चौथी तिमाही के नतीजों पर दबाव बढ़ने से इस हफ्ते बैंकों के शेयरों में और गिरावट आ सकती है। यह मानना है जानकारों का। जबकि आईटी सेक्टर के शेयर कोई वजह नहीं मिल पाने से ही सही दिशा में चल रहे हैं।
पिछले एक महीने में कई सरकारी बैंकों ने अपना पीएलआर यानी प्राइम लेंडिंग रेट घटा दिया है। जाहिर है इससे बैंकों के लाभ पर दबाव बढ़ेगा। कोटक सेक्योरिटीज के एनेलिस्ट सदय सिन्हा के मुताबिक बैंक अपनी जमा और कर्ज की दरों में बदलाव कर रहे हैं।
इससे थोड़े समय के लिए बैंकों के मार्जिन पर दबाव पड़ेगा। लेकिन आगे जाकर बैंक अपने इन महंगे डिपॉजिट को रिन्यू नहीं करेंगे। इससे मार्जिन का दबाव कम हो सकता है।
सीएलएसए की एक रिपोर्ट के मुताबिक मियादी जमा की मौजूदा दरें इस समय बचत और चालू खातों के ब्याज से 0.5 से 0.6 फीसदी तक ज्यादा हैं और मियादी जमा की ज्यादा दरों से सरकारी बैंकों पर काफी दबाव पड़ रहा है।
एक अन्य बैंकिंग एनेलिस्ट के मुताबिक बैंकों के लिए परेशानी का दौर अभी थोड़ा और बाकी है। गनीमत यही है कि यह दबाव एक सीमा तक ही है और जैसा कि वित्त मंत्री ने बैंकों को सुझाया है, उन्हें अपनी होम लोन की दरों में अभी और कटौती करनी होगी, कम से कम 20 लाख तक के कर्ज पर।
वित्त मंत्री ने पहले भी कहा था कि वो कर्ज की दरों में कटौती चाहते हैं और तब बैंकों ने फरवरी में दरों में कटौती की थी। सिन्हा के मुताबिक अगर बैंकों की जमा और कर्ज की दरों को नियंत्रित किया जाएगा तो निवेशकों में भी इसका गलत संदेश जाता है।
शायद यही वजह रही कि पिछले हफ्ते सभी बैंकों के शेयरों में भारी गिरावट आई और वे 20-20 फीसदी तक गिर गए।
बैंकों और उसके निवेशकों की चिंताएं तब और बढ़ गईं जब प्रस्तावित बजट में किए गए 60,000 करोड़ के किसानों की कर्ज माफी के ऐलान पर सरकार की ओर से अभी तक कोई ढंग की सफाई सामने नहीं आई है।
वित्त मंत्री ने अपने ऐलान में छोटे और सीमांत किसानों के कर्ज माफ करने और बाकी किसानों के कर्ज में 25 फीसदी तक की छूट का ऐलान किया था। 31 दिसंबर 2007 को ओवरडयू और 29 फरवरी 2008 तक जिन की अदायगी नहीं हुई है ऐसे सभी छोटे किसानों के कर्ज इस स्कीम में आते हैं।
सीएलएसए की रिपोर्ट के मुताबिक कुल कृषि कर्ज का 58 फीसदी हिस्सा अधिसूचित व्यावसायिक बैंक ही बांटते हैं जबकि कुल कृषि कर्ज के एनपीए यानी डूबने वाले कर्ज की बात करें तो इस तरह के कर्ज में इन अधिसूचित व्यावसायिक बैंक की की हिस्सेदारी केवल 17 फीसदी है।
सहकारी बैंकों की कृषि कर्ज में हिस्सेदारी 33 फीसदी की है जबकि कृषि कर्ज में उनका एनपीए 76 फीसदी है।
सीएलएसए के आंकड़ों के मुताबिक सरकार के इस ऐलान के बाद अधिसूचित व्यावसायिक बैंक अपने 10,000 करोड़ के ऐसे कर्ज माफ करेंगे यानी राइट ऑफ करेंगे और बाकी के कृषि कर्ज सहकारी और ग्रामीण बैंकों को माफ करने होंगे।