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मौद्रिक नीति में यथास्थिति बरकरार रहने के आसार

Last Updated- December 14, 2022 | 11:02 PM IST

अर्थशास्त्रियों और बॉन्ड कारोबारियों ने 9 अक्टूबर को नीतिगत दरों में यथास्थिति बरकरार रहने की उम्मीद जताई है। उनका मानना है कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) पहले की गई कटौती के अंतिम लाभार्थियों तक हस्तांतरित होने के लिए फिलहाल इंतजार करेगी। इसके अलावा पैनल में नए सदस्यों के देरी से शामिल होने के कारण भी पुराने निर्णयों को बरकरार रखने का दबाव हो सकता है।
बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में शामिल सभी अर्थशास्त्रियों और बॉन्ड कारोबारियों ने उम्मीद जताई कि नीतिगत दरों में यथास्थिति फिलहाल जारी रहेगी।
सरकार ने देर सोमवार को भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद के प्रोफेसर जयंत वर्मा, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य आशिमा गोयल और नैशनल काउंसिल फॉर अप्लायड इकनॉमिक रिसर्च के वरिष्ठ सलाहकार शशांक भिडे को मौद्रिक नीति समिति में बाहरी सदस्य के तौर पर शामिल किए जाने की घोषणा की।
इन सदस्यों को नीति तैयार करने की प्रक्रिया में तत्काल शामिल होना होगा। साथ ही उन्हें बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को होने वाली मौद्रिक नीति की तीन दिवसीय बैठक में भी भाग लेना होगा। मौद्रिक नीति समिति की बैठक को मूरू रूप से 29, 30 सितंबर और 1 अक्टूबर को आयोजित होनी थी लेकिन नए सदस्यों की घोषणा न होने के कारण उसे टालना पड़ा। हालांकि नए सदस्य सभी डोमेल में विशेषज्ञ हैं लेकिन आरबीआई में उन्हें जनता के लिए जारी होने वाले आंकड़ों को देखेंगे। इसलिए अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वे पहली बैठक में ही अपनी बात नहीं रखना चाहेंगे और फिलहाल वे यथास्थिति को बरकरार रखने के पक्ष में होंगे। इस प्रकार अर्थशास्त्रियों ने उम्मीद जताई है कि पैनल फिलहाल आरबीआई के मौद्रिक नीति विभाग (एमपीडी) पर अधिक निर्भर करेगा।
भारतीय स्टेट बैंक समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्यकांति घोष ने कहा, ‘नए एमपीसी सदस्यों के शामिल होने से आरबीआई के किसी भी निर्णय पर प्रभाव पडऩे की संभावना नहीं है क्योंकि हमारा मानना है कि आरबीआई से निर्णायक इनपुट लेने के साथ समूह के तौर पर एमपीसी निर्णय लेने के लिए तकनीकी तौर पर कहीं अधिक सशक्त होगा। साथ ही 2016 में जब नए एमपीसी सदस्यों को शामिल किया गया था तो पहले की कुछ बैठकों में निर्णय हमेशा सर्वसम्मत से ही लिए गए थे। इससे पता चलता है कि अंतत: नियामक मायने रखता है।’ घोष को शेष वित्त वर्ष के दौरान दरों में किसी भी तरह की कटौती की उम्मीद नहीं है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री समीर नारंग ने कहा, ‘आरबीआई का मौद्रिक नीति विभाग (एमपीडी) नीति तैयार करने में एमपीसी की मदद करेगा। मौजूदा ढांचा और एमपीडी की मदद को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि नए सदस्यों के शामिल होने से कोई खास प्रभाव पड़ेगा।’ मुद्रास्फीति 4 फीसदी के आरकीआई के लक्ष्य से ऊपर है और अधिकत 6 फीसदी तक उसे बर्दाश्त किया जा सकता है। इसी प्रकार बॉन्ड बाजार के प्रतिभागियों की धारणा भी अच्छी दिख रही है।
आईसीआईसीआई बैंक के ग्रुप एग्जिक्यूटिव और वैश्विक बाजार के प्रमुख प्रसन्न बालचंद्र ने कहा, ‘मौद्रिक नीति समिति की बैठक में निर्णय काफी हद तक आरबीआई के गवर्नर की सोच से प्रेरित होंगे क्योंकि अन्य तीन सदस्य काफी नए हैं। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि नीतिगत दरें बरकरार रहेंगी लेकिन मुद्रास्फीति का कम करने और वृद्धि को रफ्तार देने पर ध्यान केंद्रित होगा।’
इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, ‘एमपीसी में जिन लोगों की नियुक्ति हुई है वे नियमित तौर पर अर्थव्यवस्था पर नजर रखेंगे। अंतत: वह निर्णय छह बुद्धिजीवियों का होगा। ऐसा नहीं लगता है कि सदस्यों की नियुक्ति से मौद्रिक नीति के नतीजे पर कोई खास प्रभाव पड़ेगा।’ रीपो दर फिलहाल 4 फीसदी है जबकि रिवर्स रीपो दर 3.35 फीसदी।
इंडसइंड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री गौरव कपूर ने कहा, ‘मुद्रास्फीति लक्ष्य से ऊपर है और ऐसे में एमपीसी का जोर दरों को यथावत बरकरार रखने पर होगा। दरों में काफी कटौती पहले ही की जा चुकी है और उसका लाभ अंतिम लाभार्थियों तक पहुंचना अभी बाकी है।’
ऐक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौगत भट्टाचार्य का भी मानना है कि नीतिगत दरों में यथास्थिति बरकरार रहेगी। इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने भी उम्मीद जताई कि आगामी आगामी बैठक में नीतिगत दरों में कटौती नहीं की जाएगी। कोटक महिंद्रा बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री उपासना भारद्वाज का मानना है कि पैनल में नए सदस्यों के शामिल होने के बावजूद नीतिगत दरों में फिलहाल ठहराव रहेगा।

First Published - October 6, 2020 | 11:02 PM IST

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