दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत में भी आभासी मुद्राओं (किप्टोकरेंसी) के प्रति युवा पीढ़ी का झुकाव तेजी से बढ़ रहा है। भारत में इन मुद्राओं के भविष्य पर अनिश्चितता की तलवार लटक रही है मगर युवाओं में इसकी जरा भी परवाह नहीं दिख रही है। दुनिया में क्रिप्टोकरेंसी का प्रसार ‘चौथी औद्योगिक क्रांति’ भी मानी जा रही है। दूसरी ओर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास लगातार कहते रहे हैं कि क्रिप्टोकरेंसी मुख्य धारा का हिस्सा बनती हैं तो इसके ‘गंभीर परिणाम’ हो सकते हैं। आरबीआई चीन की तरह ही इन मुद्राओं पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना चाहता है और इन्हें निवेश का जरिया तक मानने को तैयार नहीं है।
संसद की वेबसाइट पर क्रिप्टोकरेंसी एवं आधिकारिक मुद्रा डिजिटल मुद्रा नियमन विधेयक सूचीबद्ध जरूर किया गया था मगर शीतकालीन सत्र में इसे पेश नहीं किया गया। भारत में क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वाले सबसे अधिक लोग हो गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन मुद्राओं को लेकर अनिश्चितता बरकरार रहने के बावजूद भारत में इसकी लोकप्रियता कम होती नहीं दिख रही है।
विधि कंपनी शार्दूल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर एवं वित्त-तकनीक प्रमुख शिल्पा मानकर अहलूवालिया कहती हैं, ‘क्रिप्टोकरेंसी के संबंध में आरबीआई की चिंता वाजिब है। अगर आभासी मुद्राओं को सामानांतर मुद्रा के तौर पर मान्यता दी जाती है तो देश में भुगतान प्रणाली पर प्रतिकूल असर हो सकता है।’
दुनिया में क्रिप्टोकरेंसी बाजार पूंजीकरण नवंबर में 3 लाख करोड़ डॉलर से अधिक हो गया था। भारतीय निवेशकों ने बिटकॉइन, इथेरियम, लाइटकॉइन आदि आभासी मुद्राओं में 1,000 करोड़ डॉलर से अधिक निवेश किए हैं। इनमें खुदरा निवेशकों की संख्या अधिक रही है। पिछले एक वर्ष में इनमें कई आभासी मुद्राओं से 100 प्रतिशत से भी अधिक प्रतिफल मिला है।
आईटी उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था नैसकॉम का अनुमान है कि देश में क्रिप्टो परिसंपत्तियों में निवेश मौजूदा 6.6 अरब डॉलर से बढ़कर 2030 तक 15.6 अरब डॉलर हो जाएगा। ब्रोकरचूजर पोर्टल के अनुसार क्रिप्टोकरेंसी में 10 करोड़ भारतीयों ने निवेश किया है, जो दुनिया में सर्वाधिक संख्या है। भारत के बाद इस मामले में अमेरिका दूसरे और रूस तीसरे स्थान पर है।
आरबीआई की चिंता
किप्टोकरेंसी के प्रति आरबीआई के दृष्टिकोण को देखते हुए इस बात की उम्मीद कम है कि निजी क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन का माध्यम बनेंगी। मगर इतना तय है कि अगर सरकार इन मुद्राओं के प्रति कड़े कदम नहीं उठाती है तो भारत में इनमें निवेश करने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ेगी। क्रिप्टोकरेंसी पर नजर रखने वाले लोग विक्रेंद्रीकृत वित्त (डिसेंट्रलाइज्ड फाइनैंस) के प्रति बढ़ते झुकाव की ओर भी इशारा कर रहे हैं।
डिसेंट्रलाइज्ड फाइनैंस या ‘डेफी’ एक वैकल्पिक वित्तीय प्रणाली है जो मौजूदा स्थापित बैंकिंग प्रणाली को दरकिनार कर देती है। अगर ‘डेफी’ का वजूद बढ़ा तो आरबीआई का प्रभुत्व एवं नियंत्रण कमजोर हो सकता है, जिससे पूरे देश के वित्तीय तंत्र के लिए खतरा पैदा हो सकता है। आबीआई ने स्थिति भांपते हुए सभी बैंकों को क्रिप्टोकरेंसी कारोबार को बढ़ावा देने से सावधान किया है।विशेषज्ञ मानते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बजाय आरबीआई को बीच का रास्ता खोजना चाहिए। इस मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ‘आखिर केंद्रीय बैंक किसका नियमन करेगा? क्रिप्टोकरेंसी का मसकद वित्तीय व्यवस्था का विकेंद्रीकरण है। ये मुद्राएं दुनिया में कहीं भी तैयार की जा सकती हैं। छोटी से छोटी बात भी इन मुद्राओं की कीमतों में बड़ा उलटफेर कर सकती है।’ आरबीआई को यह डर भी है कि इन मुद्राओं का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराने में हो सकता है।भुगतान प्रणाली एवं सीबीडीसीहालांकि तमाम आशंकाओं के बावजूद आरबीआई ब्लॉकचेन के महत्त्व से इनकार नहीं करता। आरबीआई की डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) भी ब्लॉकचेन तकनीक पर तैयार हो रही है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 2023 तक 270.70 अरब डॉलर के नकद लेनदेन कार्ड या डिजिटल माध्यम से हो सकते हैं। वास्त में दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों को लगता है कि सीबीडीसी निजी क्रिप्टोकरेंसी की जगह ले लेगी। सीबीडीसी देश से बाहर भी लेनदेन का साधन हो सकती है और आरबीआई ने प्रयोग के तौर पर इसे आजमाना भी शुरू कर दिया है।
