भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के पूर्व चेयरमैन प्रतीप चौधरी की गिरफ्तारी को लेकर बैंकरों ने चिंता जताई है, वहीं बैंक ने बयान जारी कर कहा है कि जिस सौदे के संबंध में चौधरी को गिरफ्तार किया गया है, वह उनकी सेवानिवृति के बाद किया गया था।
एसबीआई के पूर्व चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा, ‘यह खेदजनक स्थिति है और शायद प्रतिशोध का मामला है। एनपीए की बिक्री किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं की गई है, बल्कि यह एक नियत प्रक्रिया के अधीन है।’
जैसलमेर में ‘गढ़ राजवाड़ा’ होटल परियोजना को वर्ष 2007 में एसबीआई द्वारा ऋण मुहैया कराया गया था। एसबीआई ने अपने बयान में कहा कि अप्रैल 2020 में इसके मुख्य प्रवर्तक का निधन होने के बाद खाते को उसी वर्ष जून में एनपीए की श्रेणी में शामिल किया गया। वसूली के प्रयास विफल रहने के बाद, बकाया मामला निर्धारित प्रक्रिया के तहत मार्च 2014 में रिकवरी के लिए परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (एआरसी) को सौंप दिया गया था। कर्जदार को भी एआरसी द्वारा दिवालिया प्रक्रिया के अधीन लाया गया था और दिसंबर 2017 में एनबीएफसी द्वारा परिसंपत्तियां खरीदी गई थीं।
चौधरी सितंबर 2013 में बैंक से सेवानिवृत हुए थे और उसके बाद अलकेमिस्ट एआरसी में शामिल हुए थे।
एसबीआई के पूर्व उप प्रबंध निदेशक सुनील श्रीवास्तव ने इस गिरफ्तारी को निराशाजनक करार दिया है। श्रीवास्तव के ट्वीट में कहा गया है, ‘क्या मोदी गवर्नमेंट द्वारा सभी प्रयासों के बावजूद व्यवस्था को फिर से डिफॉल्टरों के हाथों खेला जा रहा है? पारदर्शिता में सुधार लाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है।’
एक अन्य वरिष्ठ बैंकर ने नाम नहीं बताने के अनुरोध के साथ कहा, ‘यह गिरफ्तारी निंदनीय है।’
बैंकर ने कहा, ‘यह न्यायिक उल्लंघन का मामला है। वित्त मंत्रालय, इंडियन बैंक्स एसोसिएशन, और एसबीआई को तुरंत इस मामले को उच्च अदालत में चुनौती देनी चाहिए। सिर्फ जांच एजेंसियों और विशेष धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ)’ को ही जांच के बाद बैंकर को गिरफ्तार करने का अधिकार हैै।’
दिसंबर 2019 में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकरों को आश्वस्त किया था कि तीन जांच एजेंसियां – सीबीआई, केंद्रीय सतर्कता आयोग, और सीएजी बैंक अधिकारियों को व्यावसायिक निर्णयों के संबंध में परेशान नहीं करेंगी।
