इस समय बाजार ने जहां नीचे का रुख किया हुआ है, वहां अच्छी-अच्छी कंपनियों के शेयर भी काफी आकर्षित कीमत पर मिल रहे हैं, लेकिन इनके साथ आपको लंबा वक्त गुजारना पड़ेगा।
किसी भी कारोबार में आदर्श रणनीति तो कम में खरीद कर ज्यादा में बेचना ही होती है।
लेकिन यहां ज्यादा में खरीद कर उससे भी ज्यादा में बेचना भी मान्य है। कच्चे माल की लागत में इजाफे के साथ एक विनिर्माता को ऐसा जरूर करना चाहिए। साथ ही, यह भी संभव है कि समयसीमा को बदल कर पहले बेच लिया जाए और भविष्य में खरीदने की सोचें।
उदाहरण के लिए एक बंदरगाह नए ऑर्डर लेता है और भुगतान का कुछ हिस्सा या फिर पूरा 100 प्रतिशत भुगतान पहले ही कर दिया जाता है, जिसका इस्तेमाल कच्चा माल खरीदने में किया जाता है।समयसीमा को सेवा क्षेत्र में भी बदला जा सकता है। आईटी से जुड़ी एक सलाकार कंपनी पहले ही पूरे भुगतान या उसके कुछ हिस्से की मांग कर सकती है। इसका इस्तेमाल करार पूरा करने के लिए लोगों की नियुक्ति में किया जा सकता है।
यह सिर्फ तब है जब कोई इक्विटी के साथ काम करता है। इसमें सिर्फ नैतिक विचार है। इसकी वजह प्रत्यक्ष मूल्य-वृध्दि की कमी है।लेकिन सेकंडरी बाजार में इक्विटी कारोबार में प्रत्यक्ष मूल्य-वृध्दि की कमी का वैसा असर नहीं पड़ता, जैसा कोई अपने कारोबार में देखता है। अब भी कई शेयरों को खरीदा जा रहा है और बाद में बेचा जाएगा, या अभी बेच कर बाद में खरीदा जाएगा। चूंकि ये सभी दूसरे कारोबारों में भी लागू होते हैं, इसलिए इन्हें इक्विटी बाजारों में भी लागू होना चाहिए।
इक्विटी कारोबार में मूल्य-वृध्दि का मतलब यह है कि खरीदार यह सोचता है कि अभी की जो बाजार कीमत है वह शेयर की कीमत को कम आंक रही है। इसलिए जब तक कि अतिरिक्त कीमत न मिलने वाली हो तब तक के लिए खरीदार शेयर अपने पास जमा रख लेता है। वायदा कारोबार में भी ऐसा ही होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि वायदा कारोबार में स्टॉक अवधि के लिए कड़ी समयसीमा होती है।
ध्यान देने लायक बात यह है कि यह जीरो ट्रांसेक्शन होता है- एक पक्ष का फायदा हमेशा दूसरे का नुकसान होता है। अगर खरीदार सही है और कीमतें तेज हैं, बेचने वाले का नुकसान और खरीदार का मुनाफा होगा और जब कीमतें घटती हैं तो ठीक इसका उलट होगा।
लेकिन ये लेन-देन सिर्फ तभी तक लागू माना जाता है, जब तक खरीदार सही हो! आज अब बेचने और बाद में खरीदना एक आम बात हो गई है, जहां शॉर्ट सेलर को फायदा होता है अगर भविष्य में कीमतें गिर जाएं।
जब किसी निराशा से घिरे हुए खरीदार को नुकसान होता है तो इस पर उसका गुस्से में होना समझ में आता है, लेकिन अक्सर नियामक संस्थाओं की ओर से भी ऐसा ही रवैया अपनाया जाता है। जब कीमतें घटती हैं, तो कहीं न कहीं शॉर्ट-सेलिंग से मुनाफा कमाना नैतिक तौर पर गलत लगता है।
बाजार में अच्छी खबरों के प्रचार-प्रसार के साथ खरीदार के लिए कहना कि उसका पोर्टफोलियो बढ़ा है, ठीक है। बाजार में बुरी खबरों के प्रचार-प्रसार के साथ शॉर्ट-सेलर का कहना कि उसका पोर्टफोलियो घटा है, थोड़ा अटपटा लगता है। यह भेद-भाव तब खासतौर पर अतार्किक हो जाता है, जब न तो खरीदार और न ही शॉर्ट सेलर सक्रिय रूप से बाजार में लेन-देन में शामिल होते हैं और अच्छी या बुरी खबर के पीछे इन दोनों में से किसी की मेहनत शामिल नहीं होती।
व्यावहारिक तौर पर इस रवैये से शॉर्ट सेलर, जो हमेशा से नियामक संस्थाओं के निशाने पर होता है, के खिलाफ मुहिम तैयार हो जाती है। गणित की भाषा में जोखिम में फायदे का समीकरण किसी भी हाल में शॉर्ट सेलिंग के खिलाफ बिगड़ता ही है। जब कीमतें बढ़ती हैं, एक खरीदार उनमें अपार ऊंचाई के अनुमान लगता है। एक शॉर्ट सेलर 100 प्रतिशत तक कीमतों को गिरते हुए और टूटते हुए देखता है।
एक शॉर्ट सेलर उलटे लेन-देन पर ध्यान देता है, यानी पहले बेचना और फिर खरीदना। इस प्रक्रिया से इसलिए नकदी हमेशा आती है और चूंकि शॉर्ट कवरिंग गतिविधि से मांग बढ़ती है, इसलिए कीमतों पर अंकुश भी लगाया जाता है। जब भी शॉर्ट-सेलिंग पर प्रतिबंध लगाया जाता है, नियामक अनिवार्य रूप से उलटे लेन-देन को एक निश्चित समयसीमा में जारी रखने पर दबाव देता है, जिसे मौजूदा शॉर्ट-सेलर चला रहे थे। इससे अस्थायी तौर पर उस समय के लिए कीमतें बढ़ जाती हैं। इस दौरान लंबे समय के लिए निवेश के लिहाज से शेयर खरीदने से फायदा हो सकता है।
लेकिन एक बार जब बाजार से शॉर्ट-सेलर बाहर हो जाते हैं, तरलता भी खत्म हो जाती है। कम तरलता के कारण अक्सर कीमतें घट जाती हैं और इस स्थिति के लिए बिना किसी प्रणाली या तंत्र के कीमतों की अधिकतम सीमा नहीं बचती।भारतीय नियामक और राजनैतिक संगठन अब विदेशी शॉर्ट-सेलरों से उलट लेन-देन के लिए बातचीत कर रहे हैं।
अगर वे इसमें सफल हो गए तो कीमतें वापस अपने स्तर पर आ जाएंगी। लेकिन कीमतों का वापसी का वह स्तर हमेशा नहीं बना रहेगा, क्योंकि मुनाफा खत्म हो जाएगा।अगर आप उलट लेने-देन के एक निश्चित समय में कारोबार करते हैं तो आपको कारोबार में मुनाफा कमाने का मौका मिल सकता है।
अगर आप इस मौके का फायदा नहीं उठाना चाहते और आप लेन-देन के पारंपरिक तरीके यानी कम में खरीद कर अधिक में बेचने का सुरक्षित खेल खेलना चाहते हैं तो फिर मूल्यांकन के लिहाज से यह वक्त खरीदने के लिए बढ़िया है। लेकिन इस वक्त में खरीदने के बाद आपको लंबे समय के लिए स्टॉक अपने पास रखना पड़ सकता है। और हां, शेयरों का चुनाव भी एक अहम हिस्सा है।