अर्थशास्त्रियों और बॉन्ड बाजार के भागीदारों का अनुमान है कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) 8 अक्टूबर को अपने नरम रुख या रीपो दर में बदलाव नहीं करेगी। लेकिन उनकी नीति को सामान्य बनाने के संकेतों पर कड़ी नजर रहेगी, जिसकी शुरुआत अतिरिक्त तरलता को हटाने से होगी। मौद्रिक नीति से पहले बिज़नेस स्टैंडर्ड के सर्वेक्षण में 14 प्रमुख अर्थशास्त्रियों और बॉन्ड बाजार भागीदारों ने यथास्थिति रहने का अनुमान जताया मगर अन्य नीतिगत नतीजों पर उनके पूर्वानुमान में काफी अंतर है।
इस समय रीपो दर 4 फीसदी और रीवर्स रीपो दर 3.35 फीसदी है। ये दरें महामारी की वजह से रिकॉर्ड निचले स्तर पर बनी हुई हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि आरबीआई की अभी दरें बढ़ाने की कोई मंशा नहीं है। अन्य केंद्रीय बैंकों की दरें बढ़ाने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नवंबर से बॉन्ड खरीद घटाने की घोषणा के बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) दरें बढ़ाने में हड़बड़ी शायद नहीं करेगा।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई अगस्त में 5.3 फीसदी रही, जो आरबीआई के तय दायरे के भीतर है और इसमें आगामी महीनों में और गिरावट के आसार हैं। आंकड़ों के आधार पर चलने वाले आरबीआई ने आधिकारिक रूप से कहा है कि जब तक टिकाऊ वृद्धि के संकेत नहीं दिखते तब तक नीतिगत रुख में नरमी ही रखी जाएगी।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वे स्थितियां नहीं बदली हैं और वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की घोषणा और उससे बॉन्ड प्रतिफल में इजाफे के अलावा जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं बदला है। मांग लौट रही है, जिससे तेल की कीमतें चढ़ रही हैं मगर अभी महामारी खत्म नहीं हुई है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि नरम नीतियों को वापस लेने और दोबारा उन्हें लागू करने से केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता घटेगी। इस वजह से आरबीआई अक्टूबर की नीति में इंतजार करना चाहेगा।
बंधन बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सिद्धार्थ सान्याल ने कहा, ‘हम नीति में रीपो दर पर यथास्थिति की उम्मीद कर सकते हैं। अभी बहुत सी अनिश्चितताएं हैं, जिनके कारण कोई फैसला लेना मुश्किल है।’ सान्याल ने कहा, ‘यह सही है कि बहुत से केंद्रीय बैंक दरें बढ़ा रहे हैं, जिससे भारत और दुनिया भर में बॉन्ड प्रतिफल में इजाफा हो रहा है। लेकिन आरबीआई ने 2020 में दूसरे केंद्रीय बैंकों की तुलना में बहुत कम दर कटौती की थी। इसका मतलब है कि एमपीसी या आरबीआई पर दरों में जल्दबाजी का कोई अतिरिक्त दबाव नहीं होगा।’
इन सब के बीच आरबीआई की 7 दिन की परिवर्तनशील दर रीवर्स रीपो (वीआरआरआर) में कट-ऑफ 3.99 फीसदी या रीपो दर पर आ गई है। यह बॉन्ड बाजार को स्पष्ट संकेत है कि नीतिगत सामान्यीकरण शुरू हो गया है या जल्द शुरू हो जाएगा। आरबीआई बैंकों से ओवरनाइट अतिरिक्त नकदी अपनी रीवर्स रीपो दर 3.35 फीसदी पर स्वीकार करता है। 7 दिन का रीवर्स रीपो फंड आदर्श रूप में 3.35 फीसदी के आसपास होना चाहिए, न कि रीपो दर पर। बाजार ने इसे रीवर्स रीपो दर बढ़ाने में आरबीआई की रुचि माना है। यह तभी संभव है, जब आर्थिक तंत्र में तरलना तुलनात्मक रूप से कम हो। आरबीआई अभी तक जी-सैप के जरिये तंत्र में अपनी नकदी झोंक रहा था।
इसके जरिये आरबीआई ने 2.2 लाख करोड़ रुपये (पहली तिमाही में 1 लाख करोड़ रुपये और दूसरी तिमाही में 1.2 लाख करोड़ रुपये) के बॉन्ड द्वितीयक बाजार से खरीदे हैं, जिससे आर्थिक तंत्र में सीधे नकदी गई है।