प्रॉपर्टी की गिरती कीमतों से बैंक भी चिंतित नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि भारतीय स्टेट बैंक समेत अन्य बैंक प्रॉपर्टी की कीमतों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि बैंक इस बात से चिंतित हैं कि अगर प्रॉपर्टी की कीमतों में इसी तरह गिरावट जारी रही तो उनका जोखिम बढ़ सकता है।
उल्लेखनीय है कि बैंक संपत्ति के मूल्य का करीब 70 से 80 फीसदी लोन मुहैया कराते हैं। हालांकि छह माह पहले तक कई बैंक संपत्ति के मूल्य का करीब 90 फीसदी तक लोन दे रहे थे।
लेकिन पिछले कुछ महीनों से आवासीय मकानों की कीमतों में करीब 20-25 फीसदी की गिरावट आई है। ऐसे में बैंकों को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर कीमतों में आगे भी गिरावट जारी रही, तो खरीदार (लोन लेने वाला) की संपत्ति में रुचि नहीं रहेगी। खासकर, उस स्थिति में जब वह उस मकान में नहीं रह रहा हो।
इस कवायद के तहत बैंक लोन दस्तावेज में इस बात का भी जिक्र करने की तैयारी में हैं कि अगर प्रॉपर्टी की कीमतों में गिरावट आती है,
तो खरीदार (कर्ज लेने वाले) को वास्तविक कीमत और जिस कीमत पर लोन दिया गया था, उसके अंतर का भुगतान करना होगा। अगर कर्ज लेने वाला ऐसा करने से इनकार करता है, तो उसे बैंक डिफॉल्टर घोषित कर सकते हैं।
फिलहाल लोन दस्तावेज में इस तरह का प्रावधान नहीं है। हालांकि पुनर्मूल्यांकन से वैसे बैंकों पर असर पड़ सकता है, जिसने निर्माणाधीन परियोजनाओं के लिए फंड मुहैया कराया है। वहीं कुछ बिल्डर बैंकों के साथ समझौता कर खरीदार को बुकिंग के समय शत-प्रतिशत लोन मुहैया कराते हैं।
इससे बिल्डरों को कम ब्याज दरों पर परियोजना को पूरा करने के लिए पूंजी उपलब्ध हो जाती है। इस कवायद से उन्हें भी परेशानी हो सकती है।
कुछ मामलों में बिल्डर खरीदार को इस बात की छूट देते हैं कि निर्माण पूरा होने के दौरान दो-तीन साल तक मासिक किस्त का भुगतान वही करेंगे, जबकि शेष किस्त खरीदार को चुकाना पड़ता है। डेवलपरों को परियोजनाओं को पूरा करने में नकदी की किल्लत झेलनी पड़ रही है।