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लोकसभा चुनाव 2024: विकास की बढ़ी रफ्तार मगर चिंता का सबब रोजगार

नौकरी की कमी, महंगाई और गरीब-अमीर के बीच पक्षपात का मुद्दा ब्रह्मपुत्र मेल में हावी रहा। ध्रुवाक्ष साहा ने इन्हीं वास्तविकताओं को जानने के लिए की दिल्ली तक की यात्रा

Last Updated- April 22, 2024 | 11:08 PM IST
Lok Sabha Elections 2024: Increased pace of development but employment a cause for concern लोकसभा चुनाव 2024: विकास की बढ़ी रफ्तार मगर चिंता का सबब रोजगार

ब्रह्मपुत्र मेल जब ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित कामाख्या जंक्शन में प्रवेश करती है, तो सूरज भी उमड़ते-घुमड़ते बादलों के बीच अठखेलियां करता दिखता है। हाल ही में सुर्खियों में आया यह रेलवे स्टेशन उन चुनिंदा स्टेशनों में से एक है जिसे रेल मंत्रालय ने अमृत भारत योजना के तहत भव्य कायाकल्प के लिए चुना है। इसके साथ देश के अन्य 1,274 रेलवे स्टेशन भी चिह्नित किए गए हैं।

यहां की दीवारों पर उकेरी गईं पारंपरिक कलाकृतियां इन्हें जीवंत बनाती हैं, लेकिन प्लेटफॉर्म की बेचों पर धूल का गुबार है और किनारों पर कूड़ा बिखरा पड़ा है। ट्रेन के भीतर एक छोटा-सा भारत दिखता है। असम के कामाख्या से पुरानी दिल्ली तक 2,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा पर निकले हर तबके के लोगों को, चाहें वे अमीर हों या गरीब, इस ट्रेन में जगह मिली है।

पटरी पर दौड़ती ट्रेन की आवाज के बीच यात्रियों की भी एक आवाज आती है, जो अपनी-अपनी आशा और निराशा की कहानी बयां करती है। कुछ यात्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं, तो कुछ रोजगार की कमी पर अफसोस जताते हैं और इसका ठीकरा मोदी पर ही फोड़ते हैं।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान ट्रेनों के समय-सारिणी पालन में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है और इससे यात्रियों को काफी सहूलियत मिली है। यहां के दुकानदारों को स्टेशन के नवीनीकरण का बेसब्री से इंतजार है। उन्हें उम्मीद है कि इससे समृद्धि के एक नए युग की शुरुआत होगी।

यात्रियों की इस भीड़ में चुनावी ड्यूटी पर जाने वाले पुलिस अधिकारी उत्सव दास (बदला हुआ नाम) भी हैं। उनकी वर्दी पर उनके नाम वाला प्लेट उनके पेशे की दृढ़ता दर्शाता है। वह कहते हैं, ‘मैं कई बार ड्यूटी पर गया हूं, लेकिन इस बार की यात्रा थोड़ी हल्की लगती है। इस बार हम अभी दो शिफ्ट में काम कर रहे हैं और देख रहे हैं कि जमीन पर राजनीतिक उत्साह नहीं है।’

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के बाद हालिया असम विधान सभा चुनावों पर इनकी एक लंबी छाया पड़ी है। दास ने कहा कि कांग्रेस के नेताओं के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो जाने की घटनाओं ने कहीं न कहीं कांग्रेस को कमजोर किया है।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने भी चुनावों के बाद भाजपा में और नेताओं के आने के संकेत दिए हैं। तृतीय श्रेणी वातानुकूलित डिब्बे में दास के सहयात्री भी शर्मा के मुखर नेतृत्वशैली की प्रशंसा करते हैं। हालांकि, वह सीएए पर केंद्र के रुख पर असंतोष जताते हैं, लेकिन भाजपा की बयानबाजी पर सहमत भी हैं।

उत्तरी बंगाल की भावनाओं पर प्रीतम दास का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस के वोट हिस्सेदारी में बड़ा झटका लगना तय है। लोग अब ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टीकरण से ऊब चुके हैं।

उनकी पत्नी दीपा हस्तक्षेप करते हुए कहती हैं, ‘भारतीय मुसलमान अच्छे हैं, लेकिन मसला रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के साथ है जिनके दिमाग में खुराफात चलती रहती है। मोदी ने उन्हें काबू में कर दिया है और इसके लिए हम उनके आभारी हैं।’

बोंगाईगांव स्टेशन पर थोड़ा सुकून मिलता है, जहां रेलवे सुरक्षा बल के अधिकारी, कुछ रेलवे कर्मचारी और स्टेशन पर सामान बेचने वाले कैरम खेलते हुए दिखते हैं। व्यस्त दिनचर्या में यह थोड़ा सा विराम है। कम बोगियों और त्योहार की बढ़ती भीड़ को संभालना एक चुनौती है।

उनमें ट्रेन में यात्रियों को चादर और तकिया देने वाले विपिन महतो (बदला हुआ नाम) भी शामिल हैं। विपिन इस ट्रेन को ही अपना घर कहते हैं। मालदा में पले-बढ़े विपिन वेतन कटने के डर से अपने परिवार से अलग रहते हैं और ट्रेन में ही अपना दिन बिताते हैं। विपिन इस पर अफसोस जताते हैं कि रेलवे में हर साल नौकरियां कम हो रही हैं और अपने जैसे संविदा कर्मियों के खराब वेतन, नौकरी के असुरक्षित होने और किसी तरह का स्वास्थ्य कवरेज नहीं होने पर चिंता जताते हैं।

ट्रेन के आगे बढ़ने के साथ-साथ सामान्य कोचों में फेरीवाले घूम-घूमकर यात्रियों को नाश्ता और पेय पदार्थ बेच रहे हैं। इन डिब्बे के यात्रियों में आर्थिक कठिनाइयों के बाद भी एक मौन सौहार्द्र बरकरार है क्योंकि वे सभी अपने-अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इससे भलीभांति वाकिफ है। ट्रेन के सामान्य दर्जे के यात्री नौकरियों की कमी, महंगाई और अमीरों के प्रति सरकारी पक्षपात पर चिंता जताते हैं।

60 वर्षीय वस्त्र निर्माता एक अन्य यात्री, जो दार्जिलिंग में एक छोटी इकाई संचालित करते हैं और अपने बेटे से मिलने के लिए दिल्ली जा रहे हैं, कहते हैं कि उनके जैसी छोटी विनिर्माण इकाइयों को बढ़ते करों के बोझ और सरकारी सहायता की कमी के कारण संघर्ष करना पड़ रहा है। वे कहते हैं, ‘लेकिन, यह ठीक है। मैं देश के विकास के लिए मतदान करूंगा, जो प्रधानमंत्री ने किया है। ‘ यह पूछने पर वह ऐसा क्यों करेंगे, तो उन्होंने बुनियादी ढांचे की वृद्धि और पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में तेजी को सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षण में स्नातकोत्तर करने वाले 26 वर्षीय राजेश यादव सरकारी क्षेत्रों में लंबे अरसे से चली आ रही रिक्तियों के बारे में बात करते हैं। बेंच के एक छोटे से हिस्से पर अपनी सीट पर असहज होकर बैठे हुए 27 वर्षीय अधिवक्ता राजकुमार सामान्य दर्जे की बोगियों में कम होती जगह और चुनावी बॉन्ड की जटिलताओं का हवाला देते हुए सरकारी प्रतिक्रिया पर सवाल उठाते हैं।

अलग-अलग शोर के बीच गुवाहाटी के इलेक्ट्रॉनिक्स कर्मचारी शहजाद वैश्विक महामारी के दौरान सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर असंतोष जताते हैं और कहते हैं कि इसका खमियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।

आसनसोल के किशोर विक्रम अधिकारी बेहतर भविष्य का सपना संजोये हैं और अपने घर-परिवार वालों के लिए रेलवे सुरक्षा बल में शामिल होने की इच्छा रखते हैं। चुनौतियों के बावजूद, जैसे-जैसे ट्रेन अपनी यात्रियों की आकांक्षाओं और संघर्षों को मूर्त रूप देते हुए गंतव्य के करीब पहुंचती है, उम्मीद की एक किरण हवा में तैरने लगती है।

First Published - April 22, 2024 | 10:53 PM IST

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