भारतीय रिजर्व बैंक सुनील गुरबख्शानी को धनलक्ष्मी बैंक में पद पर फिर से बहाल कर सकता है और बैंकिंग नियमन अधिनियम के तहत मिले अधिकारों की श्रेष्ठता को रेखांकित कर सकता है। बताया जाता है कि बैकिंग नियामक बैंंक के कुछ बड़े खातों पर नजर डाल सकता है कि क्या वहां उधारी के फैसले पर अनुचित प्रभाव डाला गया था।
एक सूत्र ने कहा, शेयरधारकों की तरफ से गुरबख्शानी को हटाना एक टेस्ट केस की तरह है। इस तरह से बैंंक के प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्याधिकारी को हटाने का कोई दृष्टांत नहीं है। बैंकिंग नियमन अधिनियम के तहत सिर्फ आरबीआई के पास उनकी नियुक्ति और पद से हटाने का फैसला लेने का अधिकार है और यह अधिनियम कंपनी अधिनियम से ऊपर होगा। बैंंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 10 बीबी के तहत केंद्रीय बैंक को किसी बैंंकिंग कंपनी के निदेशक मंडल का चेयरमैन या प्रबंध निदेशक पूर्णकालिक आधार पर नियुक्त करने का अधिकार है। केंद्रीय बैंक की तरफ से गुरबख्शानी का इस्तीफा औपचारिक रूप से अब तक स्वीकार नहीं करने की यह तकनीकी वजह हो सकती है।
पिछले महीने बैंक के 90.49 फीसदी शेयरधारकों ने गुरबख्शानी की प्रबंध निदेशक व सीईओ पर नियुक्ति के खिलाफ मतदान किया था जबकि उन्हें निदेशक मंडल व बैंंकिंग नियामक का समर्थन मिला हुआ था। उन्होंने इस साल 27 फरवरी को पद संभाला था, जो तीन साल के लिए था और शेयरधारकों की तरफ से हटाए जाने के बाद किसी बैंंक के एमडी व सीईओ का कार्यकाल देश के बैंंकिंग के इतिहास में सबसे छोटा हो गया।
शेयरधारकों ने लक्ष्मी विलास बैंक के अंतरिम एमडी व सीईओ एस सुंदर के खिलाफ भी मतदान किया था, जो प्रमुख निवेशकों के बीच विचारों के मतभेद को लेकर था। सूत्रों ने कहा कि इसके अलावा केंद्रीय बैंक यह सुनिश्चित करना चाहेगा कि मनमौजी शेयरधारकों और बड़े निवेशकों के बीच संघर्ष बैंकों में अस्थिरता पैदा न कर सके, खास तौर से जब इनमें से कुछ बैंक काफी कमजोर हैं।
धनलक्ष्मी बैंक के तीन बड़े निवेशक हैं बी रवींद्र पिल्लई (10 फीसदी), गोपीनाथन सी के (7.5 फीसदी) और कपिलकुमार वधावन (5 फीसदी)। शेयरधारकों ने हालांकि गोपीनाथन सीके, जी. एस अय्यर, कैप्टन सुशीला मेनन आर, जी राजगोपालन नायर और पीके विजयकुमार को बैंक के निदेशक के तौर नियुक्ति को मंजूरी दे दी। गुरबख्शानी की निकासी के बाद केंद्रीय बैंक ने निदेशकों की समिति बनाई थी, जो एमडी व सीईओ की शक्तियोंं का इस्तेमाल कर सके। इसमें जी एस अय्यर चेयरमैन, जी राजगोपालन नायर और पीके विजयकुमार सदस्य के तौर पर थे।
पिछले महीने धनलक्ष्मी बैंक में इन घटनाक्रमों के बाद केंद्रीय बैंक ने प्रबंधन से कहा था कि वह मुख्य महाप्रबंधक पी मनिकंदन की सेवाएं समाप्त कर दे। हालांकि इसकी वजह कभी सार्वजनिक नहींं की गई, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि इसकी वजह गवर्नेंस का मसला हो सकता है।
निदेशक मंडल में आरबीआई के महाप्रबंधक डी के कश्यप की नियुक्ति इस बात का संकेत है कि बैक में गवर्नेंस का मामला ठीक नहीं है। निजी क्षेत्र का यह बैंक पिछले साल आरबीआई के त्वरित उपचारात्मक कार्रवाई से बाहर निकला है।
