विदेशी एक्सचेंज के हस्तक्षेप और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा उठाए गए नकदी संबंधित कदमों से बैंकिंग व्यवस्था में संकट को दूर किया है। बॉन्ड बाजार पिछले कुछ समय से इसे आसानी से ले रहा है। 12 लाख करोड़ रुपये के उधारी कार्यक्रम के बावजूद, प्रमुख कंपनियां रीपो दर से कम पर अल्पावधि रकम उधार लेने में सक्षम रही थीं।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने भी बुधवार को अपनी रिपोर्ट में लिखा कि किस तरह से कुछ बैंक बॉन्ड बाजार दरों से नीचे 10-15 वर्ष के मियादी ऋण दे रहे हैं। उसी दिन ट्रेजरी बिलों की नीलामी भी रिकॉर्ड निचली दरों पर हुई थी। 91-दिन के टे्रजरी बिल महज 2.92 प्रतिशत ब्याज दर, 182 दिन के बिल 3.26 प्रतिशत और 364 के बिल 3.39 प्रतिशत की दर पर बेचे गए थे। वेटेड एवरेज ओवरनाइट कॉल दर अब 3.34 प्रतिशत पर है, जो गुरुवार को दिन के कारोबार में गिरकर 2 प्रतिशत से भी नीचे आ गई। केंद्रीय बैंक का लक्ष्य कॉल दरों को 4 प्रतिशत की रीपो दर के आसपास बनाए रखना है।
दरों में कमी का मुख्य कारण यह है कि म्युचुअल फंड अपनी अतिरिक्त नकदी अल्पावधि योजनाओं में निवेश कर रहे हैं।
आईसीआईसीआई बैंक के समूह कार्यकारी और वैश्विक बाजार मामलों के प्रमुख बी प्रसन्ना ने कहा, ‘अल्पावधि योजनाएं ऐसे समय में अच्छा प्रदर्शन करती हैं जब बाजार दरें ऊंची बनी रहती हैं और केंद्रीय बैंक द्वारा नीतिगत दरों का अपेक्षित विकास किया जाता है। जब मनी मार्केट दरें पॉलिसी रेट कॉरिडोर से काफी नीचे या ऊपर पहुंचने लगती हैं तो तकनीकी तौर पर पॉलिसी रेट कॉरिडोर अपनी चमक खोना शुरू कर देता है।’
प्रसन्ना के अनुसार, इसके अलावा, भारत में वृहद परिदृश्य धीरे धीरे बदल रहा है और तेजी के साथ वृद्घि और मुद्रास्फीति आश्चर्यचकित कर रहे हैं, ऐसे में आरबीआई ऐसी नकारात्मक वास्तविक दरों के साथ सहज स्थिति महसूस नहीं कर सकता है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि एक वर्षीय बॉन्ड की दरें ओवरनाइट रीपो दर से कम रहने का मतलब है कि व्यवस्था में मौजूदा जरूरत के मुकाबले ज्यादा नकदी की जरूरत है। इसके अलावा, इतनी कमजोर दरें व्यवस्था में स्थायित्व के नजरिये से भी अच्छी नहीं हैं।
इंडसइंड बैंक में मुख्य अर्थशास्त्री गौरव कपूर ने कहा, ‘इस तरह की दरें ऋण जोखिम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। जब दरें नीचे होती हैं तो सभी तरह के लेवरेज बिल्ड अप दिखते हैं और दरें ऊपर जाने पर समस्या बढ़ सकती है।’
कोविड संकट की प्रतिक्रिया में, आरबीआई ने 27 मार्च को नकदी आरक्षित अनुपात (सीआरआर) 100 आधार अंक तक घटाकर 3 प्रतिशत कर दी थी, और बैंकों से कहा था कि वे दैनिक सीआरआर को अपनी जरूरत के 80 प्रतिशत पर बनाए रख सकते हैं, जो पहले 90 प्रतिशत थी। यह एकबारगी राहत जून के लिए थी। सीआरआर कटौती से बैंकिंग व्यवस्था में करीब 1.4 लाख करोड़ रुपये लाने में मदद मिली।
