मौद्रिक नीति समाधान के बाद, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास, और डिप्टी गवर्नरों- माइकल देवव्रत पात्र, मयंक जैन, एम राजेश्वर राव, और टी रवि शंकर ने कई मुद्दों पर मीडिया से बातचीत की। इनमें जी-सैप कार्यक्रम वापस लेना, नकदी प्रबंधन, मुद्रास्फीति-वृद्घि परिदृश्य, बैंकों पर परिसंपत्ति गुणवत्ता दबाव आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। पेश हैं मुख्य अंश:
कोई अन्य जी-सैप नहीं लाने के पीछे वजह क्या थी?
दास: फिलहाल, जी-सैप जरूरत नहीं है, लेकिन भविष्य में जी-सैप विकल्प, ‘ऑपरेशन टि्वस्ट’ और ‘ओपन मार्केट ऑपरेशंस’ जैसे विकल्प बेहद जरूरी हैं। मौजूदा समय में, हमाी फिक्स्ड रिवर्स रीपो व्यवस्था के तहत कुल मात्रा 4-4.5 लाख करोड़ रुपये है और मेरा मानना है कि दिसंबर के पहले सप्ताह में भी फिक्स्ड-रेट रिवर्स रीपो के तहत यह मात्रा 2-3 लाख करोड़ रुपये के दायरे में रहेगी। इसलिए यह तरलता में बड़ी कमी नहीं है।
केंद्रीय बैंक के तौर पर, क्या आप नीतिगत बदलाव को ‘आश्चर्यजनक’ कहना चाहेंगे?
दास: इसे लेकर आश्चर्य नहीं था। यह अचानक किया गया बदलाव नहीं है। मैंने जिन 14 दिन की वैरिएबल रेट रिवर्स रीपो (वीआरआरआर) नीलामियों की रूपरेखा तैयार की थी, वह आज 4 लाख करोड़ रुपये की है, जिसके लिए सूचना कल जारी की गई थी और हरेक पखवाड़े इसमें 50,000 करोड़ रुपये तक का इजाफा हुआ है और दिसंबर के पहले सप्ताह में यह 6 लाख करोड़ रुपये पर होगी।
क्या बैंकों ने अपने पोर्टफोलियो में सभी दबाव का खुलासा किया है? क्या आप मानते हैं कि तापमान परिवर्तन जोखिमों पर नियामकीय रूपरेखा की जरूरत है?
जैन: जहां बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के पास मजबूत पूंजी और तरलता बफर्स हैं, वहीं हमने यह भी देखा है कि महामारी के बावजूद दबाव सामान्य रहा है। हम एमएसएमई और रिटेल उधारी पर नजर रख रहे हैं। वहीं आरबीआई बैंकों, लघु वित्त बैंकों, और एनबीएफसी के वरिष्ठ प्रबंधन के साथ विशेष बैठकें और बातचीत कर रहा है, जिससे कि इस तरह के दबाव का सही तरीके से आकलन किया जा सके।
राव: हमने तापमान जोखिम के मुद्दे की आंतरिक तौर पर पहचान की है और हम वित्तीय संस्थानों को पर्यावरण अनुकूल बनाए जाने पर जोर दे रहे हैं और साथ ही एनजीएफएस की मदद से स्थापित विभिन्न कामकाजी समूहों के साथ जुड़ रहे हैं। हमने आंतरिक तौर पर सतत वित्त समूह भी बनाया है, जिससे कि हम इस समस्या पर गंभीरता से विचार कर सकें।
क्या आप वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में भारतीय बॉन्डों को शामिल किए जाने के बारे में समय-सीमा बता सकते हैं?
दास: इस मुद्दे पर प्रमुख सूचकांक प्रदाताओं के साथ शुरुआती बातचीत चल रही है। आरबीआई और सरकार, दोनों इन प्रदाताओं के साथ लगातार बात कर रहे हैं। कई समस्याएं हैं, लेकिन उनका समाधान निकाला जा रहा है। उन्हें कुछ खास उम्मीदें हैं और इन समस्याओं के बारे में सरकार यूरोक्लियर अथॉरिटीज के साथ साथ सूचकांक प्रदाताओं के साथ चर्चा कर रही है।
पात्र: हम सक्रियता बढ़ा रहे हैं। 14-दिन की रिवर्स रीपो नीलामियों की पेशकश के साथ हम यह समझ पाएंगे कि बाजार हमसे क्या चाहता है और फिर हम बाजार के संकेत के आधार पर अतिरिक्त भंडार की कीमत तय कर पाएंगे।
लेकिन 14-दिन की वीआरआरआर वास्तविक तौर पर तरलता की खपत नहीं है, यह सिर्फ समायोजन है। क्या सिर्फ 28-दिवसीय वीआरआरआर समावेशी माध्यम है?
पात्र: यह कदम उसे पैसिव फिक्स्ड-रेट रिवर्स रीपो से दूर करने से संबंधित है, जिसमें आरबीआई का नीलामियों को लेकर कम नियंत्रण रहा है, जबकि हमारे उपायों की रफ्तार और समय निर्धारण के संदर्भ में केंद्रीय बैंक का ज्यादा नियंत्रण है। इसलिए पहला कार्य नीलामियों से जुड़ा होगा और उसके बाद भंडार पर बेहतर नियंत्रण बनाना होगा।
हम ठहराव की स्थिति में हैं, लेकिन एमपीसी का कहना है कि रिकवरी हो रही है, मुद्रास्फीति नीचे आ रही है। इसलिए, क्या कुछ विरोधाभास मौजूद हैं?
दास: नहीं, इस बारे में कोई विरोधाभास नहीं है। वृद्घि और मुद्रास्फीति से संबंधित घटनाक्रम गतिशील हैं। भविष्य में, किसी तरह का दबाव पैदा किए बगैर हमारा प्रयास 4 प्रतिशत मुद्रास्फीति लक्ष्य हासिल करना होगा। कुछ खास सेगमेंटों में वृद्घि की रफ्तार सुधरी है। हम धीरे धीरे बदलाव लाना चाहेंगे। हम एकदम दबाव पैदा करना नहीं चाहेंगे।
एसबीआई जैसे बैंकों ने अतिरिक्त तरलता और ऋण वृद्घि के अभाव की वजह से ऋण जोखिम के गलत निर्धारण की शिकायत की है। क्या यह स्थिति चिंताजनक है?
दास: मैं नहीं मानता कि एसबीआई ने इसे लेकर कोई आपत्ति जताई है। उसने इस मुद्दे को चिंजातनक माना है, जिस पर बैंकों को ध्यान देने की जरूरत है।
एटीएम में पैसा न होने पर जुर्माने की वजह से कुछ बैंकों ने एटीएम बंद किए हैं। इस समस्या का क्या समाधान है?
शंकर: एटीएम में खराबी पर जुर्माने के पीछे मकसद यह सुनिश्चित करना था कि एटीएम सुविधा उन इलाकों में उपलब्ध बनी रहे, जहां एटीएम पर ध्यान काफी कम ध्यान जाता है और इनमें खासकर ग्रामीण और अद्र्घ-शहरी इलाके शामिल होते हैं। इस संबंध में हमें विभिन्न सुझाव मिले हैं, जिनमें से कुछ सकारात्मक हैं और कुछ चिंता बढ़ाने वाले हैं। खास स्थानों के लिए खास समस्याएं हैं। हम सभी सुझावों पर ध्यान देने की कोशिश कर रहे हैं।