BS BFSI 2024: विदेशी बैंकों के लिए भारत रणनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण देश बना हुआ है हालांकि इनमें से ज्यादातर बैंक फिलहाल रिटेल बैंकिंग सेगमेंट में दांव लगाने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। बिज़नेस स्टैंडर्ड के इनसाइट सम्मेलन में भारत में मौजूद बड़े विदेशी बैंकों के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि वे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था में अपने दायरे का विस्तार करने पर ध्यान देना चाहते हैं।
बैंक ऑफ अमेरिका की अध्यक्ष और कंट्री हेड (भारत) काकू नखाते कहती हैं, ‘वैश्विक स्तर पर आपका जिस क्षेत्र में दबदबा है, आपको उसमें ही अपनी पारी खेलनी है। अगर भारत में आपकी कोई भी प्रमुख वैश्विक योजना अपनाई जा सकती है तब निश्चित रूप से आपको इसका लाभ होगा। भारत दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए तैयार हो रहा है ऐसे में पूंजीगत आवश्यकताएं और वित्तीय जरूरतें बढ़ने ही वाली हैं।’
बार्कलेज बैंक के सीईओ और प्रमुख (निवेश बैंकिंग भारत) प्रमोद कुमार ने कहा, ‘सभी कारोबारी संस्थाओं को प्राथमिकताएं तय करनी होती है क्योंकि प्रबंधन का दायरा और संसाधन सीमित हैं। आपको अपने मजबूत पक्ष के साथ कोशिश करनी होती है। संस्थागत बैंकिंग या थोक बैंकिंग में आपको हमेशा वैश्विक संस्थान होने का एक फायदा मिलता है लेकिन रिटेल स्थानीय स्तर की पहल है। इसमें वास्तव में आप कुछ भी वैश्विक स्तर की चीजें नहीं जोड़ रहे हैं। बेहतरीन तकनीकी समाधान की पेशकश करने में सक्षम होने वाले बड़े निजी बैंकों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में थोड़ा अंतर है।’
सिटीबैंक इंडिया के सीईओ आशु खुल्लर के विचार भी लगभग समान ही थे। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत दुनिया में एक बड़े ‘मौके’ के तौर पर उभरा है लेकिन सीधे तौर पर ग्राहकों से जुड़ने के कारोबार से निकलने का फैसला वैश्विक स्तर पर मूल कंपनी का फैसला था ताकि उन क्षेत्रों में ग्राहकों को अलग तरीके से महत्व दिया जा सके। उन्होंने कहा, ‘किसी भी उभरते बाजार में सीमाएं महत्वपूर्ण हैं जहां नियामकों से जुड़ी अनिश्चितताएं हों। अगर आपके पास इससे निपटने की क्षमता नहीं है तब कारोबार बेहद मुश्किल साबित हो सकता है।’
खुल्लर का कहना है, ‘हम व्यापक तौर पर अपने मंच पर निवेश बैंकिंग से लेकर ट्रांजैक्शन सेवाएं और अन्य सेवाएं दे रहे हैं जिसकी वजह से हमारी अलग पहचान बनी हुई है। हम दोहरे अंक वाले सालाना चक्रवृद्धि दर वाले अवसरों को देख रहे हैं जो भारत में राजस्व और मुनाफा वृद्धि के आधार पर बना है।’
एचएसबीसी उन चुनिंदा बड़े वैश्विक बैंकों में शामिल है जिसका भारत में रिटेल कारोबार है। बैंक के सीईओ (भारत) हिंतेंद्र दवे कहते हैं, ‘एचएसबीसी सभी सेगमेंट पर जोर देना जारी रखेगा क्योंकि बाकी अन्य विदेशी बैंकों के भारत में बैंकिंग क्षेत्र के भीतर प्राथमिकताओं वाले सेगमेंट हैं जबकि इस बैंक ने देश को ही अपनी प्राथमिकताओं में रखा है।’
दवे ने कहा, ‘भारत में 1.4 अरब की आबादी है। इनमें से करीब 2-3 प्रतिशत लोगों की ऐसी जरूरतें होंगी जो केवल वैश्विक बैंकों के जरिये ही संभव होंगी। उदाहरण के तौर पर कोई अपने बच्चे को पढ़ाई करने के लिए भेजना चाहता है या फिर कोई ऐसी नौकरी करता है जिसमें दूसरे देश में स्थानांतरण संभव है।’
वैश्विक बैंकों के प्रमुखों ने इस बात पर सहमति जताई कि वे घरेलू और वैश्विक स्तर के क्लाइंट के लिए निवेश बैंकिंग सेवा क्षेत्र में मौके देखते हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था में विस्तार के साथ ही पूंजी की आवश्यकता बढ़ेगी। विदेशी बैंक भारत में अपना विस्तार करने के लिए नए सेगमेंट पर दांव लगा रहे हैं।
नखाटे कहती हैं, ‘अमेरिका में हमारी अच्छी दखल है और कई अमेरिकी क्लाइंट यहां आ रहे हैं और हमने पिछले 8-10 वर्षों में उन योजनाओं में निवेश किया है जिसके चलते हम उन क्लाइंट को बेहतर सेवाएं दे पाते हैं। हमने संकटग्रस्त ऋण बाजार में भी कदम रखा है और यह ऐसा बाजार है जिसमें वृद्धि होगी।’
दवे ने बताया, ‘अंतरराष्ट्रीयकरण हमारी बड़ी ताकत है। हम दोनों देशों वाले करार में शत-प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी चाहते हैं। निसंदेह हमारे ऐसे प्रतिस्पर्द्धी भी हैं जो ऐसे बयान देने के लिए मजबूर हैं जिन्हें हासिल करना मुश्किल है। निजी तौर पर हम शीर्ष अधिकारियों की तरफ से उच्च स्तर का कारोबार देख रहे हैं जो भारत से बाहर की परिसंपत्ति और निवेश चाहते हैं।’
खुल्लर ने कहा कि निवेश बैंकिंग, बाजार, कॉरपोरेट विदेशी मुद्रा भंडार और इक्विटीज ऐसे कारोबारी सेगमेंट हैं जो बढ़ोतरी की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘वाणिज्यिक बैंकिंग क्षेत्र में हम अपने ऐसे क्लाइंट पर जोर दे रहे हैं जो मूल्यवर्धन कर सकते हैं और यह इस वजह से संभव है कि ये नाम वैश्विक नेटवर्क , विदेशी कारोबार तक अपनी पहुंच चाहते हैं या डिजिटलीकरण इस तरह करना चाहते हैं कि वे अपनी परिचालन क्षमता में सुधार कर सकें।’
भारत में सहयोगी इकाई के तौर पर काम न करने के बजाय भारत में विदेशी बैंक की शाखा के तौर पर अपना परिचालन करने का विकल्प चुनने के सवाल पर शीर्ष विदेशी बैंकों के प्रमुखों ने कहा कि यह फैसला मौजूदा संरचना से जुड़े लाभ पर आधारित था।