भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर वी लीलाधर ने आज कहा कि यह समय एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी) द्वारा सार्वजनिक जमा स्वीकार करने की नीति की समीक्षा करने का है।
यह मानते हुए कि वित्तीय कंपनियों द्वारा स्वीकार किया जाने वाला जमा महत्वपूर्ण नहीं है और उनमें कोई तंत्र संबंधी जोखिम नहीं है, लीलाधर ने कहा, ‘समय आ गया है जब केवल बैंकों को लोगों से जमा स्वीकार करने की अनुमति देने के बारे में सोचा जाए। इसे एक नए सिरे से देखने की जरुरत है।’
आरबीआई के वर्तमान नियमों के अनुसार बैंक और एनबीएफसी दोनों को लोगों से जमा स्वीकार करने की अनुमति है। वर्तमान में उन एनबीएफसी की संख्या 380 है जिन्हें लोगों से जमा स्वीकार करने का प्रमाणपत्र दिया गया है।
समेकन के संदर्भ में लीलाधर ने कहा कि बैंकिंग सेक्टर में होने वाले सभी विलय कारोबार को ध्यान में रखते हुए होने चाहिए। सार्वजनिक बैंकों के क्षेत्र में विलय एवं अधिग्रहण नहीं होने के बारे में पूछे जाने पर लीलाधर ने कहा कि इसके लिए फ्रेमवर्क तैयार किया जा चुका है और कोई भी निर्णय बोर्ड द्वारा लिया जाएगा।
डेरिवेटिव सौदों में व्यवस्थागत जोखिम नहीं
भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर वी लीलाधर ने आज कहा कि डेरिवेटिव सौदों, जिनमें से कुछ कानूनी विवादों में फंसे हुए हैं, में कोई व्यवस्थागत जोखिम नहीं है।डेरिवेटिव में बैंकों के निवेश संबंधित विस्तृत जानकारी न देते हुए उन्होंने बताया कि विवाद की कोई वजह ही नहीं रह जाती है अगर आरबीआई के नियमों का अक्षरश: पालन किया जाए।
वी लीलाधर इंडियन मर्चेंट्स चैम्बर और आईसीएआई द्वारा आयोजित इंटरनेशनल बैंकिंग ऐंड फाइनैंस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे। उल्लेखनीय है कि कुछ सप्ताह पहले आरबीआई के गवर्नर वाई वी रेड्डी ने भी ऐसा ही बयान दिया था।मध्यम आकार की कई कंपनियां डेरिवेटिव उपकरणों का बैंकों द्वारा गलत तरीके से बेचे जाने को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटा चुकी है।