निर्वाचन आयोग ने बुधवार को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्टार प्रचारकों को निर्देश दिया कि वे समाज को बांटने वाले भाषण न दें और धार्मिक या सांप्रदायिक आधार पर प्रचार करने से बचें। आयोग ने कांग्रेस के स्टार प्रचारकों को भी नसीहत देते हुए कहा कि वे अपने भाषणों में संविधान को नष्ट करने जैसे आरोप लगाने से परहेज करें।
दोनों दलों के स्टार प्रचारकों द्वारा चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोपों पर निर्वाचन आयोग ने बीते 25 अप्रैल को उनके राष्ट्रीय अध्यक्षों- भाजपा के जेपी नड्डा और कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खरगे को नोटिस देकर जवाब मांगा था।
नड्डा को विपक्ष के इस आरोप पर नोटिस जारी किया गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में विभाजनकारी भाषण दिया था, जबकि कांग्रेस को आयोग ने भाजपा के इस आरोप पर नोटिस दिया था कि राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि यदि मोदी सरकार दोबारा सत्ता में लौटी तो वह संविधान को बदल देगी।
आयोग ने नोटिस में कहा कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे से कहा कि स्टार प्रचारकों के बयान एक खास चलन का अनुसरण करते हैं और ऐसे विमर्श पैदा करते हैं जो आदर्श आचार संहिता के बाद भी नुकसानदेह हो सकते हैं। विपक्षी कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए उन्हें लोक सभा चुनाव में जाति, समुदाय, भाषा और धर्म के आधार पर प्रचार करने से बचने की नसीहत दी है। आयोग ने कहा कि चुनाव में देश के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश को नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं दी सकती।
निर्वाचन आयोग ने दोनों पार्टियों को आदर्श आचार संहिता के उन प्रावधानों की याद दिलाई जो कहते हैं कि कोई भी पार्टी या उम्मीदवार किसी ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो आपसी मतभेद को बढ़ा सकती है या नफरत पैदा कर सकती है या विभिन्न जातियों, समुदायों, धर्म या भाषा के बीच तनाव का कारण बनती है।
आयोग ने भाजपा से समाज को बांटने वाले चुनाव प्रचार पर रोक लगाने को कहा। आयोग ने उम्मीद जताई कि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के रूप में भाजपा भारत के समग्र और संवेदनशील ताने-बाने के व्यावहारिक पहलुओं के मद्देनजर प्रचार के तरीकों का पूरी तरह से पालन करेगी।
अग्निवीर योजना पर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं द्वारा की गई टिप्पणियों का जिक्र करते हुए आयोग ने कांग्रेस से यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि उसके स्टार प्रचारक और उम्मीदवार ऐसे बयान न दें जिससे यह गलत धारणा बने कि संविधान को समाप्त किया जा सकता है। (साथ में एजेंसियां)