लोकसभा चुनाव

पिछले दो लोक सभा चुनावों में खूब दबा नोटा बटन, बिहार टॉप पर

मतदाताओं के लिए नोटा का विकल्प पहली बार वर्ष 2013 के दिसंबर में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, दिल्ली और राजस्थान में हुए विधान सभा चुनाव के दौरान दिया गया था।

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अर्चिस मोहन   
Last Updated- April 03, 2024 | 11:29 PM IST

जिसे कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं, उसके लिए नोटा (उपरोक्त में कोई नहीं) का विकल्प जब से ईवीएम में दिया गया है, देशभर से मतदाताओं के अलग-अलग रुझान देखने को मिल रहे हैं। वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव में जहां नोटा के तहत पड़े वोटों की हिस्सेदारी 1.06 प्रतिशत थी, वहीं 2014 के आम चुनाव में 1.08 प्रतिशत थी। पिछले दो लोक सभा चुनावों में बिहार समेत कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नोटा पर वोट देने वालों की तादाद अच्छी खासी रही।

पिछले चुनाव में प्रत्या​शियों की नापसंदगी की हालत में नोटा चुनने के मामले में बिहार शीर्ष पर रहा। यहां कुल पड़े मतों का 2 प्रतिशत नोटा को गया था। इसके बाद आंध्र प्रदेश (1.54 प्रतिशत) और फिर छत्तीसगढ़ (1.44 प्रतिशत) में नोटा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया। पिछले लोक सभा चुनाव में केंद्र शासित प्रदेशों की बात करें तो दमन और दीव में सबसे ज्यादा 1.70 प्रतिशत वोट नोटा पर पड़े। यहां कुल 65.2 लाख वोट नोटा को गए थे, इनमें 22,272 वोट पोस्टल बैलेट वाले थे।

वर्ष 2014 में मेघालय में सबसे अ​धिक 2.80 प्रतिशत वोट नोटा पर डाले गए थे। इसके बाद छत्तीसगढ़ (1.83 प्रतिशत) और गुजरात (1.76 प्रतिशत) लोगों ने किसी प्रत्याशी के बजाय नोटा पर बटन दबाना पसंद किया था। उस चुनाव में केंद्र शासित प्रदेशों के वर्ग में पुडुच्चेरी में सबसे अ​धिक 3.01 प्रतिशत वोट नोटा पर पड़े थे। वर्ष 2014 के आम चुनाव में देशभर से नोटा पर 60.2 लाख वोट डाले गए थे।

मतदाताओं के लिए नोटा का विकल्प पहली बार वर्ष 2013 के दिसंबर में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, दिल्ली और राजस्थान में हुए विधान सभा चुनाव के दौरान दिया गया था। उसके बाद से सभी विधान सभा और लोक सभा चुनावों में ऐसे मतदाताओं को नोटा बटन दबाने की छूट दी जा रही है, जो किसी भी प्रत्याशी को पसंद नहीं करते।

First Published : April 3, 2024 | 11:08 PM IST