सरकार का व्यय सुस्त रहने, त्योहार के मौसम में नकदी की बढ़ी मांग, कर वसूली बढ़ने और मुद्रा बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से कुल मिलाकर बैंकिंग व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी करीब खत्म हो गई है। पिछले 5 दिन में रिजर्व बैंक ने रोजाना बैंकिंग व्यवस्था में औसतन 72,000 करोड़ रुपये डाले हैं। वहीं 25 अक्टूबर को 98,372.89 करोड़ रुपये डाले गए हैं, जो 1 लाख करोड़ रुपये से कुछ कम है। जब रिजर्व बैंक बैंकिंग व्यवस्था में नकदी डालता है तो इससे पता चलता है कि व्यवस्था में नकदी की स्थिति तंग है।
रिजर्व बैंक द्वारा 25 अक्टूबर को डाली गई नकदी 24 अप्रैल, 2019 के बाद सर्वाधिक है, जब केंद्रीय बैंक ने 1.45 लाख करोड़ रुपये डाले थे। पिछले कुछ दिनों से जीएसटी भुगतान में बहुत ज्यादा धन बैंकिंग व्यवस्था से निकला है। डीलरों ने बैंकों से निकासी 1.5 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है।
आईएफए ग्लोबल के सीईओ अभिषेक गोयनका ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘बैंकिंग व्यवस्था में नकदी करीब तटस्थ स्थिति में है क्योंकि त्योहारी सीजन से संबंधित नकदी की मांग रही है और सरकार का कैश बैलेंस अभी भी बढ़ा हुआ है।’
अप्रैल में बैंकिंग व्यवस्था में तरलता अधिशेष करीब 7 लाख करोड़ रुपये था। गोयनका ने कहा, ‘एक लाख करोड़ रुपये की 14 दिन की वीआरआरआर (वैरिएबल रेट रिवर्स रीपो) नीलामी में तेजी नगण्य रही।’
रिजर्व बैंक की 21 अक्टूबर को पिछले 14 दिन की वीआरआरआर नीलामी सिर्फ 5,648 करोड़ रुपये की बोली मिली, जबकि अधिसूचित राशि 1 लाख करोड़ रुपये थी। रिजर्व बैंक को कम मात्रा में मिली बोली से संकेत मिलते हैं कि बैंक अपना धन ऐसे समय में रिजर्व बैंक में जमा करने को लेकर अनिच्छुक हैं, जब अतिरिक्त नकदी में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है। रिवर्स रीपो की प्रक्रिया में बैंक अपनी अतिरिक्त नकदी रिजर्व बैंक के पास जमा करते हैं।
नकदी की कमी का असर नजर आ रहा है और मुद्रा बाजार की दरें बढ़ रही हैं। भारित औसत इंटरबैंक काल मनी रेट, जो रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य रहा है, अक्टूबर के 18 कार्यदिवस में से 12 कार्यदिवस में 6 प्रतिशत से ऊपर रहा है। यह चल रहे 5.90 प्रतिशत रिवर्स रीपो से ज्यादा है।
रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति ढांचे के मुताबिक मौद्रिक नीति के परिचालन ढांचे का लक्ष्य भारित औसत काल रेट (डब्ल्यूएसीआर) को अति सक्रिय नकदी प्रबंधन के माध्मय रीपो रेट के मुताबिक रखना है।
इस महीने डब्ल्यूएसीआर न सिर्फ रीपो रेट के ऊपर रहा है, यह 6 बार मार्जिनल स्टैंडिंग फैसेलिटी (एमएसएफ) के बराबर या ऊपर गया है। एमएसएफ इस समय 6.15 प्रतिशत है, जो रिजर्व बैंक के ब्याज दर गलियारे के ऊपरी ढांचे पर है। जब बैंक एमएसएफ मार्ग से धन जुटाते हैं, तो वे प्राप्त धन पर वे सबसे ज्यादा ब्याज देते हैं।
गोयनका ने कहा, ‘बैंकिंग व्यवस्था में अधिशेष और घाटे के खांचे होते हैं। ओवरनाइट काल रेट लगातार एमएसएफ (मार्जिनल स्टैंडिंग फैसेलिटी) दर से ऊपर है। खरीद-बिक्री स्वैप के माध्यम से रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा में हस्तक्षेप कर रहा है। ऐसा करके वह बैंकिंग व्यवस्था से नकदी खींचने से प्रभावी तरीके से बच रहा है।’
मुद्रा बाजार की दरें ज्यादा होने से बैंकों व अन्य कॉर्पोरेट इकाइयों की कम अवधि की उधारी की लागत में तेज बढ़ोतरी होती है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों से पता चलता है कि 30 सितंबर से 27 अक्टूबर तक 3 महीने के पीएसयू सर्टिफिकेट पर जमा की दरों में 60 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है, जबकि 3 महीने के कमर्शियल पेपर्स में 45-57 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है।
मौजूदा स्थिति में नकदी की तंग स्थिति को रिजर्व बैंक के मकसद से जोड़ा जा सकता है, क्योंकि भारत का केंद्रीय बैंक बढ़ी महंगाई को कम करना चाहता है। विश्लेषकों ने कहा कि बैंकिंग नियामक एक महीने से ज्यादा समय से बैंकों को धन की उधारी के लिए रीपो विंडो की पेशकश नहीं कर रहा है, भले ही नकदी की स्थिति सख्त हो गई है।
विश्लेषकों ने कहा कि उच्च बाजार दरें ऐसे समय में आई हैं, जब अमेरिका आक्रामक रूप से दर में बढ़ोतरी कर रहा है और रुपये को बहुत ज्यादा उतार चढ़ाव से बचाना पड़ रहा है।अतिरिक्त नकदी तेजी से घट रही है और ऐसे में बैंकों को जमा आकर्षित करने का दबाव झेलना पड़ रहा है, जिससे कर्ज की बढ़ी मांग पूरी की जा सके।
पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 7 अक्टूबर को बैंकों के कर्ज में वृद्धि की दर 17.9 प्रतिशत थी, जबकि जमा दर में वृद्धि इससे बहुत पीछे, 9.6 प्रतिशत पर थी। रेटिंग फर्म केयरएज ने लिखा है, ‘वित्तपोषण में अंतर की बड़े हिस्से की भरपाई जमा प्रमाणपत्रों से होगी।