दुनिया में अब व्यापार की तस्वीर बदल रही है। एक तरफ चीन बहुत ज्यादा मुनाफा (अधिशेष) कमा रहा है, वहीं दूसरी तरफ भारत धीरे-धीरे दुनिया के व्यापार में नई और मजबूत जगह बना रहा है। एसबीआई सिक्योरिटीज (SBI Securities) की नई रिपोर्ट ‘Global Trade: Looking Under the Hood’ कहती है कि अमेरिका और यूरोप आपस में ‘ट्रेड वॉर’ में उलझे हैं, लेकिन असली ताकत और चिंता की वजह अब चीन है। यानी, दुनिया के व्यापार में सबसे बड़ा खिलाड़ी अब चीन बन गया है – और भारत उसके बाद नई भूमिका में आगे बढ़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, चीन का व्यापार अधिशेष (यानी कमाई) 2016 में 509.7 अरब डॉलर था, जो 2023 में बढ़कर 991.7 अरब डॉलर हो गया। यानी सिर्फ सात साल में चीन की कमाई लगभग दोगुनी हो गई है। यह कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि चीन अब दुनिया की सप्लाई चेन पर और मजबूत पकड़ बना चुका है।
जहां अमेरिका और यूरोपीय संघ एक-दूसरे पर ‘गलत तरीके से व्यापार करने’ के आरोप लगा रहे हैं, वहीं चीन लगातार अपने निर्यात (exports) का दायरा बढ़ा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका की टैरिफ (आयात शुल्क) नीति उलटी पड़ गई है। चीन को इससे सीधा नुकसान नहीं हुआ, बल्कि उसने चालाकी से अपना माल वियतनाम, मेक्सिको और भारत जैसे देशों के जरिए अमेरिका भेजना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का अधिशेष घटने के बजाय, उसने अपनी व्यापारिक रणनीति को नए रास्तों से और मजबूत बना लिया है।
अमेरिका ने सोचा था कि टैरिफ (आयात पर टैक्स) लगाकर वह अपने व्यापार घाटे को कम कर लेगा, लेकिन नतीजे वैसे नहीं आए जैसे उम्मीद थी। SBI की रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में टैरिफ लागू होने के बाद अमेरिका का कुल घाटा तो 42 अरब डॉलर घटा, लेकिन वियतनाम, भारत, मेक्सिको और ताइवान जैसे देशों के साथ उसका घाटा 9 अरब डॉलर बढ़ गया।
सिर्फ स्विट्जरलैंड के साथ घाटा कम हुआ, जिससे कुछ महीनों तक अमेरिका को थोड़ा फायदा हुआ, लेकिन जुलाई तक घाटा फिर बढ़ गया। आर्थिक जानकारों का कहना है कि यह असल में कोई ‘ट्रेड वॉर’ नहीं, बल्कि ‘सप्लाई रीडायरेक्शन’ बन गया है। यानी, अमेरिका भले चीन से कम माल मंगा रहा हो, लेकिन वही माल अब उसे दूसरे एशियाई देशों – जैसे वियतनाम, भारत या मेक्सिको – से मिल रहा है। इस तरह, घाटा खत्म नहीं हुआ, बस रास्ता बदल गया।
भारत इस वैश्विक फेरबदल में धीरे-धीरे उभरते विजेता की भूमिका में दिखाई दे रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच भारत का माल निर्यात 3.02% बढ़कर 220.12 अरब डॉलर पहुंच गया। अमेरिका को भारत का कुल निर्यात 45.8 अरब डॉलर रहा, जो एक साल पहले से अधिक है।
रिपोर्ट का आकलन है कि भारत अब चीन से हटती वैश्विक सप्लाई चेन का लाभ उठा रहा है। टेक्सटाइल, फार्मा, इंजीनियरिंग और मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में भारत तेजी से अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। SBI सिक्योरिटीज का कहना है कि ‘अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक तनाव भारत के लिए एक अवसर की खिड़की खोल रहा है।’
रिपोर्ट यह भी संकेत देती है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ जिस ‘ट्रेड असंतुलन’ पर बहस कर रहे हैं, वह असल में चीन की बढ़ती ताकत से ध्यान हटाने जैसा है। EU का व्यापार अधिशेष तो घट रहा है- 2022 के 347.9 अरब डॉलर से 2024 में 273.1 अरब डॉलर लेकिन चीन का अधिशेष लगभग एक ट्रिलियन डॉलर पर है। ECB प्रमुख क्रिस्टीन लगार्ड ने कहा कि यूरोप का अधिशेष अमेरिकी कंपनियों की वजह से है, न कि किसी ‘नीतिगत चाल’ से।
SBI सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि वैश्विक व्यापार अब जीरो-सम गेम नहीं बल्कि रिपीटेड गेम है – जहां सहयोग और विश्वास से ही जीत संभव है। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका और यूरोप की परस्पर खींचतान के बीच चीन अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है और भारत नए सहयोगी ब्लॉक के रूप में उभर रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले सालों में वैश्विक व्यापार संतुलन का केंद्र एशिया की ओर खिसकता दिखाई देगा, जहां चीन का औद्योगिक नेटवर्क और भारत का निर्यात विस्तार दुनिया की नई आर्थिक कहानी लिख सकते हैं।