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चुनींदा नए ग्राहक ही ले रहा है आईसीआईसीआई बैंक

Last Updated- December 08, 2022 | 12:01 AM IST

आईसीआईसीआई बैंक के कार्यकारी निदेशक वी. वैद्यनाथन  रिटेल, एसएमई और ग्रामीण बैंकिंग के प्रमुख हैं। उनका मानना है कि नियामक जरूरतों के चलते भारत का वित्त क्षेत्र अच्छी स्थिति में है।


यहां तक कि जोखिम मुक्त निवेश के लिए भी। उन्होंने कहा कि बैंक अपनी क्रेडिट बुक को लेकर धीमा रहना चाहता है और इसके साथ ही वह कम लागत वाली जमाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है। यह एक रणनीति है जो बैंकों के लिए अच्छी साबित हो रही है। उन्होंने ये बातें अनिरुध्द लस्कर को एक इंटरव्यू में बताईं।

वर्तमान ग्लोबल स्थिति को आप किस तरह से लेते हैं?

ग्लोबल मार्केट के लिए मसला तरलता का है न कि वैल्यू का। इससे बड़ा मसला विश्वास को बरकरार रखने का है क्योंकि कोई नहीं जानता की मौजूदा स्थिति कब तक जारी रहेगी। इससे निपटने के लिए वैश्विक नियामकों की प्रतिक्रिया काफी उत्साहवर्धक साबित हुई हैं।

विश्लेषक कहते हैं कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम दुनिया के दूसरे बैंकिंग सिस्टम से बेहतर है। क्या यह एक खुशफहमी भर है?

देखिए, भारतीय वित्त क्षेत्र की सेहत काफी अच्छी है। इस क्षेत्र की  34 फीसदी जमा सरकारी प्रतिभूति और रिजर्व बैंक में नकदी के रूप में है। मैं नहीं सोचता कि दुनिया में ऐसा कोई दूसरा देश है जहां पर जोखिम मुक्त निवेश के लिए नियामक जरूरतें इतनी अधिक है।

आज खुद अमेरिका और यूरोप भी यह सोचने को विवश हुए हैं। अगर लीवरेज अनुपात की बात करें तो भारतीय कंपनियां 10 गुना अधिक लीवरेज्ड हैं। इनकी तुलना में अधिकांश समय 14 गुना अधिक लीवरेज वाले यूरोप और अमेरिका से करें। अगर जीडीपी की तुलना में उपभोक्ता लोन की बात करें तो भारत में यह 10 फीसदी ही है, जबकि अमेरिका में 100 फीसदी। इनकी तुलना आपस में कैसे हो सकती है।

होम लोन और क्रेडिट कार्ड के मामले में भारतीय बैंक काफी आक्रमक रहे हैं। भारत के सब प्राइम मार्केट के बारे में आपके क्या विचार हैं?

यह सच नहीं है। भारत में कोई सब प्राइम क्रेडिट मार्केट नहीं है। हां बैंक लोन की वकालत जरूर करती हैं, लेकिन इसके आवंटन से पहले सभी आवश्यकताओं को पूरा कर लिया जाता है। अगर अविवेकपूर्ण ढंग से उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी हासिल करना है तो आप अमेरिका जाइए।

वहां आपको हर चैनल में डेट से संबंधित विज्ञापन मिलेंगे। लेकिन क्या आपको यहां इस तरह का एक भी विज्ञापन देखने को मिला है जो यह कहता हो कि अगर आपका लोन निरस्त हो गया तो मेरे पास आओ ?   इसका मतलब साफ है कि एक भी भारतीय बैंक नो इंकम नो जॉब असेट लोन नहीं दिया।  भारत में लोन देने से पहले ग्राहक का बैंक स्टैटमेंट देखकर बैंकें यह अनुमान लगाती हैं कि वह कितना पैसा दे सकता है। इसी के बाद उसे लोन दिया जाता है।

उपभोक्ता इससे कैसे प्रभावित होगा ?

आज का उपभोक्ता पहले से अधिक सतर्क है। वह अपने लेवरेज को कम करना चाहता है। दूसरा बड़ा परिवर्तन यह हुआ है कि ये ग्राहक साक्षरता को लेकर अधिक संवेदनशील हैं। एक साल पहले हमने विज्ञापन के जरिए इसकी शुरुआत की थी।

तीन माह तक इसे जारी रखने के बाद हमें इसके ज्यादा उत्साहवर्धक परिणाम नहीं मिले। इसके बाद छह माह पहले हमने इसे नए फार्मेट में फिर से प्रारंभ किया है। इसके भी परिणाम अच्छे रहे हैं।

दूसरी बैंकेंअसेट बुक 30 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं ?

वे वही कर रहे हैं जो उन्हें लगता है कि सही है। हमारा मानना है कम लागत वाले डिपाजिट बढ़ाने के साथ क्रेडिट को कम करना चाहिए। हमें इसके अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। हमारा सीएसीएस 15 माह में तेजी से बढ़कर 22 फीसदी से 28 फीसदी हो गया है। सेविंग बैलेंस की बात करें तो यह साल दर साल के लिहाज से 33 फीसदी बढ़ा है। हम अपनी वृध्दि को शाखा की वृध्दि, ग्राहक संख्या और लाइबालिटिज की वृध्दि मानते हैं।

First Published - October 14, 2008 | 10:33 PM IST

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