प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एचडीएफसी बैंक के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी शशिधर जगदीशन के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया है। यह प्राथमिकी लीलावती कीर्तिलात मेहता मेडिकल ट्रस्ट ने दर्ज कराई है, जो मुंबई में लीलावती हॉस्पिटल चलाता है।
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और आर माधवन के पीठ ने यह कहते हुए हस्तक्षेप से इनकार कर दिया कि मामले की सुनवाई 14 जुलाई को बंबई उच्च न्यायालय में होने वाली है। पीठ ने कहा, ‘अगर आपकी बात नहीं सुनी जाती है तब यहां आएं। हम इस बात से सहानुभूति रखते हैं कि जून में रद्द करने की कार्यवाही शुरू की गई थी और एक के बाद एक बेंच ने खुद को इससे अलग कर लिया है। हम इसे समझते हैं। लेकिन अब यह सूचीबद्ध हो गया है।’जगदीशन तब उच्चतम न्यायालय पहुंचे थे, जब बंबई उच्च न्यायालय के 3 न्यायधीशों ने इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था। जगदीशन की ओर से वकालत कर रहे वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि एफआईआर के कारण बैंक की छवि प्रभावित हो रही है।
रोहतगी ने दलील दी, ‘पिछले तीन सप्ताह से (बंबई) उच्च न्यायालय में सुनवाई नहीं हुई है। मैं एमडी हूं। मेरा मामले से लेना-देना नहीं है। मुझे फंसाया जा रहा है, बैंक को नुकसान हो रहा है। मैं सुनवाई होने तक अंतरिम संरक्षण चाहता हूं। बैंक को निजी विवाद में घसीटा गया है। विचार यह है कि उन्हें पुलिस स्टेशन बुलाया जाए। इससे निजी प्रतिष्ठा प्रभावित हो रही है।’
लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट ने जगदीशन पर वित्तीय अनियमितता व अस्पताल प्रशासन को प्रभावित करने का आरोप लगाया है। बैंक और ट्रस्ट के बीच जून में तब विवाद बढ़ गया था, जब ट्रस्ट ने जगदीशन के खिलाफ 1,000 करोड़ रुपये की मानहानि का मामला दर्ज कराया था। शिकायत में कहा गया है कि चेतन मेहता ग्रुप ने ट्रस्ट पर नियंत्रण करने में सहायता करने के एवज में जगदीशन को 2.05 करोड़ रुपये दिए हैं। यह राशि कथित तौर पर अस्पताल के कामकाज को प्रभावित करने व कॉर्पोरेट स्थिति का दुरुपयोग करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा थी। ट्रस्ट ने दावा किया कि अस्पताल के कर्मचारियों को कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी पहल के तहत 1.5 करोड़ रुपये की पेशकश की गई थी।