निजी बैंकों पर बनी भारतीय रिजर्व बैंक की समिति ने नॉन ऑपरेटिव फाइनैशियल होल्डिंग कंपनी (एनओएफएचसी) को नए सार्वभौमिक बैंक स्थापित करने के लिए तरजीही ढांचे के रूप में जारी रखने का पक्ष लिया है। बहरहाल एनओएफएचसी उन्हीं के लिए अनिवार्य हो सकती है, जहां व्यक्तित प्रवर्तकों और प्रवर्तक इकाइयों/परिवर्तित इकाइयों के समूह की अन्य इकाइयां हैं।
अश्विन पारेख एडवाइजरी सर्विसेज (एपीएएस) के मैनेजिंग पार्टनर अश्विन पारेख ने कहा कि एनओएफएचसी ढांचा जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा और बैंकिंग इकाइयों में कॉर्पोरेट गवर्नेंस के हिसाब से महत्त्वपूर्ण है।
रिजर्व बैंक की समिति ने कहा कि अगर कोई बैंक इस समय एनओएफएचसी ढांचे के तहत है और अगर उसकी कोई और समूह इकाई नहीं है तो उसे ऐसे ढांचे से बाहर निकलने की अनुमति दी जा सकती है।
2013 के पहले जिन बैंकों को लाइसेंस दिए गए हैं, वे एनओएफएचसी ढांचे से निकल सकते हैं, जो उनके विवेकाधिकार पर है। बहरहाल इन बैंकों को कर तटस्थ स्थिति पर पहुंचने से 5 साल के भीतर एनओएफएचसी ढांचे से अगल होना होगा।
रिजर्व बैंक को सरकार के साथ इस सिलसिले में संपर्क में रहना होगा, जिससे निकासी ढांचे के रूप में एनओएफसी के मामले में कर प्रावधानों को देखा जाना सुनिश्चित हो सके।
समिति ने कहा है कि एओएफएचसी ढांचे के व्यावहारिक और परिचालन में बने रहने तक बैंकों की सहायक इकाइयों, संयुक्त उपक्रमों (जेवी)/एसोसिएट्स की चिंताओं का समाधान उचित नियमों के माध्यम से करना होगा। रिजर्व बैंक इसके लिए उचित नियम बना सकता है और बैंकों को 2 साल के भीतर उनका पूरी तरह से अनुपालन करना होगा।
बैंक और उसकी मौजूदा सहायक इकाइयों, संयुक्त उपक्रमों व एसोसिएट्स पर उस तरह की समान गतिविधियां चलाने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, जिसकी अनुमति बैंकों को विभागीय कार्य के रूप में है। ‘समान गतिविधियों’ को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाएगा।
