भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने डूबते ऋण पर बैंकों को आगाह करते हुए कहा है कि रेहन के बगैर दिए जा रहे ऋण पर अधिक नजर रखने की जरूरत है। आरबीआई ने देश में बैंकिंग क्षेत्र के रुझान पर जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘ट्रेंड्स ऐंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन इंडिया 2023-24’ में कहा कि अधिक चूक और उठाव के कारण बिना रेहन वाले ऋण पर निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता है। आरबीआई ने ऋणदाताओं और निजी क्रेडिट फर्मों के बीच के संबंधों पर बारीकी से नजर रखने का भी सुझाव दिया।
बैंकों के कुल डूबते ऋण में गिरावट का रुख जारी है। सकल गैर-निष्पादित आस्तियां मार्च 2024 में कुल ऋण की 2.7 फीसदी रह गई थीं, जो 13 साल में सबसे कम आंकड़ा था। उसके बाद सितंबर के अंत में आंकड़ा और घटकर 2.5 फीसदी रह गया। बैंकों की लाभप्रदता 2023-24 में लगातार छठे साल बेहतर हुई और 2024-25 की पहली छमाही में भी बढ़त जारी रही।
परिसंपत्ति पर रिटर्न (आरओए) 1.4 फीसदी और इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) 14.6 फीसदी रहा। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कुल उधारी में बिना रेहन वाले ऋण की हिस्सेदारी मार्च 2015 के बाद लगातार बढ़ते हुए मार्च 2023 के अंत में 25.5 फीसदी हो गई। मगर मार्च 2024 के आखिर में यह मामूली गिरावट के साथ 25.3 फीसदी रही।
बैंकिंग नियामक ने नवंबर 2024 में बिना रेहन वाले ऋण के लिए उच्च जोखिम भार को अनिवार्य किए जाने के साथ ही बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों के बोर्ड से बिना रेहन वाले ऋण की सीमा निर्धारित करने के लिए कहा है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कुछ संस्थाओं ने बहुत ऊंची सीमा तय कर रखी है, जिस पर लगातार नजर रखने की जरूरत है।’
आरबीआई ने उम्मीद जताई है कि विनियमित संस्थाओं के बोर्ड अपने विवेक से काम लेंगे और अपनी वित्तीय सेहत के साथ-साथ प्रणालीगत वित्तीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए आंख मूंदकर कर्ज बांटने से बचेंगे। नियामक ने चेतावनी दी है कि टॉप-अप ऋण देने के तरीके से जोखिम बढ़ रहा है। दरअसल बैंकों को जानकारी मिली है कि ऐसे कर्जों को मंजूरी बिना किसी जांच-पड़ताल के और लचीले नियमों के साथ दे दी जाती है। यह भी देखा गया है कि बैंक ऋण देने के नियमों में, ऋण-मूल्य अनुपात (एलटीवी), जोखिम भार से जुड़े दिशानिर्देशों का सही तरीके से पालन नहीं कर पा रहे हैं साथ ही वे यह भी सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं कि ऋण की राशि का इस्तेमाल कैसे किया जाना है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘इस तरह के ऋण से जोखिम बढ़ सकता है खासतौर पर ऐसे वक्त में जब इस तरह के ऋण के लिए रखी गई गिरवी संपत्ति के मूल्य में अस्थिरता हो या फिर मंदी की स्थिति आ जाए।’ पिछले वर्ष ही आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिया था कि वे टॉप अप ऋण को असुरक्षित श्रेणी के तौर पर देखें। हालांकि अगर जरूरत पड़ी तब नियामक टॉप अप ऋण देने के नियमों को और सख्त कर सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘रिजर्व बैंक जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त नियामकीय हस्तक्षेप कर सकता है ताकि अन्य टॉप-अप लोन के मामले में पहले से पहचाने जा चुके जोखिम कम किए जा सकें।’ इसके अलावा नियामक ने गोल्ड लोन पर चिंता जताई है क्योंकि सोने के गहने के बदले ऋण देने में कई अनियमितताएं देखी गई हैं।
इसीलिए नियामक ने बैंकों से कहा है कि वे गोल्ड लोन पर नजर रखें और साथ ही थर्ड पार्टी सेवा प्रदाताओं और बैंक जिन्हें अपना काम सौंपते हैं, उन पर भी पर्याप्त नियंत्रण बनाए रखें। जहां तक भारत में निजी ऋण बाजार की बात है नियामक का कहना है कि ऐसे निजी ऋण कंपनियों का आकार और उनके द्वारा जुटाई गई पूंजी का मात्रा ज्यादा नहीं है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बैंक और एनबीएफसी तथा निजी ऋण कंपनियों के बीच उनके संबंधों पर गौर करने की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘इनके बीच संबंध से कई तरह की चिंताएं बढ़ सकती हैं जैसे कि बाजार में नियमों को तोड़ने के मौके भी बन सकते हैं।’
जहां तक कुल खुदरा ऋणों का संबंध है सितंबर 2024 तक सकल एनपीए 1.2 फीसदी था जो सभी क्षेत्रों में सबसे कम है जबकि कृषि क्षेत्र में एनपीए सबसे अधिक 6.2 प्रतिशत था। शिक्षा ऋण का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का अनुपात मार्च 2023 के अंत के 5.8 प्रतिशत से कम होकर मार्च 2024 में 3.6 प्रतिशत और सितंबर 2024 के अंत में घटकर 2.7 प्रतिशत हो गया। लेकिन यह अब भी खुदरा ऋण में सबसे अधिक है और इसके बाद क्रेडिट कार्ड और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के ऋणों का स्थान है।