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पारंपरिक गढ़ों में झटका मिला मगर तटवर्ती प्रदेशों ने दिला दिया भाजपा को सत्ता का किनारा

भाजपा ने ओडिशा एवं तेलंगाना के प्रायद्वीपीय पठार के साथ-साथ आंध्र प्रदेश से सटे कोरोमंडल तट और केरल से सटे मालाबार तट तक दक्षिण-पश्चिम में शानदार सफलता हासिल की है।

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राधिका रामसेशन   
Last Updated- June 04, 2024 | 11:34 PM IST

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को उत्तर और पश्चिम के अपने पारंपरिक गढ़ों में झटका लगा है। मगर पूर्व और दक्षिण के कुछ हिस्सों ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान में हुए नुकसान की कुछ हद तक भरपाई की है।

भाजपा ने ओडिशा एवं तेलंगाना के प्रायद्वीपीय पठार के साथ-साथ आंध्र प्रदेश से सटे कोरोमंडल तट और केरल से सटे मालाबार तट तक दक्षिण-पश्चिम में शानदार सफलता हासिल की है। भाजपा ने अपने दम पर ओडिशा, तेलंगाना और केरल की सीटों पर संभावित बढ़त दर्ज की है।

मगर आंध्र प्रदेश में उसे तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) और जन सेना पार्टी (जसेपा) जैसे सहयोगी दलों की बदौलत सफलता मिली है। इन क्षेत्रीय दलों ने राजग की कुल सीटों की संख्या बढ़ाने में मदद की है। आंध्र प्रदेश में लोक सभा और विधानसभा के लिए एक साथ मतदान हुआ था।

भाजपा ने कर्नाटक में अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखा जहां खबरों के अनुसार वह 28 लोक सभा सीटों में से 18 पर आगे थी जबकि कांग्रेस 10 पर। कर्नाटक में भाजपा ने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी की अध्यक्षता वाले जनता दल (सेक्युलर) यानी जेडी (एस) के साथ गठजोड़ किया। भाजपा को उम्मीद थी कि गठबंधन से पार्टी को वोक्कालिगा जाति के वोटों को समेटने और लिंगायत वोटों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद मिलेगी।

मगर देवेगौड़ा परिवार से जुड़े विवादों के कारण यह बहस का विषय है कि इस गठबंधन से भाजपा को अपेक्षित लाभ मिला होगा। देवेगौड़ा परिवार के प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ कथित बलात्कार एवं छेड़छाड़ के आरोप सबसे गंभीर हैं। खबरों के अनुसार रेवन्ना हासन में कांग्रेस के अपने प्रतिद्वंद्वी से पीछे चल रहे थे।

भाजपा ने ओडिशा में इतिहास रच दिया है। वह राज्य में अपनी सरकार बनाकर बीजू जनता दल (बीजद) के 24 साल के शासन को खत्म करने के लिए तैयार है। भाजपा लोक सभा चुनाव में भी बीजद से बहुत आगे है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दोस्ती पर आधारित बीजद के साथ भाजपा का गठबंधन 2024 के चुनावों के साथ ही टूट गया।

भाजपा ने मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में पटनायक के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाया। भाजपा का चुनाव अभियान सरकार की कमियों पर कम और पटनायक पर अधिक केंद्रित था। पटनायक ने एक पूर्व नौकरशाह से विश्वासपात्र बने वीके पांडियन को चुनाव प्रचार का प्रभार सौंपकर एक बड़ी रणनीतिक चूक कर दी। पांडियन तमिल हैं और शाह ने ओडिशा के लोगों की क्षेत्रीय भावनाओं को यह कहकर कुरेदा कि पटनायक ने एक तमिल बाबू को अपना उत्तराधिकारी चुना है, मगर मुख्यमंत्री ने उसका खंडन किया। भाजपा के अन्य प्रचारकों ने पटनायक की सेहत पर सवाल उठाकर भ्रम फैला दिया।

भाजपा ने ओडिशा में कोई नई बात नहीं कही, बल्कि उसने पटनायक के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया। पहले पटनायक के खिलाफ आमतौर पर ऐसी बयानबाजी नहीं होती थी। भाजपा के एक सूत्र ने कहा कि इस बार वह अधिक कमजोर नजर आए। ओडिशा और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों पर काबिज होने के बाद भाजपा आने वाले वर्षों में पूर्वी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर सकती है। मगर पश्चिम बंगाल उसके लिए अभी भी एक चुनौती बना हुआ है।

आंध्र प्रदेश में वाईएस जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) सरकार को सत्ता से बेदखल करने से भाजपा को एक ऐसे क्षेत्र में पैर जमाने का मौका मिल गया जो अब तक उसके लिए दुर्गम रहा है। तेदेपा और जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन करके वह राज्य में लोक सभा और विधानसभा दोनों चुनावों में लगभग क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही। तेदेपा के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू 2019 का चुनाव हारने के बाद सवालों के घेरे में थे।

मगर उन्होंने इस बार शानदार रणनीति के साथ चुनाव लड़ा। उन्होंने इस उम्मीद से भाजपा के साथ गठबंधन का जोखिम उठाया कि वह केंद्र की भावी सरकार में सीधे शामिल होकर लंबा सफर तय कर सकते हैं।

भाजपा ने शुरू में नायडू को लेकर हिचकिचाहट दिखाई थी क्योंकि पांच साल के गठबंधन के बाद वे कड़वाहट के साथ अलग हो गए थे। मगर जब भाजपा को यह पता चला कि वाईएसआरसीपी के खिलाफ माहौल बन रहा है तो उसने नायडू से हाथ मिला लिया। आंध्र प्रदेश के पड़ोसी तेलंगाना में भाजपा अकेले चुनाव लड़ी और उसका यह दांव कामयाब रहा। खबरों के अनुसार वह कांग्रेस से आगे है जिसकी हैदराबाद में पांच महीने पुरानी सरकार है। भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनावों में हुई हार से विचलित हुए बिना सांप्रदायिक राजनीति, कल्याणकारी वादों और मोदी के व्यक्तित्व पर केंद्रित रणनीति के जरिये तेलंगाना में अपना आधार बनाने के लिए कड़ी मेहनत की।

तमिलनाडु में भाजपा को कोई सफलता नहीं मिली जबकि मोदी 2023 से ही मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने चोल शासन की याद दिलाने के लिए नई संसद में सेंगोल को प्रदर्शित किया, वाराणसी में काशी संगमम मंडली को बुलाया और तमिल भाषा का उत्सव मनाया। मगर भाजपा के स्टार प्रचारक और नेता के अन्नामलाई भी खबर लिखे जाने तक कोयंबटूर में पीछे चल रहे थे।

मगर केप कोमोरिन पर केरल भाजपा को वह रोशनी दिखा सकता है जिसकी उसे लंबे समय से तलाश थी। वहां की दो सीटें- त्रिशूर और तिरुवनंतपुरम- पर उसने दांव लगाया। हालांकि तिरुवनंतपुरम सीट वह नहीं जीत सकी और वहां से हाई प्रोफाइल कांग्रेसी शशि थरूर ने फिर विजय हासिल की।

First Published : June 4, 2024 | 11:34 PM IST