज को कर योग्य बनाने का ऐलान किया था। हालांकि संशोधन के बाद उन कर्मचारियों के लिए सीमा बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी गई है, जिनके ईपीएफ में नियोक्ता का कोई योगदान नहीं होता।
क्यों हुआ संशोधन
जब कोई व्यक्ति ईपीएफ में अंशदान करता है तो नियोक्ता भी उतनी ही रकम डालता है। सरकार कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के कुल अंशदान पर मिले ब्याज को करमुक्त मान लेती है। अगर कोई व्यक्ति हर साल 2.5 लाख रुपये अंशदान करता है और उसका नियोक्ता भी उतनी ही रकम डालता है तो उसे कुल 5 लाख रुपये पर करमुक्त ब्याज मिलता है। लेकिन कुछ मामलों में केवल कर्मचारी योगदान करता है और नियोक्ता एक पाई नहीं डालता। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ पंजीकृत निवेश सलाहकार पर्सनलफाइनैंस प्लान के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, ‘ऐसे कर्मचारियों को केवल 2.5 लाख रुपये के अंशदान पर ही कर छूट का फायदा मिलता। लेकिन उन्हें समान लाभ देने के लिए सरकार ने सीमा दोगुनी यानी 5 लाख रुपये का दी है।’
किस पर होगा असर?
जब कंपनियों का आकार एक निश्चित सीमा पार कर जाता है तो नियोक्ताओं को पीएफ योगदान से जुड़े दिशानिर्देश मानने पड़ते हैं। आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा कहते हैं, ‘ईपीएफ अधिनियम के अनुसार 20 या इससे अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को पंजीकरण के साथ मूल वेतन और महंगाई एवं कर्मचारी सेवा भत्ते का 12 प्रतिशत हिस्सा पीएफ खाते में डालना होता है। कर्मचारी की तरफ से भी इतनी ही रकम आती है।’ सरकार ने नियमों में जो बदलाव किया है, वह सांविधिक या सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) में योगदान करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर लागू होगा। नांगिया एंडरसन एलएलपी में निदेशक नेहा मल्होत्रा कहती हैं, ‘जीपीएफ में नियोक्ता यानी सरकार किसी तरह का अंशदान नहीं करती। केवल कर्मचारी रकम डालते हैं। नियम में बदलाव नहीं होता तो उन्हें केवल 2.5 लाख रुपये तक के अंशदान पर करमुक्त ब्याज का फायदा मिलता। दूसरी ओर निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को 5 लाख रुपये तक अंशदान के ब्याज पर कर से मुक्ति मिल जाती।’ निजी क्षेत्र पर इस बदलाव का असर नहीं के बराबर होगा। टीमलीज सर्विसेस में कारोबार प्रमुख (कम्प्लायंस ऐंड पेरोल आउटसोर्सिंग) प्रशांत सिंह कहते हैं, ‘इन दिनों निजी क्षेत्र की ज्यादातर कंपनियां ईपीएफ नियमों का पालन करती हैं। कमोबेश सभी कंपनियों में कर्मचारी और नियोक्ता दोनों ही ईपीएफ में अंशदान करते हैं। नए नियम का असर उन्हीं कंपनियों में होगा, जहां श्रम संहिता का पालन नहीं किया जा रहा है।’ वित्त मंत्री ने कहा इस संशोधन से केवल 1 प्रतिशत अंशदाताओं पर ही असर होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि ये नियम अधिसूचित होने के बाद ही तस्वीर और साफ हो पाएगी।
कैसे उठाएं फायदा
ऐसा नहीं है कि ईपीएफ अंशदान में बदलाव के नए नियम से नुकसान ही होगा। कुछ संगठनों में कर्मचारी इस बदलाव का फायदा भी ले सकते हैं। 15,000 रुपये तक मूल वेतन पाने वाले कर्मचारियों के ईपीएफ में नियोक्ता का अंशदान आना अनिवार्य है। मूल वेतन 15,000 रुपये से अधिक हो तो नियोक्ता के लिए ऐसा करना जरूरी नहीं है। 15,000 रुपये मूल वेतन का 12 प्रतिशत 1,800 रुपये होता है। कई मामलों में नियोक्ता नियम का पालन करने के लिए महीने में केवल 1,800 रुपये ही डालते हैं। इसे ऐसे समझते हैं। मान लीजिए कि कोई कर्मचारी अपने पीएफ खाते में हर महीने 40,000 रुपये का योगदान करता है। इस तरह वह सालाना 4.8 लाख रुपये डाल रहा है। मान लीजिए कि उसका नियोक्ता नियम का पालन भर करने के लिए हर महीने केवल 1,800 रुपये दे रहा है यानी वह हर महीने 21,600 रुपये डाल रहा है। इस तरह उस कर्मचारी के पीएफ खाते में हर महीने कुल 5,01,600 रुपये जा रहे हैं, जिससे उसके अर्जित ब्याज पर आयकर बन जाएगा। कर से बचने का तरीका राघव सुझाते हैं, ‘ऐसा व्यक्ति अपने नियोक्ता से गुजारिश कर सकता है कि उसके पीएफ खाते में कंपनी की ओर से कुछ भी नहीं डाला जाए। इस तरह उसे केवल 2.5 लाख रुपये के बजाय पूरे 4.8 लाख रुपये तक के अंशदान पर करमुक्त ब्याज मिल जाएगा।’
