भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरें अपरिवर्तित रखी है जबकि कुछ विशेषज्ञ अनुमान जता रहे थे कि बढ़ती महंगाई पर लगाम कसने के लिए केंद्रीय बैंक दरों में फेरबदल कर सकता है।
बाजार के प्रतिभागियों ने कहा कि मौजूदा नीतिगत रुख अल्पावधि वाली डेट म्युचुअल फंड योजनाओं के लिए मुफीद है। उनका कहना है कि आने वाले समय में ब्याज दरों में होने वाली बढ़ोतरी लंबी अवधि वाली योजनाओं पर ज्यादा नकारात्मक असर डाल सकती है।
ट्रस्ट म्युचुअल फंड के सीईओ संदीप बागला ने कहा, आरबीआई के कदम उम्मीद से ज्यादा शांतिपूर्ण है। केंद्रीय बैंक का ध्यान स्पष्ट तौर पर वृद्धि को सहारा देने पर है। महंगाई को लेकर खौफ बढ़ा है, ब्याज दर नीति में वैश्विक बदलाव और जिंसों की उच्च कीमतों को दरकिनार किया गया है। अल्पावधि के बॉन्ड फंडों के लिए नीति अच्छी है और तीन साल से कम अवधि में परिपक्व होने वाली म्युचुअल फंड योजनाओं के लिए यह ठीक नहीं है। महंगाई के बढ़ते दबाव से 5 से 10 स ाल में परिपक्व होने वाले फंडों का प्रदर्शन कमजोर रह सकता है।
क्वांटम म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर (फिक्स्ड इनकम) पंकज पाठक ने कहा, चूंकि आरबीआई अगले महीने बैंंकिंग सिस्टम से अतिरिक्त नकदी खींचेगा, ऐसे में हमें लगता है कि ओवरनाइट दरें मौजूदा 3.35 फीसदी के स्तर (रिवर्स रीपो रेट) से रीपो रेट 4 फीसदी की ओर बढ़ेगा। इसका मतलब यह होगा कि अल्पावधि की कम जोखिम वाली योजनाएं मसलन ओवरनाइट व लिक्विड फंडों का रिटर्न आगामी महीनों में बढ़ सकता है।
मोटे तौर पर तय आय वाली प्रतिभूतियों की कीमतें मौजूदा ब्याज दरोंं से तय होती है। ब्याज दरें और कीमतों का अनुपात विपरीत होता है। जब ब्याज दरें घटती हैं तो फिक्स्ड इनकम वाली प्रतिभूतियों की कीमतें बढ़ती हैं। इसी तरह जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो फिक्स्ड इनकम वाली प्रतिभूतियों की कीमतें घटती हैं।
विशेषज्ञों ने कहा, लंबी अवधि वाली ऋण प्रतिभूतियां ब्याज दरोंं में बढ़ोतरी के दौरान उतारचढ़ाव के प्रति संवेदनशील होती हैं। ऐसे समय में निवेशक लिक्विड फंडों, अल्ट्रा ड््यूरेशन फंडों और अल्पावधि से लेकर मध्यम अवधि वाले बॉन्ड फंडों पर नजर डाल सकते हैं।
ऐक्सिस एमएफ के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) आर शिवकुमार ने कहा, आरबीआई की टिप्पणी से संकेत मिलता है कि वह सुनिश्चित करना चाहता है कि वृद्धि के लिए मौद्रिक नीति सहायक हो और दरों को सामान्य बनाने के लिए ऐसा कदम नहीं उठाया जाए कि रिकवरी पटरी से उतर जाए, इसके लिए वह देखो व इंतजार करो की रणनीति अपना रहा है। आश्चर्यजनक तौर पर आरबीआई महंगाई को लेकर सहज बना हुआ है जबकि विकसित दुनिया के मुकाबले आयाचित महंगाई का जोखिम ज्यादा है।
