भारतीय रिवर्ज बैंक (आरबीआई) ने गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) की मियाद को बढ़ाने के सुझाव को नामंजूर कर दिया।
रिजर्व बैंक ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस कदम से बैंकों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है।
नकदी की किल्लत, घरेलू और विदेशी बाजारों में मांग में आई कमी से परेशान उद्योग जगत ने बैंक के सामने यह प्रस्ताव रखा था। फिलहाल, अगर 90 दिनों तक कर्ज की किस्त न अदा की जाए तो बैंक उसको फंसा हुआ कर्ज मानकर गैर निष्पादित संपत्तियों की सूची में डाल सकते हैं।
छोटी और मझोली कंपनियों ने इस 90 दिन की अवधि को बढ़ाकर 180 दिन करने की बात की थी लेकिन उनके सुझाव पर रिजर्व बैंक ने मुहर लगाने से मना कर दिया। इस मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आरबीआई को लगता है कि बैंकों की बैलेंस शीट से ही वित्तीय क्षेत्र की हालत का सही जायजा मिल पाएगा।
और फिलहाल केंद्रीय बैंक अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का ख्याल करते हुए इस मामले में कोई ढील देने नहीं जा रहा। आरबीआई का इस मामले पर कहना है, ‘मौजूदा दौर में एसएमई के लिए एनपीए के प्रावधान में बदलाव करना सही कदम नहीं होगा।’
इसके अलावा बैंक ने एसएमई द्वारा लिए गए हर तरह के कर्ज की अदायगी में एक साल की छूट देने संबंधी प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है। रिजर्व बैंक का कहना है कि वह पहले ही अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए अतिरिक्त नकदी बाजार में डाल चुका है।
आरबीआई का कहना है कि नियमों में ढील देने से बैंक मुश्किल में पड़ सकते हैं और हमें इस स्थिति से बचना होगा। जहां तक एनपीए की बात है तो आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक सकल अग्रिम में सकल एनपीए की हिस्सेदारी 2005 में जहां 5.2 फीसदी थी वहीं 2008 में यह घटकर 2.3 फीसदी रह गई है।
सूत्रों का कहना है कि आरबीआई पहले ही बैंकों को कर्ज देने की संरचना को दोबारा तैयार करने की मंजूरी दे चुका है। जिन कर्जों में बैंकों को जोखिम नहीं है और उनकी शर्तों में दो बार बदलाव हो चुका है, उनकी श्रेणी बनाने को कहा गया है।
पिछले वित्त वर्ष के दौरान 2001-2002 के बाद भारतीय बैंकों के सकल एनपीए में पहली बार इजाफा हुआ है। पिछले तीन वर्षों में बैंकों ने दिल खोलकर कर्ज दिए हैं और इसको भी कुछ गड़बड़ी की वजह माना जा रहा है। इसके अलावा ऊंची ब्याज दरों की वजह से भी कुछ कर्ज फंस गए हैं।
मार्च 2008 तक वाणिज्यिक बैंकों ने 85,187 करोड़ रुपये का कर्ज दिया जिसमें से 13,849 करोड़ रुपये का कर्ज बीमार एसएमई इकाइयों को दिया गया।