बैंकिंग शेयरों की चुनौतियां अभी बरकरार हैं। ऐसे में निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत है। विश्लेषकों का कहना है कि निवेशकों को बैंकिंग शेयरों में किसी भी तेजी को भुनाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
हाल में जारी एचडीएफसी बैंक और ऐक्सिस बैंक के तीसरी तिमाही के नतीजों ने बाजार को निराश किया। इसी घबराहट में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा भारी बिकवाली की गई। एफआईआई ने खास तौर बिकवाली की।
पिछले एक सप्ताह के दौरान मुख्य तौर पर एचडीएफसी बैंक के कारण बाजार में गिरावट आई। एचडीएफसी का शेयर आज मामूली सुधार के साथ 2 फीसदी बढ़त लेकर बंद हुआ जबकि ऐक्सिस बैंक का शेयर 3 फीसदी गिरावट के साथ बंद हुआ।
दिन भर के कारोबार के दौरान यह शेयर 6 फीसदी लुढ़ककर 1,020.85 रुपये रह गया था, जो पिछले पांच महीनों में उसकी सबसे बड़ी एकदिनी गिरावट है। इसके मुकाबले बेंचमार्क निफ्टी 50 सूचकांक में 1 फीसदी की बढ़त और निफ्टी बैंक सूचकांक में 0.15 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई।
विश्लेषकों का कहना है कि आगामी दिनों में बैंकिंग शेयरों का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि अन्य ऋणदाताओं की आय कैसी रहती है। स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने कहा कि बैंक शेयरों में किसी भी तरह की तेजी आने पर बिकवाली हो सकती है क्योंकि जमा जुटाने और मार्जिन दबाव से जुड़ी चिंताएं बरकरार रहेंगी।
पिछले सप्ताह भारत के सबसे बड़े निजी ऋणदाता एचडीएफसी बैंक ने कहा था कि उसके खुदरा जमा में 2.9 फीसदी की वृद्धि हुई है। बैंक ने कहा था वित्त वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर से दिसंबर तिमाही) में उसका खुदरा जमा पिछली तिमाही के मुकाबले 2.9 फीसदी बढ़कर 53 हजार करोड़ रुपये रहा और कुल जमा में 2 फीसदी का इजाफा हुआ।
इस तरह, ऋण से जमा अनुपात (एलडीआर) में 110 फीसदी बढ़ा। वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में एलडीआर में 107 फीसदी की वृद्धि हुई थी। ऐक्सिस बैंक ने भी 23 जनवरी को बताया था कि उसकी जमा वृद्धि पिछले साल के मुकाबले 18.5 फीसदी और पिछली तिमाही के मुकाबले 5.2 फीसदी बढ़ी है।
बैंक ने कहा था कि दिसंबर तिमाही यानी वित्त वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही में सावधि जमा बढ़ने से जमा वृद्धि हुई है। इसने कहा कि एनआईएम में क्रमिक आधार पर 10 आधार अंक की गिरावट हुई है और पिछले साल के मुकाबले 25 आधार अंक गिरकर 4.01 फीसदी हो गया।
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज ने ऐक्सिस बैंक के शेयर का मूल्यांकन घटाकर ‘तटस्थ’ कर दिया है। उसका मानना है कि बढ़े हुए ऋण बनाम जमा अनुपात से ऋण वृद्धि की रफ्तार में सुस्ती आएगी। साथ ही जमा के मूल्य निर्धारण में लगातार बदलाव होने से आगामी तिमाहियों में मार्जिन पर दबाव बढ़ सकता है।