facebookmetapixel
Year Ender: SIP और खुदरा निवेशकों की ताकत से MF इंडस्ट्री ने 2025 में जोड़े रिकॉर्ड ₹14 लाख करोड़मुंबई में 14 साल में सबसे अधिक संपत्ति रजिस्ट्रेशन, 2025 में 1.5 लाख से ज्यादा यूनिट्स दर्जसर्वे का खुलासा: डर के कारण अमेरिका में 27% प्रवासी, ग्रीन कार्ड धारक भी यात्रा से दूरBank Holiday: 31 दिसंबर और 1 जनवरी को जानें कहां-कहां बंद रहेंगे बैंक; चेक करें हॉलिडे लिस्टStock Market Holiday New Year 2026: निवेशकों के लिए जरूरी खबर, क्या 1 जनवरी को NSE और BSE बंद रहेंगे? जानेंNew Year Eve: Swiggy, Zomato से आज नहीं कर सकेंगे ऑर्डर? 1.5 लाख डिलीवरी वर्कर्स हड़ताल परGold silver price today: साल के अंतिम दिन मुनाफावसूली से लुढ़के सोना चांदी, चेक करें ताजा भाव2026 के लिए पोर्टफोलियो में रखें ये 3 ‘धुरंधर’ शेयर, Choice Broking ने बनाया टॉप पिकWeather Update Today: उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड और घना कोहरा, जनजीवन अस्त-व्यस्त; मौसम विभाग ने जारी की चेतावनीShare Market Update: साल 2025 के आखिरी दिन बाजार में जोरदार तेजी, सेंसेक्स 700 अंक उछला; निफ्टी 26150 के पार

सेलिंग एजेंट अब तलाश रहे हैं नए रोजगार के अवसर

Last Updated- December 09, 2022 | 3:29 PM IST

इस साल की शुरुआत में मनोज सिंह मुंबई की कुछ बड़ी डायरेक्ट सेलिंग एजेंट (डीएसए) कंपनियों में से एक-ट्रांजेक्ट कंसोलिडेटेड इंडिया के मालिक हुआ करते थे।


लेकिन यह साल खत्म होते 37 वर्षीय मनोज सिंह के लिए हालात पहले की तरह नहीं रहे और अब वे रोजगार के अन्य विकल्पों की तलाश कर रहे हैं।

आज हालात ये हैं कि उनकी एजेंसी बंद हो चुकी है और सिंह अपनी ही एजेंसी द्वारा जारी किए गए कई चेकों से जुड़े धोखाधड़ी के मामलों के कानूनी पचड़े में पड़े हुए हैं।

सिंह कहते हैं कि जब तक बैंकों ने खुदरा ऋण की विकास दर में कमी नहीं की थी, तब तक उनकी कंपनी ट्रांजेक्ट ने एक अग्रणी विदेशी बैंक के लिए करीब 100 करोड़ रुपये जुटाए थे।

इस बाबत सिंह ने कहा कि जैसे ही ब्याज दरों में बढ़ोतरी की खबरें आने लगीं, वैसे ही बैंक कर्ज मुहैया करने में आनाकानी करने लगे जिससे हमें काफी नुकसान उठाना पड़ा।

इसके बाद हम धीरे-धीरे अपने कर्मचारियों को काम पर आने से मना करने लगे और अंत में हालात ये बन गए कि हमें अपने एजेंसी को ही बंद करना पड़ा। मंदी के शिकार लोगों में अकेले सिंह ही शामिल नहीं हैं। इस फेहरिस्त में कई नाम शुमार हैं।

पश्चिमी मुंबई के अंधेरी इलाकेमें पिछले दो वर्षों से एस एस इंटरप्राइजेज चला रहे समर शेलार ने कहा कि मंदी के कारण उन्हें अपने कर्मचारियों की छंटनी पर मजबूर होना पड़ा और अब उनकी टीम में मात्र 3 सदस्य हैं।

उन्होंने कहा कि मंदी के कारण कारोबार भी खासा प्रभावित हुआ है। पिछले तीन-चार सालों में जहां सालाना 12 से 15 करोड़ रुपये का कारोबार होता था, वह अब घटकर 3 करोड़ रुपये से भी कम रह गया है।

मंदी से खासे परेशान नजर आ रहे शेलार ने कहा कि  अगर मंदी की स्थिति इसी तरह जारी रही और इसमें सुधार की कोई गुंजाइश सामने नहीं आती है तो फिर काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

गौरतलब है कि मंदी और ऊंची ब्याज दरों से परेशान होकर पिछले कुछ महीनों से बैंकों ने कर्ज देने में कोताही बरतना शुरू कर दिया है। इसका परिणाम यह हुआ कि डीएसए, जो खुदरा ऋण का करीब 30 फीसदी कर्ज जुटाने में सक्षम थे, अब उन्हें भारी नुकसान उठाना पड रहा है।

साल-दर-साल के हिसाब से 26 अगस्त तक उपलब्ध आंकड़ों केअनुसार खुदरा ऋण, जिसमें आवास ऋण भी शामिल है, के्रडिट कार्ड पर बकाया और उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद के लिए मिलने वाले वित्तीय कर्ज में 17.4 फीसदी की बढोतरी हुई। पिछले साल 30 अगस्त तक की एक साल की अवधि में यह आंकडा 21.4 फीसदी के करीब था।

लेकिन 15 सितंबर के बाद लीमन ब्रदर्स केदिवालिया होने के बाद जब वैश्विक आर्थिक संकट गहराया तो उसके बाद से बैंक कर्ज देने में काफी सावधान हो गए और कह सकते हैं कि उन्होंने कंजूसी बरतना शुरू कर दिया।

कुछ बैंक, जैसे आईसीआईसीआई खुदरा कर्ज देने, खासकर असुरक्षित ऋण देने में और ज्यादा सतर्कता बरतने लगे जबकि डेवलपमेंट क्रेडिट बैंक जैसे कुछ छोटे बैंकों ने कुल मिलाकर ऋण देना ही बंद कर दिया।

अधिकांश विदेशी और निजी क्षेत्रों के बैंकों ने छोटे व्यक्तिगत ऋण और उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद के लिए वित्तीय कर्ज देना कम कर दिया है।

इस बाबत मुंबई के डीएसए ड्रीम फाइनैंस के मालिक कल्पेश गोयल ने कहा कि बैंकों के कर्ज देने में कटौती करने का सबसे ज्यादा असर सितंबर और अक्टूबर में देखने को मिला।

उन्होंने कहा कि इससे पहले हमारे कर्ज मंजूर होने की दर 50 फीसदी थी लेकिन उसके बाद तो बैंकों से डीएसए के 20 फीसदी ऋणों की मंजूरी भी नहीं हो पाती है।

इससे हमें मिलने वाले कमीशन में काफी कमी आई और समूची वित्तीय स्थिति पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। दिल्ली में समृध्दि फाइनैंशियल नाम से डीएसए चलानेवाली राधिका गुप्ता का कहना है कि बैंकों द्वारा कर्ज देने में उदासीनता बरतने का सबसे ज्यादा असर वेतनभोगी वर्ग पर पडा है।

गुप्ता ने कहा कि अब यह देखने में आ रहा है कि बैंक कर्ज के आवेदन को सरसरी तौर पर अस्वीकार कर दे रहे हैं। मंदी के इस समय में बैंक यहां तक कि जाने माने लोगों और कंपनियों तक  को ऋण देने में सतर्कता बरत रही है।

यही कारण है कि अब न तो मोबाइल पर कर्ज देने के संदेश आते हैं और न ही कोई फोन। आईसीआईसीआई बैंक के एक वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि अब उनका बैंक अपनी शाखाओं से ही ग्राहक की जरूरत के अनुसार कर्ज देता है।

First Published - December 29, 2008 | 9:00 PM IST

संबंधित पोस्ट